आलोचना भले कर लें पर यह फैसला स्‍वागत का हकदार है

हमारे साथ दिक्‍कत यह है कि हम बात छेड़ते ही नहीं। भले ही हमारे अपने मुलुक के कवि दुष्‍यंत जी कह गए हों कि ‘’कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’’ लेकिन हम पत्‍थर उछालना या हाथ में लेना तो दूर उसकी तरफ देखते तक नहीं। भले ही कफील अजर कह गए हों कि ‘’बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी’’ पर हम बात को नजदीक तक भी आने नहीं देते। हमेशा डर लगा रहता है, पता नहीं कब, कौन, पत्‍थर हाथ में लेने की योजना बनाते या बात जबान पर लाने की साजिश करते हुए हमें पकड़ ले। जैसे पुलिस अकसर लोगों को चोरी या डकैती की योजना (?) बनाते पकड़ लेती है।

लेकिन अनुभव कहता है कि बात निकलनी चाहिए, बात का उठना और बात का चलना इसलिए जरूरी है कि बात उसी से बनती है। अब मध्‍यप्रदेश में नदियों से हो रही रेत की अवैध खुदाई का ही मामला ले लें। इसे पिछले कई दिनों से चल रही बात का असर कहें या बात का दबाव लेकिन सोमवार को सरकार का जो फैसला आया वह बात के निकलने और दूर तलक जाने का ही नतीजा है।

मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने सोमवार सुबह आनन फानन में बुलाई गई प्रेस कान्‍फ्रेंस में ऐलान किया कि सरकार ने प्रदेश की सभी नदियों में मशीनों से रेत की खुदाई पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। अब जो भी वाहन, मशीन या उपकरण रेत के उत्‍खनन में शामिल पाया जाएगा उसे राजसात कर लिया जाएगा। सरकार ने चूंकि नर्मदा को जीवित इकाई का दर्जा दिया है, इसलिए वहां खुदाई की किसी भी तरह की गतिविधि नहीं की जा सकेगी।

पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना, रेत कारोबार की प्रभावी व्यवस्था के लिए खनिज मंत्री राजेंद शुक्‍ला की अध्यक्षता में एक कमेटी बनेगी। आई.टी.आई. खड़गपुर की टीम वैज्ञानिक अध्ययन कर इसके उपाय सुझाएगी। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद नदियों से रेत निकालने के बारे में अंतिम फैसला किया जाएगा। रेत खुदाई पर प्रतिबंध का श्रमिकों के रोजगार पर असर न पड़े इसके लिए अन्य योजनाओं से रोजगार उपलब्‍ध कराने की व्‍यवस्‍था की जाएगी।

निर्माण कार्यो में रेत की जरूरत को ध्‍यान में रखते हुए पत्थर पीस कर रेत बनाने को बढ़ावा दिया जाएगा। ऐसी मैन्‍युफेक्चर्ड रेत पर 3 साल तक कोई रायल्टी नहीं ली जायेगी। मुख्‍यमंत्री ने कहा कि विकास एवं पर्यावरण में संतुलन बनाने के लिए सरकार तात्कालिक व दीर्घकालिक दोनों नीतियां बनाएगी।

दरअसल जबसे प्रदेश में नर्मदा को बचाने के लिए नर्मदा सेवा यात्रा का आयोजन हुआ है, नदियों, खासकर नर्मदा से रेत की अवैध खुदाई का मामला मीडिया की सुर्खियों में बना रहा है। हालांकि मुख्‍यमंत्री बार बार यह बात जोर देकर कहते रहे हैं कि अवैध खुदाई किसी कीमत पर नहीं होने दी जाएगी, लेकिन उसके बावजूद नदियों से अवैध खुदाई का सिलसिला थम नहीं पाया है।

कल अपने इसी कॉलम में मैंने नदियों से अवैध खुदाई का जिक्र करते हुए कहा था कि अब तो विपक्षी दल ही नहीं खुद भाजपा के लोग सरेआम होने वाली ऐसी अवैध खुदाई के मामले पूरी प्रामाणिकता और सबूतों के साथ सामने ला रहे हैं। हाल ही में हरदा जिले में भाजपा के वरिष्‍ठ नेता और पूर्व मंत्री कमल पटेल ने तो इस मामले को लेकर नैशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल में बाकायदा शिकायत दर्ज करवा दी है।

चौतरफा हो रही आलोचनाओं के चलते सरकार के लिए इस मामले में कोई सख्‍त और प्रभावी फैसला लेना जरूरी हो गया था। और तारीफ की जानी चाहिए शिवराजसिंह चौहान की कि उन्‍होंने देर से ही सही लेकिन रेत की खुदाई फिलहाल बंद करने का फैसला किया है। आमतौर पर ऐसी सोने की खानों को कोई बंद नहीं करता, इसलिए शिवराज के इस साहस की दाद देनी होगी।

मुझे मालूम है, सरकार के इस ऐलान की भी आलोचना होगी। इसे ढकोसला और मूल मुद्दे से ध्‍यान हटाने वाली हरकत बताया जाएगा। कुछ लोग इस बात को भी जोर शोर से उठाएंगे कि अब निर्माण कार्यों का क्‍या होगा, लोगों का घर का सपना कैसे पूरा होगा, मकान कितने महंगे हो जाएंगे, रेत अब ब्‍लैक में मिलेगी, रेत कारोबार से जुड़े मजदूरों का क्‍या होगा, वगैरह…

यह भी कहा जाएगा कि अरबों रुपये का सरकारी राजस्‍व गंवाने और उतना ही धन अपने लोगों के घरों में पहुंचवा देने के बाद सरकार दिखावे के लिए यह फैसला लेकर आई है। यह तक भी दिया जा सकता है कि सरकार चोरी नहीं रुकवा सकी तो उसने साहूकारों के ही गले कटवा दिए।

लेकिन इन सारे सवालों और आलोचनाओं के बावजूद सरकार के इस ‘दुस्‍साहसिक’ फैसले का स्‍वागत है। यह फैसला सरकार के निश्‍चय को पुख्‍ता करता है। आखिर कोई तो सख्‍त कदम उठाया गया। आलोचना करने वालों का मुंह तो कभी बंद नहीं कराया जा सकता, वे इस तरह नहीं, तो उस तरह बोलेंगे। अवैध खुदाई जारी रहती, इससे बेहतर यह है कि फिलहाल किसी तरह की खुदाई न हो। माकूल इंतजाम होने के बाद ही कोई अंतिम फैसला किया जाए।

अब जरूरत इस बात की है कि इस फैसले पर उतनी ही सख्‍ती से अमल भी हो। इसका हश्र उन राज्‍यों की शराबबंदी जैसा न हो जाए, जहां शराब पर प्रतिबंध के बाद अवैध शराब का कारोबार फलने फूलने लगा। कहीं ऐसा न हो कि प्रदेश में अब रेत का अवैध कारोबार और ज्‍यादा फलने फूलने लगे। शराब तो खैर सभी लोगों की रोजमर्रा की जरूरत नहीं है, लेकिन रेत का मामला अलग है। वह करीब करीब सारे निर्माण कार्यों यानी विकास से सीधी जुड़ी हुई है। वहां यदि अवैध गतिविधियों अथवा कालाबाजारी का जाल फैला तो उसके नतीजे ज्‍यादा खतरनाक होंगे।

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