क्‍या अब राजनीति के गलियारों में शांति-कपोत उड़ने लगेंगे?

बहुत कड़वे या यूं कहें कि बहुत जहर बुझे चुनाव के बाद, खून खराबे की धमकियों की पृष्‍ठभूमि में 23 मई का दिन कई आशंकाओं से भरा था, लेकिन ईवीएम से नतीजे आने और उनमें नरेंद्र मोदी को प्रचंड जनादेश मिलने के बाद नेताओं ने जिस तरह की प्रतिक्रियाएं दी हैं क्‍या उन्‍हें देश के माहौल में घुला जहर उतरने की उम्‍मीद को जिलाए रखने वाला माना जाए?  क्‍या यह माना जाए कि अनुकूल नतीजे न आने पर खून बहाने और हथियार उठाने की धमकियां इतिहास के कूड़ेदान में सड़ गलकर नष्‍ट हो जाएंगी और लोकतंत्र के पौधे पर उसका कोई असर नहीं होगा।

जीत और हार, स्‍थायी रूप से भले न हो, पर थोड़ी देर के लिए ही सही, व्‍यक्ति में विनम्रता का भाव ला देती हैं। शायद परिस्थितिजन्‍य भावनाओं की उसी हिलोर का नतीजा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी तक ने गुरुवार को बहुत ही विनम्र संदेश देने की कोशिश की। कई अन्‍य नेता भी इसी राह पर चलते नजर आए।

नरेंद्र मोदी ने भाजपा मुख्‍यालय में शाम को आयोजित अपने अभिनंदन कार्यक्रम में कहा- आपने इस फकीर की झोली भर दी,आपको कोटि कोटि नमन, आभार!! यह भारत की, लोकतंत्र की, जनता जनार्दन की विजय है, हम यह विजय जनता के चरणों में समर्पित करते हैं। इस प्रचंड विजय के बाद भी हम न नम्रता खोएंगे, न विवेक, न आदर्श और न संस्‍कार… मैं देशवासियों को विश्‍वास दिलाता हूं कि आपने फिर से मुझे जो जिम्‍मेदारी सौंपी है उसका मैं पूरी निष्‍ठा और समर्पण से निर्वाह करूंगा। कोई भी काम संविधान के दायरे से बाहर और बदनीयती से नहीं होगा।…

दूसरी तरफ राहुल गांधी मीडिया से रूबरू होते हुए बोले- ‘’मैंने कैंपेन में कहा था कि जनता मालिक है और जनता ने आज क्लियरली अपना डिसिजन दिया है। तो मैं सबसे पहले नरेंद्र मोदी जी को, बीजेपी को बधाई देना चाहता हूं। हमारी लड़ाई विचारधारा की लड़ाई है, दो अलग अलग सोच हैं। दो अलग विजन हैं, मगर हमें यह मानना पड़ेगा कि इस चुनाव में नरेंद्र मोदीजी और बीजेपी जीते हैं।… चुनाव अभियान में मैंने एक लाइन ली थी कि मेरे खिलाफ चाहे जितने गलत शब्द प्रयोग किए जाएं, मुझे जो भी गाली दी जाए, मैं प्यार से रिस्पांड करूंगा। और मैं कहना चाहता हूं कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं सिर्फ प्या‍र से बोलूंगा… ये मेरी फिलॉसफी है। प्यार कभी नहीं हारता है..।‘’

चुनाव के दौरान जिन नेताओं में सबसे ज्‍यादा जुबानी जंग हुई उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के अलावा तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बैनर्जी, बसपा प्रमुख मायावती, सपा नेता अखिलेश यादव और आरजेडी नेता तेजस्‍वी यादव भी शामिल थे। चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री को लोकतंत्र का तमाचा जड़ने, उन्‍हें जेल भिजवाने और सौगात में कंकड़ पत्‍थर के लड्डू भेजने जैसे बयान देने वाली ममता बैनर्जी ने गुरुवार को ट्वीट किया- Congratulations to the winners. But all losers are not losers. We have to do a complete review and then we will share our views with you all.

