देश में विभिन्न समाचार माध्यमों के अलावा सोशल मीडिया जैसे मंचों पर जिस तरह से ‘जागरूकता’ अभियान चलाए जा रहे थे, उन्हें देखते हुए लग रहा था कि इस बार दीवाली पर होने वाला ध्वनि एवं वायु प्रदूषण पिछले सालों की अपेक्षा कम रहेगा। लेकिन दीवाली के बाद देश के विभिन्न शहरों से जो रिपोर्ट्स आ रही हैं, वे बताती हैं कि प्रदूषण कम होना तो दूर उलटे इस बार और बढ़ गया।
हम यदि राजधानी दिल्ली को देश का प्रतिनिधित्व करने वाला शहर मानें तो वहां इस बार तमाम प्रयासों के बावजूद दिवाली का प्रदूषण पहले के सालों की तुलना में काफी अधिक रहा। और दीवाली पर प्रदूषण का स्तर खतरनाक हद तक बढ़ जाने की खबरें अभी चल ही रही थीं कि गुरुवार को खबर आई कि जहरीली हवा के कारण वहां स्कूल बंद करने की नौबत आ गई है। दिल्ली और गुडगांव के दो स्कूलों में वायु प्रदूषण के चलते छुट्टी कर दी गई।
राजधानी में स्मॉग (यह शब्द Smoke यानी धुंए और Fog यानी धुंध से मिलकर गढ़ा गया है) के कारण लोगों को हो रहीपरेशानी का संज्ञान लेते हुए नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर शुक्रवार तक स्टेटस रिपोर्टमांगी है। स्मॉग का बढ़ता स्तर लोगों में सांस संबंधी बीमारियों का बड़ा कारण बन रहा है। इसकी वजह से बच्चों और बुजुर्गोंको सांस लेने में बहुत अधिक तकलीफ होती है। ट्रिब्यूनल ने संबंधित विभागों को निर्देश दिए हैं कि स्थिति से निपटने के प्रभावी उपाय तत्काल किए जाएं।
वैसे तो ट्रिब्यूनल दिल्ली में फैले डेंगू से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। लेकिन सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकारऔर महानगर पालिका की तरफ से जब कहा गया कि दिवाली के बाद बढ़े प्रदूषण के बाद मच्छर बढ़ गए है, तो ट्रिब्यूनल ने सरकार से पूछ लिया कि प्रदूषण बढ़ने के बाद आम लोगों के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? क्या बच्चों को इस प्रदूषण सेबचाने के लिए स्कूलों को बंद किया गया? क्या आम जनता के लिए कोई दिशानिर्देश जारी किए गए?
दरअसल प्रदूषण का मामला अकेले दिल्ली का ही नहीं बल्कि पूरे देश का है। दिल्ली में तो बात इसलिए पता चल जाती है क्योंकि वहां इसे लेकर कोई न कोई व्यक्ति या संगठन हल्ला मचा देता है। लेकिन बाकी शहरों में लोग जाने अनजाने लगातार इस गंभीर खतरे का शिकार हो रहे हैं। वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या और बढ़ते शहरीकरण ने ध्वनि एवं वायु प्रदूषण के खतरे को और ज्यादा गंभीर बना दिया है। वाहनों से निकलने वाले हानिकारक धुंए के साथ, पक्की सड़कों के अभाव के कारण उड़ने वाली धूल के मिश्रण का हवा में घुलना सतत जारी है। चूंकि यह सब सहज प्रक्रिया के तहत हो रहा है इसलिए लोगों को उसके घातक असर का अंदाज नहीं लगता और वे सांस के साथ इस जहर को भी अपने शरीर के अंदर खींचने के आदी हो जाते हैं।
हमारे अपने मध्यप्रदेश में ही प्रदूषण का स्तर कई शहरों में खतरनाक तरीके से बढ़ता जा रहा है। कुछ माह पूर्व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें आश्चर्यजनक रूप से मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर को हवा में तैरने वाले खतरनाक कणों के प्रदूषण के लिहाज से दुनिया के दस शहरों की सूची में दूसरे स्थान पर रखा गया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस सूची में भारत के जिन दस प्रमुख शहरों को वायु प्रदूषण के लिहाज से खतरनाक माना गया था उनमें ग्वालियर, इलाहाबाद, रायपुर, दिल्ली, लुधियाना, कानपुर, खन्ना, फिरोजाबाद, लखनऊ और अमृतसर शामिल हैं।
वायु प्रदूषण मापने की इकाई पीएम10 को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि हवा में तैरने वाले कणों की मात्रा 20 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन हमारे ग्वालियर में यह मात्रा 329 पाई गई थी। इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि हमारे शहरों के लोग सांस के नाम पर हवा नहीं बल्कि अपने फेफड़ों में जहर खींच रहे हैं।
इस बार उम्मीद बंधी थी कि जिस तरह का अभियान सोशल मीडिया और अन्य संचार माध्यमों पर चला है, उसके चलते चीजें कुछ नियंत्रित होंगी। घटिया क्वालिटी के चीनी पटाखों के बहिष्कार को लेकर बड़ी मुहिम चलाई गई थी और इस आशय की खबरें भी आई थीं कि चीनी माल की खपत में काफी कमी आई है। लेकिन उस कमी के बावजूद यदि प्रदूषण का स्तर बढ़ा है तो जरा सोचिए कि वह कथित कमी नहीं आई होती तो क्या हाल होता?
इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर किए जाने वाले उपायों के समानांतर लोगों को भी ‘असरकारी’ कदम उठाने होंगे। यदि दिवाली पर पटाखे चलाने में संयम बरतने की सलाह दी जाती है तो उसकी गंभीरता को सही मायनों में समझना होगा। दीवाली पर प्रदूषण की खबरों को लेकर चल रही बहस के बीच मैंने एक वाट्सएप संदेश देखा जो व्यंग्यात्मक रूप से कहता है कि- ‘’नए साल पर फोड़े जाने वाले पटाखों से प्रदूषण नहीं होता, हमारी दिवाली पर होने वाली आतिशबाजी से ही होता है।‘’ मामला दिवाली और नए साल का नहीं है, इसे इस अंदाज से देखा भी नहीं जाना चाहिए। फेफड़ों में पहुंचने वाला जहर चाहे दिवाली पर जाए या नए साल पर, अंतत: वह हमारा ही जीवन कम कर रहा है।