आज शतक पूरा हुआ…

गिरीश उपाध्‍याय 
चाहे लेखन की भाषा हो या बोलचाल की, उसमें हमारी कहावतों और मुहावरों का अलग ही महत्व है। लेकिन ज्यादातर मामलों में हम आज भी परंपरागत रूप से चले आ रहे मुहावरों का ही उपयोग कर लेते हैं। कुछ समय पहले यूं ही एक विचार आया था कि क्यों न बदलते जमाने के साथ चलने वाले कुछ नए मुहावरे गढ़े जाएं। उसी को लेकर रोज एक मुहावरा अपने मित्रों के साथ शेयर करना शुरू किया। मुझे यह बताते हुए खुशी है कि आज ऐसे मुहावरों का शतक पूरा हो गया है। और यह भी संयोग ही है कि ऐसा ‘मातृभाषा’ दिवस के दिन हुआ है।
मैं आभारी हूं अपने उन सभी मित्रों का जिन्होंने हिन्दी में गढ़े इन कुछ अलग किस्म के मुहावरों को पसंद किया। आभार उन लोगों का भी जिन्होंने कई मुहावरों पर अपनी प्रतिक्रिया/टिप्पयां दीं और उनके और भी अलग अलग अर्थ खोजे… कहावतें और मुहावरे हम समाज के साथ रहते हुए अपने अनुभवों से ही गढ़ते हैं और इस लिहाज से जो कुछ भी है वह सब समाज का ही दिया हुआ है। इसलिए ये सारे मुहावरे समाज को, खासतौर से हिन्दी भाषी समाज को समर्पित हैं…
शतक पूरा हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि अब यह काम बंद हो जाएगा… कोशिश करता रहूंगा जब तक कि चुक नहीं जाता… हां, कुछ मित्रों/शुभचिंतकों के सुझाव पर इन मुहावरों की एक छोटी सी पुस्तिका के प्रकाशन का विचार है… देखते हैं यह काम कैसे और कब संभव हो पाता है। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि मित्रों/शुभचिंतकों के सहयोग के बिना तो शायद यह नहीं हो पाएगा… सो अब आप ही तय करें…
भाषा के मैदान पर इस अनूठे शतक के मौके पर एक दुस्साहस और…
पिछले दिनों आप सभी ने मेरे एक मुहावरे को बहुत पसंद किया और वह मुहावरा था- ‘’सुनो बसंत! हमने पेड़ काटकर पौधे लगाने का हुनर सीख लिया है…’’ दरअसल यह मुहावरा मेरी एक छोटी सी कविता का हिस्सा है। चूंकि मैंने कविता को अब तक स्वांंत:सुखाय के दायरे में ही रखा है, इसलिए बहुत संकोच के साथ वह पूरी कविता इस मौके पर आपके साथ साझा कर रहा हूं-
सुनो बसंत
हमने पेड़ काटकर
पौधे लगाने का हुनर सीख लिया है
सुनो नदी
हमने धारा को रोककर
बिजली बनाना सीख लिया है
सुनो हवा
हमने मशीन लगाकर
तुम्हें साफ करना सीख लिया है
सुनो पहाड़
हमने तुम्हारा गला रेतकर
रास्ता निकालना सीख लिया है
सुनो बारिश
हमने शॉवर में तुम्हारी फुहारों
का विकल्प खोज लिया है
सुनो ठंड
किसी की आह पर अब हम
तुमसे ज्यादा ठंडा होना जानते हैं
सुनो गरमी
अब हमने दर्द पर पिघलना छोड़ दिया है
दाद नहीं दोगे हमारे हुनरमंद होने की
हमने क्या क्या क्या क्या सीख लिया है
…………….
अपना प्यार और स्नेह यूं ही बनाए रखें

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