मायावती के ट्विटर हैंडल से चुनाव परिणाम के बाद कोई ट्वीट नहीं हुआ है। अलबत्‍ता 18 मई का एक ट्वीट उनके अकाउंट पर रखा हुआ है जो बहुत अर्थपूर्ण है। यह कहता है- ‘’मानवतावाद के मसीहा तथागत गौतम बुद्ध का शान्ति, अहिंसा, करुणा और दया का संदेश सम्पूर्ण मानवता के लिए ऐसी अमूल्य निधि है जिसकी बदौलत अपने देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में शान्ति व सद्भाव का वातावरण सृजित किया जा सकता है, जिसकी आज सख्त जरूरत भी है।‘’

चुनाव परिणामों पर मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी की प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए माकपा नेता बादल सरोज ने पार्टी पोलिट ब्‍यूरो की ओर से जारी एक जानकारी फेसबुक पर डाली है। पांच बिंदुओं वाली इस पोस्‍ट का एक बिंदु कहता है-‘’हम देश की जनता से अपील करते हैं कि वह आपसी सौहार्द की हिफाजत करेसंसदीय जनतंत्र की रक्षा और जनमुद्दों को लेकर एकजुट होकर संघर्ष की तैयारी करे।‘’

इसी तरह अखिलेश यादव ने अपने संक्षिप्‍त ट्वीट में कहा है-‘’जनमत स्वीकार! उत्तर प्रदेश की सम्मानित जनता और तमाम कार्यकर्ताओं का धन्यवाद।‘’ वहीं राजद नेता तेजस्‍वी यादव का ट्वीट कहता है- ‘’हम हार-जीत के कारणों का विश्लेषण कर गांधी,जेपीलोहिया और जननायक कर्पूरी ठाकुर के विचारों पर अडिग रहते हुए साथ मिलकर बड़ी लड़ाई लड़ेंगे और जीतेंगे।‘’

कुल मिलाकर अधिकांश नेताओं ने चुनाव परिणाम आ जाने के बाद अपनी सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं में यह जताने की कोशिश की है कि वे ‘विनम्रतापूर्वक’ जनादेश को स्‍वीकार कर रहे हैं। मुझे याद है बचपन में खेलते खेलते जब किसी बात पर कोई लड़ाई हो जाती थी तो हम बच्‍चों में से ही कोई कहता- ‘’लड़ाई लड़ाई माफ करो, गांधीजी को याद करो” बचपन में यह सिर्फ आपसी झगड़े को शांत करने वाला जुमला भर लगता था। इस बात का मोल बड़ा होने पर पता चला।

ऐसा लगता है कि चुनाव के दौरान जमकर जबानी खूनखराबा कर चुके नेता भी अब ऐसा ही कुछ कह रहे हैं कि लड़ाई लड़ाई माफ करो… पर क्‍या सचमुच इस चुनाव परिणाम के बाद भारत के राजनीतिक परिदृश्‍य में शांति के कपोत उड़ने लगेंगे? क्‍या सचमुच राजनीतिक गलियारों में सद्भाव और सौहार्द की बासंती बयार बहने लगेगी? नेताओं के बयान और ट्वीट चाहे जो कहते हों पर चुनावी युद्ध में एक दूसरे के बीच जो खाइयां खोद दी गई हैं, क्‍या वे इतनी जल्‍दी पट जाएंगी?  मन तो कहता है ऐसा होना तो चाहिए, पर दिमाग सवाल करता है क्‍या यह संभव है? यदि सचमुच ये दांत खाने के हैं तो इनके लिए ढेर सारी मिठाई बनती है। लेकिन यदि ये दांत सिर्फ दिखाने के हैं तो…?

बस यही तो’ वह सवाल है जिसके इर्दगिर्द आने वाले दिनों में भारत की राजनीति घूमेगी। पिछले कुछ महीनों से हम चुनाव के रंग देख रहे थे, अब देश को चुनाव के बाद की राजनीतिक रंगदारी के लिए तैयार हो जाना चाहिए…

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