तुम इतना जो मुसकुरा रहे हो, क्‍या हाल है, क्‍या दिखा रहे हो

1982 में एक बहुत खूबसूरत फिल्‍म आई थी अर्थ। इसमें कैफी आजमी का लिखा एक गीत था जिसे जगजीतसिंह ने उतनी ही गहराई से गाया था। गीत के बोल थे- तुम इतना जो मुसकुरा रहे हो, क्‍या गम है जिसको छुपा रहे हो। आंखों में नमी, हंसी लबों पर, क्‍या हाल है, क्‍या दिखा रहे हो।

मुझे पता नहीं कि भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह का गीत-संगीत से कितना लेना देना है या कि राजनीतिक दांवपेच की व्‍यस्‍तता के चलते उन्‍हें गीत संगीत के लिए समय मिल भी पाता होगा या नहीं, पर मैं आज कैफी आजमी के इस गीत के जरिए अमित शाह की एक खास अदा पर बात करना चाहता हूं।

और बात की शुरुआत में ही यह साफ कर देना चाहूंगा कि कैफी आजमी साहब ने अपने गीत में जिस गम और आंखों में नमी वगैरह का जिक्र किया है,वैसी कोई भी बात आज की भाजपा या उसके अध्‍यक्ष के आसपास भी नहीं फटक रही। वहां तो आंखों से लेकर होठों तक बस हंसी और खुशी ही पसरी हुई है। लेकिन यह गीत मुझे इसलिए याद आया क्‍योंकि भाजपा इन दिनों मीडिया के साथ ऐसा ही कुछ खेल खेल रही है। भीतर हो कुछ रहा है और बाहर बताया कुछ और जा रहा है…

भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष ने 18 से 20 अगस्‍त तक हुए भोपाल दौरे में मीडिया से चर्चा के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा कि हमने ही अपने लोगों से मीडिया को गलत जानकारी देने के लिए कहा था ताकि हमारी बात की गोपनीयता बनी रहे। ऊपरी तौर पर, कहने सुनने में यह बात भले ही हलके-फुलके मजाकिया माहौल की लगती हो, लेकिन मेरे हिसाब से इसके बहाने जाने-अनजाने शाह अपनी पार्टी की एक बहुत अहम रणनीति का खुलासा कर गए।

दरअसल एक समय था जब भाजपा में ऑफ द रिकार्ड ब्रीफिंग करने वालों का हुजूम हुआ करता था। अपने अपने राजनीतिक गणित के हिसाब से भाजपा के नेता, मीडिया में अपने मुंहलगे पत्रकारों को अंदरूनी खबरों की सच्‍ची झूठी पुडि़या थमाया करते थे। ऐसे लोगों में दिवंगत प्रमोद महाजन का नाम सबसे ऊपर आता था। याद कीजिए वो घटना जब भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती, लालकृष्‍ण आडवाणी की मौजूदगी में ऐसी ही ऑफ द रिकार्ड ब्रीफिंग पर बिफरते हुए बैठक ही छोड़कर चली गई थीं।

भाजपा की नए जमाने की रणनीति में भी बरसों पुरानी वह  परंपरा खत्‍म नहीं हुई है। बस उसका स्‍वरूप थोड़ा बदल गया है। अब प्रमोद महाजन टाइप‘ऑफ द रिकार्ड ब्रीफिंग’ की राजनीति करने की हिम्‍मत किसी में नहीं है। लेकिन लगता है पार्टी ने सुनियोजित रूप से अपने यहां ऐसे समूह और नेता तैयार किए हैं जो उस तरह की ब्रीफिंग अब ऑन रिकार्ड करते हैं।

फर्क सिर्फ इतना है कि ऑन रिकार्ड होने वाली इस ब्रीफिंग और उसमें दी जाने वाली जानकारी कितनी सच्‍ची या वस्‍तुनिष्‍ठ (आब्‍जेक्टिव) होगी इसका कोई भरोसा नहीं। इस लिहाज से जो मीडिया पहले ऑफ द रिकार्ड ब्रीफिंग के जरिए इस्‍तेमाल किया जाता था, अब उसी मीडिया को ऑन रिकार्ड ब्रीफिंग के जरिए इस्‍तेमाल किया जा रहा है।

नए जमाने की, या यूं कहें कि मोदी और शाह के जमाने की भाजपा में एक अंतर और आया है कि अब ध्‍यान बंटाने के लिए मीडिया को उस मूल घटनाक्रम से दूर, बहुत दूर ले जाया जाता है, जिस घटनाक्रम को अंजाम देना होता है। यानी भाजपा के बहुत से नेता मारीच की भूमिका में स्‍वर्ण मृग बनकर मीडिया को आखेट के लिए पर्णकुटीर से दूर ले जाने का काम कर रहे हैं। और यही वजह है कि भाजपा या उसके शीर्ष नेतृत्‍व की ओर से उठाए जाने वाले किसी भी वास्‍तविक कदम की मीडिया को भनक तक नहीं लग पाती।

यकीन न हो तो नोटबंदी से लेकर रामनाथ कोविंद को राष्‍ट्रपति बनाने या नीतीश को अपने खेमे में लाए जाने जैसी कोई भी घटना उठाकर देख लीजिए। मीडिया उधर गोहत्‍या और गो गुंडों में उलझा रहता है और इधर आराम से सारी बिसात अपने हिसाब से बिछा दी जाती है।

वास्‍तव में यह समय अपने विरोधियों को संदिग्‍ध बना देने का है। और इन विरोधियों में राजनीतिक विरोधी ही नहीं, मीडिया भी शामिल है। मेरा मानना है कि भाजपा ने बहुत सोच समझकर यह रास्‍ता अख्तियार किया है। इसमें हींग और फिटकरी के बिना ही चोखा रंग आने की गारंटी है। देख लीजिए नीतीश का उदाहरण। उन्‍हें अपने साथ लाकर भाजपा ने विकल्‍प की संभावना बन सकने वाले एक नेता को जड़ से ही खत्‍म कर दिया है। अब यदि नीतीश भविष्‍य में भाजपा का साथ छोड़ भी दें तो भी उन पर भरोसा कौन करेगा? ऐसी स्थितियां सामने वाले को कहीं का नहीं छोड़तीं।

यही हाल मीडिया का हो रहा है। मीडिया को ऐसी खबरों में उलझाया जा रहा है जिसके चलते उसकी विश्‍वसनीयता ही संदिग्‍ध हो जाए। मीडिया सुषमा स्‍वराज से लेकर सुमित्रा महाजन तक का नाम चलाता रहता है (या उससे चलवाया जाता है) और ऐन मौके पर रामनाथ कोविंद राष्‍ट्रपति बन जाते हैं। आप तो इस सरकार का कोई भी बड़ा मामला उठाकर देख लीजिए, मीडिया ने जब-जब भी, जो-जो भी कयास लगाए हैं, मोदी और शाह ने उसके ठीक उलट या उससे दूर दूर तक वास्‍ता न रखने वाली बात को ही अंजाम दिया है। मीडिया की खबरें मौसम की भविष्‍यवाणी जैसी बना दी गई हैं, जो कभी सच साबित नहीं होतीं।

इसीलिए मैंने कहा कि सारा खेल अपने विरोधियों पर से जनता का भरोसा खत्‍म करके उन्‍हें खल्‍लास कर देने का है। और इस लिहाज से अमित शाह ने भोपाल की प्रेस कान्‍फ्रेंस में जो कहा उसे मजाक नहीं बल्कि सच मानिए…

 

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