जब आंखें ही बंद थीं तो यह तो होना ही था…

फाइलें बनाने और दस्‍तावेज सुरक्षित रखने का सिस्‍टम जिसने भी बनाया होगा उसे सलाम करने को मन करता है। आदमी भले झूठ बोले या पहले बोली हुई अपनी बात से मुकर जाए लेकिन कागज या दस्‍तावेज के साथ ऐसी आशंका कम ही होती है। इसीलिए अदालतें भी मुकदमों का फैसला करते वक्‍त दस्‍तावेजों को ज्‍यादा महत्‍व देती हैं। ऐसे ही एक दस्‍तावेज ने भोपाल सेंट्रल जेल से सि‍मी कैदियों की फरारी के ताजा मामले को नया मोड़ दे दिया है।

बुधवार को इस दस्‍तावेज के सामने आने के बाद, सरकार के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा भोपाल जेल ब्रेक मामला और संगीन हो गया है। यह दस्‍तावेज एक हस्‍तलिखित पत्र है जो प्रदेश के सेवानिवृत्‍त अतिरिक्‍त जेल महानिरीक्षक जी.के. अग्रवाल ने तत्‍कालीन मुख्‍य सचिव एंटनी डिसा को लिखा था और उसकी कॉपी तत्‍कालीन आईबी चीफ आसिफ इब्राहिम को भी भेजी थी। यह संयोग ही है कि जिस दिन एंटनी डिसा राज्‍य के मुख्‍य सचिव पद से रिटायर हो रहे थे, ठीक उसी दिन राजधानी की पुलिस जेल से भागे इन सिमी आतंकियों का एनकाउंटर कर रही थी।

पहले जरा उस पत्र के वे अंश पढ़ लीजिए जो इस पूरे मामले पर नई रोशनी डालते हैं। 26 जून 2014 को मुख्‍य सचिव के नाम लिखे इस पत्र का विषय ही है-‘’प्रदेश की जेलों से सिमी संगठन एवं अन्‍य खतरनाक बंदियों की फरारी पर रोक लगाने विषयक सुझाव।‘’

श्री अग्रवाल ने इसमें साफ साफ चेतावनी देते हुए कहा था कि- ‘’वर्तमान में प्रदेश की अन्‍य जेलों के सिमी बंदी भी भोपाल जेल में रखे गए हैं। लेकिन इनकी मुलाकात की व्‍यवस्‍था, जेल भवन की संरचना, जेल भवन के भेद्य (Vulnerable) स्‍थान (Points), सुरक्षा की अविवेकपूर्ण व्‍यवस्‍था, स्‍टाफ की दयनीय (Deplorable) दशा जैसी स्‍थाई समस्‍याओं के उपरांत भी यदि भोपाल जेल में कोई बड़ी दुर्घटना नहीं घटी है तो यह मानना भूल होगी कि व्‍यवस्‍थाएं उत्‍तम हैं। ईश्‍वर मदद कर रहा है, लेकिन सदैव मदद करता ही रहेगा, ऐसा सोचना भूल होगी।‘’

अग्रवाल ने लिखा था- ‘’वैसे तो जेल से किसी भी बंदी का फरार होना असहनीय है, लेकिन एक भी राष्‍ट्रद्रोही का फरार हो जाना विभिन्‍न सुरक्षा एजेंसियों के लिए कितना बड़ा झटका (Jolt) तथा देश के लिए कितना घातक हो सकता है, इसे सुरक्षा एजेंसियां हम-आपसे बेहतर समझती हैं।‘’

जेल विभाग के इस पूर्व वरिष्‍ठ अधिकारी ने भोपाल जेल की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता को कितना महत्‍वपूर्ण माना था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्‍होंने कई पेज की यह चिट्ठी हाथ से लिखकर मुख्‍य सचिव को भेजी और चिट्ठी के अंत में इस बात का उल्‍लेख किया कि- ‘’मैं सुरक्षा कारणों से उपरोक्‍त में से किसी भी बिंदु पर विस्‍तार से प्रकाश डालना नहीं चाहता, लेकिन व्‍यक्तिगत रूप से आपको अवगत करा सकता हूं। मैं यह पत्र भी टाइप करवाकर भेज सकता था, लेकिन पत्र में लिखे बिंदुओं की जानकारी उन्‍हीं तक पहुंचे जो समस्‍या से जुड़े हों और निराकरण करने की स्थिति में हों।‘’

यानी मध्‍यप्रदेश के जेल विभाग से लेकर उच्‍चतम प्रशासनिक स्‍तर तक, यह बात सभी को मालूम थी कि मध्‍यप्रदेश की जेलें सुरक्षित नहीं हैं। खासतौर से सिमी के आतंकी इन जेलों से फरार हो सकते हैं यह सभी को पता था। सिस्‍टम के ही लोग एक दूसरे को चेता रहे थे कि अभी तक कोई बड़ी घटना नहीं हुई है तो यह ईश्‍वर की कृपा है, लेकिन ईश्‍वर सदैव मदद करता रहेगा यह सोचना भूल होगी। लेकिन ऐसा लगता है कि सारा सिस्‍टम या तो भगवान के भरोसे ही चल रहा था या भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था।

प्रदेश की जेलों के अंदरूनी हालात बयान करती विभाग के ही इतने बड़े अधिकारी की यह चिट्ठी सामने आने के बाद उंगली सरकार और पूरी मशीनरी पर उठती है कि आखिर प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक कर्ताधर्ता हाथ पर हाथ धरे क्‍यों बैठे रहे? हम हजार बार यह रोना रोते हैं कि हमारा इंटेलीजेंस फेल रहा, हमें समय पर सूचनाएं नहीं मिलीं, लेकिन यह तो खुला प्रमाण है कि सूचनाएं आईने की तरह आपके सामने रखी थीं। आपने ही शायद उनकी तरफ से आंखें मोड़ लीं या आंखें बंद कर लीं। यदि राज्‍य के मुख्‍य सचिव को दी गई इतनी संवेदनशील सूचना पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती, व्‍यवस्‍था में सुधार नहीं होता, तो प्रदेश की जनता आपसे कैसे उम्‍मीद करे कि आप उसकी जान माल की हिफाजत करने में सक्षम हैं।

ठीक है कि आपने जेल से फरार होने वाले उन आठ लोगों को मार गिराया, लेकिन इस बात का उत्‍तर भी आपको ही देना होगा कि उस बेचारे हेड कांस्‍टेबल रमाशंकर यादव की मौत का दोषी कौन है? क्‍या रमाशंकर की हत्‍या का दोष सिमी के उन आतंकियों के साथ-साथ सरकार और उसकी मशीनरी के सिर पर नहीं है जिसकी जिम्‍मेदारी थी कि वह सुरक्षा और चौकसी के माकूल प्रबंध करे। जब आपको पुख्‍ता तौर पर चेतावनी मिल गई थी कि भोपाल जेल में इस तरह का कोई भी बड़ा हादसा कभी भी हो सकता है तब भी यदि आपने समुचित कदम नहीं उठाए तो यह सरासर आपकी नाकामी है। इसकी सजा कौन भुगतेगा?

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