इस धमकी भरी भाषा की जरूरत आखिर क्‍यों पड़ रही है?

ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के अपने ही सांसदों या विधायकों से और भाजपा शासित सरकारों के अपने ही अफसरों से रिश्‍ते, भारत-चीन रिश्‍तों से भी ज्‍यादा बिगड़ गए हैं। अभी कल परसों ही खबर आई है कि भारत ने चीन के साथ दो तीन माह से चल रहा डोकलाम विवाद कूटनीतिक तरीके से सुलझा लिया है। डोकलाम को लेकर चीन लगातार भारत को तरह-तरह की धमकियां दे रहा था। विवाद सुलझ जाने के बारे में हमारे विदेश मंत्रालय का आधिकारिक बयान आने से ठीक पहले नौबत यहां तक पहुंच गई थी कि चीन ने आर-पार की लड़ाई की सीधी धमकी दे डाली थी।

चीन के नथुने फुलाते बयान लगातार कई दिनों से आ रहे थे। लेकिन भारत ने पूरे समय संयम बरता और इस तरह की भाषा का कतई इस्‍तेमाल नहीं किया। हमारी ओर से सिर्फ इतना कहा गया कि विवाद तभी सुलझ सकता है जब दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटें। इसके अलावा जो कहा गया वो यह था कि कोई भी मसला बातचीत से ही सुलझ सकता है और भारत को उम्‍मीद है कि चीन के साथ चल रहा सीमा विवाद भी बातचीत से सुलझ जाएगा।

आप सोचते होंगे कि भारत-चीन सीमा विवाद का भारतीय जनता पार्टी संगठन और उसके जन प्रतिनिधियों या कि भाजपा शासित सरकारों और उनके अफसरों से क्‍या लेना देना है? तो बात यह है कि जो बरताव भारत ने अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी चीन तक के साथ नहीं किया, वो बरताव इन दिनों भाजपा नेतृत्‍व को अपने सांसदों, विधायकों और अफसरों के साथ करना पड़ रहा है। चीन को हमने धमकी का एक शब्‍द भी कहे बिना बहुत शांति से निपटा दिया, लेकिन अपने ही लोगों और मातहत अफसरों को हमें इन दिनों धमकाने, चमकाने और चेतावनियां देने की नौबत आ गई है।

यकीन न हो तो पिछले कुछ दिनों का घटनाक्रम उठाकर देख लीजिए। संसद में प्रधानमंत्री ने भाजपा संसदीय दल की बैठकों में बार बार अपने सांसदों को धमकाया है कि वे सदन में मौजूद रहें, अपने संसदीय क्षेत्र पर ध्‍यान दें, लोगों की बात सुनें, सरकार की जनकल्‍याणकारी योजनाओं का ब्‍योरा लोगों तक पहुंचाएं वरना उन पर कार्रवाई की जाएगी। हाल की ऐसी ही एक बैठक में तो सर्वशक्तिशाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह तक कहना पड़ा था कि आप लोग यदि नहीं सुधरे तो 2019 के चुनाव में मैं आपको देख लूंगा।

प्रधानमंत्री की तर्ज पर ही देखने दिखाने और चमकाने धमकाने का यह प्रसंग मध्‍यप्रदेश में भी देखने को मिल रहा है। कहीं अफसरों को उलटा लटकाने की धमकी दी जा रही है तो कहीं विधायकों को टिकट छीन लिए जाने की। अभी मंगलवार को ही खुद मुख्‍यमंत्री ने जिले के अफसरों और पार्टी विधायकों की मैराथन बैठकें लीं। कलेक्‍टरों और पुलिस अधीक्षकों से उन्‍होंने पूछा कि यदि जिलों में सब कुछ ठीक है तो मेरे पास इतनी शिकायतें और आवेदन क्यों आते हैं? काम कीजिए और हर माह का रिजल्ट दिखाइए। यदि काम में कोई अफसर या कर्मचारी बाधा बना तो वह बचेगा नहीं। उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ सकता है।

मुख्यमंत्री ने कलेक्टरों को शासन की प्राथमिकताएं बताते हुए कामकाज के लक्ष्य भी दिए और कहा कि लक्ष्‍यों को पाने व परिणाम लाने के लिए कलेक्‍टर जिलों में नवाचार करें। यदि कोई अधिकारी-कर्मचारी भ्रष्‍ट है या काम नहीं कर रहा है तो उसके बारे में बताएं, उसे सेवा से हटा दिया जाएगा।

पुलिस अधीक्षकों से वे बोले कि संवेदनशील इलाकों, भीड़-भाड़ के क्षेत्रों में पुलिस सड़क पर दिखनी चाहिए। शांति समिति की नियमित बैठकें हों। असामाजिक तत्वों और साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वालों को पहले से ही पहचान करें। जिला बदर और रासुका की कार्रवाइयाँ बेहिचक हों। रात्रि गश्त में कोई ढील नहीं दी जाए।

इसी तरह पार्टी विधायकों से मुख्‍यमंत्री ने लगभग चेताने वाले अंदाज में कहा कि उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। संभल जाओ। रिपोर्ट खराब मिली तो टिकट के लाले पड़ जाएंगे। कार्यकर्ताओं से संपर्क बढ़ाना होगा। संगठन के पास आपकी उपलब्धियों की लाइन से ज्‍यादा बड़ी लाइन शिकायतों की है।

इसमें से सबसे मजेदार बात मुझे वह लगी जिसमें अफसरों से ही भ्रष्‍ट अफसरों के नाम पूछे गए हैं। मुझे लगता है इस तरह का मासूम प्रस्‍ताव नौकरशाही को शायद ही कभी दिया गया हो। यदि ऐसा हो सका तो यह भारत के प्रशासनिक इतिहास का न भूतो न भविष्‍यति वाला अध्‍याय होगा।

सवाल यह भी है कि सब कुछ कंट्रोल में होने के बावजूद चीजें कंट्रोल से बाहर जा कैसे रही हैं? अपने ही विधायकों और अफसरों को धमकी देने की जरूरत क्‍यों पड़ रही है? साफ तौर पर इसके दो ही कारण हो सकते हैं। पहला तो यह कि मातहत नौकरशाही नितांत निरंकुश हो चली है और उसे राजनीतिक नेतृत्‍व की कोई परवाह नहीं बची है या फिर यह कि सबने अपने-अपने आकाओं को साध कर रखा है। इसीलिए यह मानकर चला जा रहा है कि ऐसी बातें तो होती ही रहती हैं।

उधर विधायक भी यह सोचकर निश्चिंत भाव में हैं कि मोदी और शिवराज की गाड़ी में सवार हैं तो चिंता किस बात की। चुनाव की वैतरणी तो इनकी मदद से पार कर ही लेंगे। चिंता करनी है तो नरेंद्र मोदी करें या फिर शिवराज… हमें चिंता से क्‍या लेना देना…? यहां तो सारे के सारे राऊडी राठौर हैं, और सब मिलकर गा रहे हैं-

चिंता ता चिता चिता, चिंता ता ता…

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