उफ..! अंतिम संस्‍कार के लिए भी सिफारिश का विचार?

ममता की कहानी पढ़ने के बाद कई लोगों की प्रतिक्रियाएं आई हैं। जब वह श्रृंखला छप रही थी उस दौरान भी मुझे कई लोगों ने फोन किए। चूंकि मैं इसे अपनी फेसबुक वॉल पर भी शेयर कर रहा था इसलिए वहां भी कई लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं व्‍यक्‍त कीं। इसके अलावा वाट्सएप पर भी मुझे कई संदेश मिले हैं।

इन सारी प्रतिक्रियाओं में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को लेकर लोगों के मन में गुस्‍सा तो था ही लेकिन अधिकांश लोगों ने बातचीत के दौरान एक और बात कही। उनका कहना था कि जब आप जैसे लोगों को राजधानी में रहकर ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है तो फिर जरा सामान्‍य आदमी या उन गरीबों और वंचितों की सोचिए जिनका कोई माई बाप नहीं…

पाठकों की इस बहुत खरी खरी प्रतिक्रिया ने मुझे और सोचने पर मजबूर कर दिया। हालांकि मैंने पूरी आपबीती के दौरान खुद कुछ मौकों पर जानबूझकर इस बात का जिक्र किया कि ये हालात हमारे साथ उस समय बन रहे थे जब न तो हम संपर्कों के लिहाज से खाली हाथ थे और न ही ऐसी कोई बात थी कि हम अपने परिजन का इलाज न करवा सकें।

लेकिन आज भी हमारे यहां बुनियादी सुविधाओं के लिए आपका संपर्कवान होना बहुत जरूरी है। यदि आप किसी को ऊपर से कुछ कहलवा सकें, फोन करवा सकें तो उम्‍मीद रख सकते हैं कि आपकी बात सुनी जा सकती है। हालांकि इस बात की गारंटी फिर भी नहीं है कि काम होगा या नहीं।

जिस बात ने मुझे सबसे ज्‍यादा कचोटा वह यह थी कि जब ममता को हमें सरकारी हमीदिया अस्‍पताल में भरती करवाना था तब भी हमें ऊपर से सिफारिश करवानी पड़ी। यह बात अलग है कि वह सिफारिश भी हमारे कोई काम नहीं आई। ऐसी दूसरी स्थिति तब बनी जब ममता इस दुनिया में नहीं रही और हमें उसका अंतिम संस्‍कार करना था।

मैंने इस बात का जिक्र किया है कि परिस्थितिजन्‍य कारणों से हम उसका अंतिम संस्‍कार विद्युत शवदाह गृह में ही करना चाहते थे। इसके लिए परिवार के लोग राजी भी हो गए थे, लेकिन स्थिति यह है कि भोपाल में सिर्फ एक, सुभाष नगर श्‍मशान घाट पर ही इसकी सुविधा उपलब्‍ध है। जब हम वहां संपर्क कर रहे थे तब भी हमारी वैसी ही मन:स्थिति थी जैसी हमीदिया अस्‍पताल में ममता को भरती करवाने का उपक्रम करते समय थी।

जब विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्‍कार की बातचीत चल रही थी उसी समय मेरे मन में यह विचार आया कि यदि सुभाष नगर विश्राम घाट पर कोई दिक्‍कत आई तो मैं नगीन बारकिया जी की मदद ले लूंगा। नगीन बारकिया नवदुनिया में मेरे सहयोगी रहे हैं और उनकी पत्‍नी स्‍थानीय पार्षद हैं। तो पहला ही विचार यह कौंधा कि यदि कोई परेशानी हुई तो स्‍थानीय पार्षद के नाते उनसे सिफारिश करवा लेंगे कि विद्युत शवदाह गृह की सुविधा मिल जाए।

यह बात अलग है कि ज्‍यादातर दिनों की तरह उस दिन भी सुभाषनगर का विद्युत शवदाह गृह चालू नहीं था और अंतिम संस्‍कार तक के लिए सिफारिश लगवाने का हमारा वो विचार भी धरा का धरा रह गया। लेकिन बाद में मैंने सोचा कि ये कौनसी स्थितियां हैं? आखिर हमने कौनसी तरक्‍की की है?

जब आपको किसी मरीज को सरकारी अस्‍पताल में भरती करवाने से लेकर उसके अंतिम संस्‍कार करने तक के लिए सिफारिश लगवाने का विचार मन में लाना पड़े तो क्‍या हम कह सकते हैं कि विकास के हमारे दावे अपनी जगह दुरुस्‍त हैं? आखिर क्‍यों सरकारी अस्‍पताल में भरती होने के लिए भी अपनी पहुंच का इस्‍तेमाल करना पड़े। आखिर क्‍यों विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्‍कार के लिए जोड़ जुगाड़ लगाने की बात सोचनी पड़े।

इसी भोपाल में, मध्‍यप्रदेश की राजधानी में न जाने कौन कौन से अनावश्‍यक ढांचे खड़े करने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जाता है, लेकिन शहर के सभी बड़े श्‍मशान घाटों पर विद्युत शवदाह गृह जैसी सुविधा है ही नहीं। और जिस एकमात्र विश्राम घाट पर यह सुविधा है वह साल में ज्‍यादातर बंद ही रहती है।

बड़े बड़े भाषण देने और वायदों के नाम पर लफ्फाजी करने वाले कर्ताधर्ताताओं को यह मामूली सी बात समझ में क्‍यों नहीं आती कि विद्युत शवदाह गृह आज की जरूरत है। पेड़ और पर्यावरण प्रदूषण बचाने के लिहाज से भी इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। क्‍या विधायक या सांसद निधियों से सड़कों पर अतिक्रमण कर बनाए जाने वाले चतूबतरों से ज्‍यादा जरूरी ये सुविधाएं नहीं हैं?

आखिर क्‍या वजह है कि ऐसी बुनियादी सुविधाओं की ओर भी जनप्रतिनिधियों अथवा सरकार का ध्‍यान नहीं जाता। यदि सुविधा उपलब्‍ध होगी तभी तो लोग उसके उपयोग के बारे में सोचेंगे या कि उन्‍हें उसके उपयोग के बारे में जागरूक किया जा सकेगा। लेकिन जब सुविधा ही नहीं है तो बात शुरू होने से पहले ही खत्‍म हो जाती है।

यूं तो हमने डॉक्‍टरों से भी पूछ लिया था और उन्‍होंने बहुत स्‍पष्‍ट तौर पर बताया था कि रेबीज के मरीजों का अंतिम संस्‍कार करने के लिए अलग से कोई प्रोटोकॉल नहीं है। लेकिन यदि ऐसी नौबत आ ही जाए जिसमें मरीज के अंतिम संस्‍कार को खुले में करना संभव न हो या कि वह अन्‍य लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिहाज से हितकर न हो तब हम क्‍या करेंगे?

इसलिए जरूरी है कि न सिर्फ भोपाल में बल्कि प्रदेश के हर शहर में विद्युत शवदाह गृहों का निर्माण किया जाए। छोटे शहरों में कम से कम एक और बड़े शहरों में एक से अधिक विश्राम घाटों पर इस तरह की सुविधा मुहैया होनी चाहिए। क्‍या हम लोगों को उनकी मर्जी के हिसाब से अपने परिजन का अंतिम संस्‍कार करने की सुविधा भी नहीं दे सकते…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here