इंदौर में 22 और 23 अक्टूबर को हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2016 को लेकर सरकार गदगद भाव में है। समिट के अंतिम दिन मुख्यमंत्री ने इंदौर आने वाले निवेशकों के साथ साथ प्रदेश की जनता को संतुष्ट भाव से सूचित किया कि 2630 इरादा पत्रों यानी ‘इन्टेंशन टू इन्वेस्ट’ के जरिए 5 लाख 62 हजार 847करोड़ रुपए के प्रस्ताव मिले हैं। इस पांचवीं ‘ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ में 42 देशों के लगभग 4 हजार निवेशकों ने भाग लिया।
मुख्यमंत्री ने इसके साथ ही यह सूचना भी दी कि अगली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट इंदौर में 16 और 17 फरवरी 2019 को होगी। शिवराज द्वारा दी गई अगली समिट की ये तिथियां उतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं जितना मुख्यमंत्री का उसके साथ नत्थी किया गया यह बयान कि ‘उस समिट में भी मैं ही आपका स्वागत करूंगा।‘ निवेश प्रस्तावों से उत्साहित और आत्मविश्वास से लबरेज शिवराज ने जब मीडिया के सामने यह घोषणा की तो स्वाभाविक रूप से उनसे सवाल किया गया कि क्या वे अगले चुनाव के बाद भी प्रदेश के मुख्यमंत्री रहेंगे? शिवराज का जवाब था- ‘’प्रदेश में 2018 में विधानसभा चुनाव होने हैं, इस कारण ये तिथियां तय की गई हैं। इसका मतलब आप जो निकालना चाहे निकाल लें।‘’
यानी तमाम अटकलबाजियों और पार्टी के अंदरूनी झंझावातों एवं हमलों से अविचलित होने का भाव दिखाते हुए शिवराज ने यह साफ संकेत दिया कि पार्टी व जमीन पर उनकी पकड़ को कमजोर न समझा जाए। कहने को यह बात उन्होंने निवेशकों से कही, वो इसलिए कि निवेशक ‘शिवराज सरकार’ में निश्चिंत होकर निवेश करें, सरकार ने जो ‘निवेश मित्र’ माहौल और नीतियां तैयार की हैं, और निवेशकों से जो वायदे किए गए हैं, उनमें रत्ती भर भी बदलाव नहीं आने वाला है, क्योंकि प्रदेश का अगला नेतृत्व भी वही होगा जो आज है। लेकिन निवेशकों से ज्यादा यह संदेश शिवराज ने अपने राजनीतिक विरोधियों को दिया है। आमतौर पर शिवराज इस तरह के बड़बालेपन से बचते हैं, लेकिन इंदौर में शायद उन्होंने पाया होगा कि ‘मौका भी है और दस्तूर भी’ सो सही समय पर यह बयान ठोक दिया।
इससे पहले मोदी सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का उद्घाटन करते हुए कहा था कि‘’मध्यप्रदेश में निवेश के अनुकूल नेतृत्व है। यहां के नेतृत्व ने सफलतापूर्वक आगे बढ़ने की तीव्र आकांक्षा को साकार किया है। शिवराज के स्पष्ट रोडमेप और दृढ़ इच्छाशक्ति ने प्रदेश को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। तेरह साल पहले का यह बीमारू राज्य आज देश के सर्वाधिक निवेश वाले 5 राज्यों में से एक है।‘’
शिवराज के ताज में मानो इतने ‘मोरपंख’ कम थे, जो रही सही कसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्वेस्टर्स समिट खत्म होने के दूसरे दिन 24 अक्टूबर को उत्तरप्रदेश में पूरी कर दी। चुनावी अभियान के तहत महोबा में एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने एक तरह से उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के ‘बुंदेलखंड’का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर डाला। उन्होंने शिवराज सरकार की तारीफ करते हुए मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड को उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड की तुलना में कई गुना आगे बताया। अपने गृह राज्य गुजरात का उदाहरण देते हुए मोदी बोले- ‘’बुंदेलखंड के कई लोग गुजरात में हैं, मैं जब उनसे पूछता था कि वे मध्यप्रदेश वाले बुंदेलखंड से हैं या उत्तरप्रदेश वाले से, तो उनका जवाब होता उत्तरप्रदेश वाले। क्योंकि वहां रोजगार नहीं होता।‘’
निश्चित रूप से केंद्रीय नेतृत्व की ओर से मिलने वाली ये प्रशंसाएं किसी की भी छाती को चौड़ा कर देंगी। शिवराज आज यदि यह दावा कर रहे हैं कि 2019 में होने वाली अगली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भी वे ही निवेशकों का स्वागत करेंगे तो यह उनकी छाती चौड़ी होने का सबूत माना जा सकता है।
लेकिन… लेकिन… लेकिन… सार्वजनिक मंचों से होने वाली इन तारीफों और घोषणाओं के समानांतर जमीनी हकीकत को देखने की भी जरूरत है। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में दावे कितने भी किए गए हों, सबसे बड़ी चुनौती उन्हें यथार्थ में जमीन पर उतारने की है। एमओयू और निवेश घोषणाएं तो पहले भी हुई हैं लेकिन जमीन पर उसका कितना अंश उतरा है, यह किसी से छिपा नहीं है। इसी तरह प्रधानमंत्री ने भले ही मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड को उत्तरप्रदेश से बेहतर बताया हो लेकिन वहां रहने वाले लोग जानते हैं कि हालात क्या हैं। मध्यप्रदेश में आज भी सर्वाधिक पलायन बुंदेलखंड से ही होता है। चाहे शिशु मृत्यु दर का मामला हो या बच्चों के टीकाकरण का, बुंदेलखंड राज्य का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है।
प्रदेश में निवेश हो यह कौन नहीं चाहेगा, लेकिन उसके समानांतर सामाजिक कल्याण की योजनाओं का वास्तविक क्रियान्वयन हो यह भी तो कोई चाहे। 25 अक्टूबर के अखबार में, राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे का एक बयान छपा है जिसमें वे कहते हैं- ‘’हमें शर्म आती है जब लोग कहते हैं कि सरकार मिट्टी मिला गेहूं दे रही है…’’
तो अनुरोध बस इतना सा है कि गर्व के विषयों के साथ साथ, इन ‘शर्म’ के विषयों पर भी नजर चली जाया करे…