स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण के 125 साल पूरे होने पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- ‘’क्या कभी हमें विचार आता है कि हरियाणा का कॉलेज हो और हम तय करें कि आज तमिल-डे मनाएंगे। पंजाब का कॉलेज हो और तय करें कि आज केरल-डे मनाएंगे। दो गीत उसके गाएंगे दो गीत उसके सुनेंगे। उनके जैसा पहनावा पहन कर उस दिन कॉलेज आएंगे। हाथ से चावल खाने की आदत डालेंगे। कॉलेज में कोई मलयालम फिल्म देखेंगे, तमिल फिल्म देखेंगे। वहां से कुछ नौजवानों को बुलाएंगे भाई तुम्हारे तमिलनाडु के गांव में कैसे खेल खेले जाते हैं आओ खेलते हैं। मुझे बताइए डे मनेगा कि नहीं मनेगा।‘’
प्रधानमंत्री ने सभागार में मौजूद युवाओं से पूछा कि ऐसा कोई भी डे मनाने से एक भारत, श्रेष्ठ भारत बनेगा कि नहीं बनेगा। उन्होंने कहा हम भारत की विविधता में एकता को लेकर बातें तो बहुत करते हैं लेकिन क्या इस विविधता के गौरव को जीने का प्रयास भी कभी किया जाता है? ‘’जब तक हम हिंदुस्तान में हर राज्य के प्रति गौरव का भाव पैदा नहीं करेंगे, हर भाषा के प्रति गौरव का भाव पैदा नहीं करेंगे यह संभव नहीं है। मुझसे मिलने आए तमिलनाडु के नौजवानों से जब मैंने वणक्कम कहा तो वे एकदम से खुश हो गए।‘’
मोदी ने कहा हमारे भीतर का इंसान हर पल उजागर होते रहना चाहिए। युवा वो करें जिससे देश की ताकत बढ़े देश का सामर्थ्य बढ़े और देश की आवश्यकता की पूर्ति हो। जब तक हम इन चीजों से अछूते रहेंगे हम धीरे-धीरे सिमट जाएंगे|
मोदी के इस भाषण से मुझे दो साल पहले भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान दिया गया उनका एक और भाषण याद आ गया। उसमें उन्होंने कहा था- ‘’हमारा ये निरंतर प्रयास रहना चाहिए कि हमारी हिंदी भाषा समृद्ध कैसे बने। मेरे मन में एक विचार आता है, भाषाशास्त्री उस पर चर्चा करें। क्या कभी हम हिंदी और तमिल भाषा की वर्कशॉप करें और विचार करें कि तमिल भाषा में जो अद्धभुत शब्द हो, क्या उसको हम हिंदी भाषा का हिस्सा बना सकते हैं? हम कभी बांग्ला भाषा और हिंदी भाषा की वर्कशॉप करें, बांग्ला के पास, जो अद्भभुत शब्द-रचना हो, अद्भभुत शब्द हो, जो हिंदी के पास न हों (तो सोंचें कि) क्या हम उनसे ले सकते हैं, कि भई ये हमें दीजिए,हमारी हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए इन शब्दों की हमें जरूरत है।‘’
उन्होंने कहा था- ‘’जम्मू कश्मीर में गए, वहां डोगरी भाषा में दो-चार ऐसे शब्द मिल गए, दो-चार ऐसी कहावतें मिल गईं, दो-चार ऐसे वाक्य मिल गए जो मेरी हिंदी में अगर फिट होते हों (तो उन्हें अपना लें)। हमें प्रयत्नपूर्वक यह करना चाहिए कि हिंदुस्तान की सभी बोलियों, हिंदुस्तान की सभी भाषाओं, जिनमें जो उत्तम चीजें हैं, उन्हें हम समय-समय पर हिंदी भाषा की समृद्धि के लिए, उसका हिस्सा बनाने का प्रयास करें। और यह प्रक्रिया अविरत चलती रहनी चाहिए।‘’
‘’मैं तो सार्वजनिक जीवन मैं काम करता हूं। कभी तमिलनाडु चला जाऊं और वणक्कम बोल दूं, मैं देखता हूं कि पूरे तमिलनाडु में एक बिजली सी दौड़ जाती है। बंगाल का कोई व्यक्ति मिले और भालो आसी पूछ लिया, उसकी प्रशंसा हो जाती है, कोई महाराष्ट्र का व्यक्ति मिले, कसाकाय, काय चलता है कहो तो वह एकदम प्रसन्न हो जाता है। भाषा की अपनी एक ताकत होती है। और इसीलिए हमारे देश के पास इतनी समृद्धि है, इतनी विशेषता है,मातृभाषा के रूप में हर राज्य के पास ऐसा अनमोल खजाना है, उसको हम कैसे जोड़ें और इस जोड़ने में हिंदी भाषा एक सूत्रधार का काम कैसे करे, उस पर अगर हम बल देंगे, तो हमारी भाषा और ताकतवर बनती जाएगी।‘’
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अब आप ऊपर लिखे सारे पैराग्राफ में यह भूल जाएं कि वह बात किसने कही है (क्योंकि यहां मुद्दा राजनीतिक विश्लेषण का नहीं है) तो जो निचोड़ निकलेगा, वह यही होगा कि भारत की अनेकता या विविधता में एकता का सूत्रधार यदि कोई भाषा हो सकती है तो वह हिन्दी ही है। वही हिन्दी जिसका दिन हमने 14 सितंबर यानी आज मुकर्रर कर रखा है। लेकिन हिन्दी एक दिन की नहीं हमारे दिल की भाषा है। और यह हिन्दी ही है जिसमें इतनी ताकत है कि वह भारत की बोलियों, विभिन्न भाषाओं, यहां तक कि विदेशी भाषाओं के शब्दों को भी पचा या अपने में समाहित कर सकती है।
इसलिए हिन्दी और दूसरी भाषाओं के बीच वर्चस्व का विवाद खड़ा करने या हिन्दी में दूसरी भाषाओं के शब्दों के समावेश पर छाती कूटने के बजाय हम उसकी इस सर्वग्राह्य शक्ति पर गर्व करें। हां, हिन्दी को भ्रष्ट करने या अनावश्यक रूप से विदेशी भाषाओं के शब्द उस पर लादने के जो प्रयास हो रहे हैं उनका जरूर विरोध हो। लेकिन हिन्दी का जो प्रवाह है उसे रोकने के प्रयास नहीं होने चाहिए। भाषा होती ही बहती धारा की तरह है,उसमें समय के साथ कई नए शब्द जुड़ते जाते हैं तो कई शब्द किनारे पर धकेल दिए जाने के बाद स्वत: अलग थलग पड़ जाते हैं।
प्रधानमंत्री के दो भाषणों का जिक्र करने का यहां मकसद सिर्फ इतना है कि शीर्ष स्तर से जब कोई बात चलती है तो यह आश्वस्ति रहती है कि कोई भी नई शुरुआत होगी तो ऊपर से कोई पेंच नहीं फंसेगा। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हिन्दी के बारे में हम जब भी सोचें नीचे देखकर नहीं गर्व से सिर उठा कर सोचें… तभी हिन्दी भी गौरवान्वित होगी और हिन्दुस्तान भी… क्योंकि भारत की विविधता और एकता दोनों को एक सूत्र में पिरोए रखने की ताकत सिर्फ इसी भाषा में है…