चूंकि मैंने अपने इसी कॉलम में उस मुद्दे का कई बार जिक्र किया है इसलिए मेरा फर्ज बनता है कि यदि उस से जुड़े घटनाक्रम में कोई नाटकीय मोड़ आया है तो उसका भी ‘सम्मान’ करते हुए मैं उसके बारे में भी कुछ लिखूं।
यह मामला सागर के महापौर अभय दरे का है। जिन्हें करीब सात महीने की ‘प्रताड़ना’ के बाद सरकार ने हाल ही में भ्रष्टाचार के एक मामले में ‘क्लीन चिट’ दे दी। चूंकि जनता की याददाश्त में ऐसे मामले फौरी तौर पर ही दर्ज होते हैं और जल्द ही गायब हो जाते हैं, इसलिए आपको याद दिलाना जरूरी है कि यह अभय दरे वाला किस्सा क्या है?
दरअसल, 21 फरवरी 2017 को सोशल मीडिया पर एक ऑडियो क्लिप वायरल हुई थी। इसमें सागर के महापौर अभय दरे और निगम के ठेकेदार संतोष प्रजापति के बीच, किराये पर ली गई जेसीबी मशीन के बिल भुगतान को लेकर कथित रूप से 25 प्रतिशत कमीशन के लेनदेन की बातचीत थी। मामला सामने आने पर खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 22 फरवरी को नगरीय प्रशासन विभाग के आयुक्त विवेक अग्रवाल को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा था।
इसी बीच 4 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री का सागर जाने का कार्यक्रम बना। मुख्यमंत्री को सागर दौरे में महापौर की छवि के कारण उलटे सीधे सवालों का सामना न करना पड़ना पड़े इसलिए नगरीय प्रशासन विभाग ने सीएम दौरे से दो दिन पहले महापौर दरे, निगमायुक्त कौशलेंद्र सिंह और निगम के ठेकेदार संतोष प्रजापति को बयानों के लिए भोपाल तलब किया। देर रात तीनों के बयान लिए गए। और 3 मार्च को विभाग ने अपनी रिपोर्ट में महापौर को दोषी ठहरा दिया।
प्रदेश में पहली बार अपने किस्म की अलग ही कार्रवाई करते हुए अभय दरे को महापौर तो बनाए रखा गया, लेकिन उनके तमाम वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार छीन लिए गए। निगम आयुक्त को आदेश दिया गया कि प्रशासनिक और वित्तीय मामलों की कोई भी फाइल महापौर के पास न भेजी जाए।
इतना ही नहीं दरे के खिलाफ आर्थिक अपराध शाखा में मामला दर्ज करने को भी कह दिया गया। इस कार्रवाई के बाद यह चर्चा चल पड़ी कि पार्टी अभय दरे से इस्तीफा मांग सकती है। सरकार की कार्रवाई के बाद पार्टी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमारसिंह चौहान ने मीडिया से कहा कि अभय दरे का जवाब आने के बाद कार्रवाई की जाएगी। इस बीच 4 मार्च को जब मुख्यमंत्री का सागर दौरा हुआ तो उनके कार्यक्रमों में दरे शामिल नहीं हुए।
यहां यह बताना जरूरी है कि अभय दरे नगरीय चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी छोड़कर भाजपा में आए थे और उन्हें महापौर पद का प्रत्याशी बनाते हुए खुद मुख्यमंत्री ने उनकी छवि के बारे में गारंटी ली थी। इतना ही नहीं दरे उस समय भी चर्चा में आए थे जब महापौर चुने जाने के बाद उन्होंने ऐलान किया था कि जब तक वे पद पर रहेंगे उनका कोई भी परिजन नगर निगम में ठेकदारी नहीं करेगा। उनके इस ऐलान को भी खुद मुख्यमंत्री ने ‘अनुकरणीय’बताया था।
यह सारा किस्सा पिछले सात महीनों से कई उतार चढ़ावों के साथ चलता रहा। अभय दरे ने मीडिया के सामने यह कहते हुए अपना बचाव किया कि ऑडियो क्लिप में सामने आई बातें तथ्य से परे हैं। विभागीय जांच में भी उन्हें अपना पक्ष रखने का समुचित अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने ऑडियो क्लिप की फोरेंसिक जांच कराने की भी मांग की।
इस बीच उनके अधिकार छीने जाने की घटना को सागर जिले की स्थानीय राजनीति से भी जोड़कर देखा गया। कहा गया कि वे जिले के ही दो मंत्रियों गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह के समर्थक पार्षदों को एमआईसी से बाहर का रास्ता दिखाने के कारण निशाने पर थे। और इसी कारण भाजपा की अंदरूनी राजनीति का शिकार बन गए।
खैर… अब खबर यह आई है कि सरकार ने अभय दरे को भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों से मुक्त करते हुए उन्हें क्लीन चिट दे दी है। नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव ने 12 सितंबर को आदेश जारी कर महापौर अभय दरे के वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार बहाल कर दिए हैं।
बताया जाता है कि करीब 30 पेज के इस आदेश में दरे पर लगाए गए एक-एक आरोप को खारिज कर दिया गया है। इसके साथ ही सरकार ने महापौर के खिलाफ उन्हें पद से हटाने के लिए नगर पालिक निगम एक्ट की धारा 19 ख के तहत प्रस्तावित कार्रवाई को भी समाप्त कर दिया है।
इतना ही नहीं उन पर जेसीबी किराये के भुगतान में जो 25 प्रतिशत कमीशन लेने का आरोप लगा था उसे निराधार बताते हुए उलटे यह कहा गया है कि दरे ने तो करीब 10 लाख रुपए के बिल में 3 लाख रुपए की कटौती कर निगम को फायदा पहुंचाया है।