रवीन्द्र व्यास
छतरपुर/ बुंदेलखंड में राजनीतिज्ञों की दखलंदाजी कानून व्यवस्था में कितनी जबरदस्त है इसका एक उदाहरण दमोह जिले में देखने को मिला। इस जिले के पथरिया विधायक के कथित रसूख के चलते कानून के रखवालों ने विधायक के पति को हत्या जैसे गंभीर आरोप से भी कथित रूप से बचाने का जतन किया। पुलिस की इस गैर जिम्मेदाराना हरकत के विरोध में हटा के नागरिकों ने जुलाई 19 में एक दिन का बाजार बंद रखा, प्रदर्शन कर ज्ञापन भी सौंपा था। इतना ही नहीं पीडि़त चौरसिया परिवार को दबाने के लिए उन पर फर्जी मामले भी दर्ज कराये गए थे।
हटा के द्वितीय अपर सत्र न्यायधीश संजय चौहान ने हाल ही में इस मसले पर ना सिर्फ सख्त टिप्पणी की है बल्कि उन्होंने पुलिस डीजी से दोषी पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की अपेक्षा भी की है। उन्होंने विधायक पति गोविंदसिंह के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने के भी निर्देश दिए हैं।
15 मार्च 2019 को बसपा से कांग्रेस में आये नेता देवेंद्र चौरसिया की राजनैतिक रंजिश को लेकर हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद देवेंद्र के भाई महेश चौरसिया ने हटा थाने में विधायक रामबाई के पति गोविन्द सिंह, देवर चंदू सिंह, भतीजे गोलू सिंह, गोविंद सिंह, श्रीराम शर्मा, अमजद और बूटा लोकेश सिंह, इंद्रपाल पटेल आदि के नाम से एफआईआर दर्ज कराई थी। जिसमें कहा गया था कि आरोपियों ने देवेंद्र चौरसिया को गाली देकर बुलाया और पार्टी बदलने पर नाराजी जाहिर करते हुए उस पर हमला कर दिया। सोमेश बचाने आया तो उस पर भी प्राणघातक हमला किया गया। घटना में देवेंद्र की मौत हो गई जबकि सोमेश गंभीर रूप से घायल हो गया। पुलिस ने इस पर आरोपी चंदू सिंह, गोलू ठाकुर, लोकेश पटेल, इंद्रपाल पटेल, अमजद पठान, श्रीराम शर्मा, राजेंद्र उर्फ राजा डॉन, अनीश खान, मोनू, अनीश पठान, विकास पटेल, बलवीर ठाकुर, सोहेल खान, शाहरुख खान, भान सिंह परिहार, आकाश परिहार, संदीप तोमर, खूबचंद पटेल, विक्रम सिंह, सुखेंद्र आटे के विरुद्ध धारा हत्या और जानलेवा हमले के साथ साथ आर्म्स एक्ट तथा आरोपी रत्नेश पटेल के विरुद्ध धारा 226 के अंतर्गत मामला दर्ज कर 13 जून 2019 को अदालत में अभियोग पत्र प्रस्तुत किया थाl
हालांकि इसमें मुख्य आरोपी विधायक पति गोविन्द सिंह का नाम नहीं था। जबकि मामले के मुख्य रिपोर्टकर्ता महेश चौरसिया ने अपनी रिपोर्ट में मुख्य आरोपी गोविन्द सिंह को ही बताया था। पुलिस ने तथाकथित विवेचना में उसका नाम गायब कर दिया था। चौरसिया परिवार और अन्य गवाहों ने तमाम तरह की धमकियों के बावजूद न्यायालय में गोविन्द सिंह को ही मुख्य आरोपी बताया था। पुलिस की इस हरकत के बाद महेश चौरसिया ने अपने अधिवक्ता गजेंद्र चौबे, मनीष नगायच और अमिताभ चतुर्वेदी के जरिये धारा 319 का एक आवेदन न्यायालय में दिया था।
महेश चौरसिया के इस आवेदन पर फैसला देते हुए द्वितीय अपर सत्र न्यायधीश संजय चौहान ने फैसला दिया कि अभियुक्त गोविंद सिंह जो कि विधायक रामबाई का पति है उसे लाभ पहुंचाने की नीयत से पुलिस द्वारा कार्रवाई समाप्त की गई है और जिस विवेचक द्वारा, अभियुक्त गोविंद सिंह के विरुद्ध 31 अगस्त 19 को तत्कालीन थाना प्रभारी हटा एवं अन्य पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा विवेचना बंद करने की अनुमति प्रदान की गई है उसका यह कृत्य अपने शासकीय कर्तव्य के निर्वहन के विपरीत और निंदनीय है। ऐसे पुलिसकर्मियों के कारण पुलिस की छवि धूमिल होती है और समाज पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। आमजन पुलिस को गलत निगाह से देखते हैं। जबकि पुलिस समाज की रक्षक है। उसके द्वारा अवैध प्रक्रिया अपनाते हुए अभियुक्त गोविंद सिंह को विधायक पति होने के कारण और उनके राजनीतिक दबाव में आकर बचाया गया है। पुलिस की इस कार्यवाही का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और पुलिस पर कोई विश्वास भी नहीं करेगा। अत: ऐसे पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाना आवश्यक है।
पुलिस महानिदेशक से अपेक्षा की जाती है कि ऐसे पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध जांच कराएं और यदि वे दोषी पाए जाते हैं तो उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई कर अदालत को अवगत कराएं। कोर्ट ने इस प्रकरण के कुछ अभियुक्तों की नियमित जमानत भी निरस्त की।
उधर विधायक रामबाई का कहना है कि उनके पति निर्दोष हैं, जिसके तमाम साक्ष्य उनके पास हैं। वे कोर्ट के आदेश का सम्मान करती हैं। उन्होंने संकेत दिए कि वे एडीजे कोर्ट आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगी।