भारतीय राजनीति में वीर सावरकर के अंग्रेजों से माफीनामे की अकसर चर्चा होती रहती है। वामपंथी विचारधारा के लोग इस माफीनामे को लेकर अकसर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के अलावा हिन्दूवादी विचारधारा के लोगों पर निशाना साधते रहे हैं।
29 मई को पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने अपनी फेसबुक वॉल पर इस संबंध में एक टिप्पणी पोस्ट की है। यह टिप्पणी सावरकर की माफी को लेकर नई बात उजागर करने वाली है। आप भी जानिए क्या कहती है यह टिप्पणी-
सावरकर के माफीनामे पर
‘’इस माफीनामे की चर्चा तो बहुत है मगर आज तक इसकी पुष्टि नहीं हुई। इस माफीनामे की चर्चा आजादी के बाद सावरकर की मृत्यु के बाद शुरू हुई। उनके जीवन चरित्र में क्रिक नामक लेखक ने इसका उल्लेख किया था मगर अगले एडिशन में उन्होंने इस आरोप को अपनी पुस्तक से खारिज कर दिया।
इसका कारण यह था कि वह इस माफीनामे की पुष्टि नहीं कर सके थे। कुछ संस्थाओं ने उन्हें मानहानि का नोटिस दिया था और उनसे अनुरोध किया था कि या तो वो इस आरोप को वापस ले लें या इसकी पुष्टि करें। वह इसकी पुष्टि नहीं कर सके और उन्होंने इस आरोप को वापस ले लिया।
इस पुस्तक के पहले संस्करण में लगाए गए इस आरोप को वामपंथियों ने खूब उछाला। कोच्चि से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक वीक ने 2014 में एक लेख में इस संदर्भ में आरोप लगाया था। मगर जब सावरकर के परिजनों ने उन्हें लीगल नोटिस दिया तो समाचारपत्र ने माफी मांगी।
यह स्थिति है जिसकी मैंने स्पष्ट रूप से व्याख्या कर दी। आप निष्कर्ष स्वयं निकाल सकते हैं। @Manmohan Sharma
(हितेश शंकर की फेसबुक वाल से साभार)