देश में पिछले लंबे समय से चल रही आर्थिक मंदी की खबरों के बीच पिछले दो महीनों के दौरान वित्त मंत्री ने पटरी से उतरती अर्थ व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के उपायों के तौर जो घोषणाएं की हैं उन्हें लेकर कहा जा रहा है कि ये उपाय देश के कारोबार जगत के मन में बैठ गए मंदी के डर को बहुत हद तक कम करने में कामयाब होंगे।
वित्त मंत्री का सबसे ताजा और सबसे बड़ा ऐलान कॉरपोरेट टैक्स में आठ फीसदी की कमी करना है। अब तक कॉरपोरेट टैक्स 30 फीसदी की दर से वसूला जाता था जो अब 22 फीसदी कर दिया गया है। बड़ी बात यह भी है कि इसे एक अप्रैल 2019 से लागू किया गया है, यानी इसका लाभ चालू वित्त वर्ष की पूरी अवधि के लिए मिलेगा। इसके साथ ही नई कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दरें 25 से घटाकर 15 फीसदी कर दी गई हैं।
वित्त मंत्री के अनुसार कॉरपोरेट को एक ही झटके में इतनी भारी भरकम रियायत देने के चलते सरकारी खजाने पर करीब एक लाख 45 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। वित्त मंत्री की इस घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए सरकारी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि यह पिछले 28 साल में कॉरपोरेट सुधार के लिहाज से उठाया गया सबसे ‘बोल्ड’ कदम है। इससे पहले 1991 में इस तरह के सुधार हुए थे।
लगातार आ रही आर्थिक मंदी की खबरों और विदेशी निवेशकों की बेरुखी और निकासी के चलते मंदी की चपेट में आ रहे शेयर बाजार ने वित्त मंत्री की घोषणा को हाथोंहाथ लिया। खबरें कहती हैं कि निर्मला सीतारमन की घोषणा के बाद बाजार ऐसा उछला कि 20 सितंबर को 1921.15 अंकों की छलांग लगाते हुए 36093.47 अंकों से बढ़कर 3814.62 अंक पर जा पहुंचा।
सेंसेक्स की पिछले दस सालों में यह सबसे ऊंची छलांग है। इससे पहले 18 मई 2009 को सेंसेक्स रॉकेट बना था और उसने एक ही दिन में 2110.79 अंकों की छलांग लगाई थी। बाजार के विश्लेषक बता रहे हैं कि सेंसेक्स की इस छलांग से निवेशकों को एक ही दिन में 6.83 लाख करोड़ रुपए का फायदा हुआ। और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का मार्केट कैप 138.54 लाख करोड़ से बढ़कर 145.37 करोड़ रुपए हो गया।
कॉरपोरेट टैक्स की दरों में कमी के बाद दावा किया जा रहा है कि इससे दुनिया भर के निवेशकों के लिए भारत बहुत बड़ा आकर्षण का केंद्र होगा। अभी अमेरिका में कॉरपोरेट टैक्स की दर 27, कनाडा में 26.5, ब्राजील में 34, चीन में 25, फ्रांस में 31 और जर्मनी में 30 फीसदी है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर के चलते भी कॉरपोरेट टैक्स की घटी हुई दरों का फायदा भारत को मिल सकता है।
वित्त मंत्री की घोषणा का उद्योग और कॉरपोरेट जगत ने स्वागत करते हुए, इसे जरूरी और समय पर उठाया गया कदम बताया है। फिक्की जैसे संगठनों का मानना है कि इससे भारत के आर्थिक जगत में तेजी आएगी और मंदी के माहौल एवं खरीदारी में उदासीनता के कारण जो मायूसी छाई हुई थी उसे दूर करने में मदद मिलेगी।
इस समय अमेरिका के अपने महत्वपूर्ण दौरे पर निकले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताजा ऐलान को लेकर कहा कि यह फैसला ऐतिहासिक है, इससे मेक इन इंडिया को गति मिलेगी। साथ ही दुनिया भर से निवेश आकर्षित करने में भी मदद मिलेगी। हमारे निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धी क्षमता में बढ़ोतरी होगी और ज्यादा रोजगार पैदा होंगे। पिछले कुछ हफ्तों में किए गए ऐलान हमारी सरकार की इस प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं कि भारत को व्यवसाय के लिए बेहतर जगह बनाने के लिए हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
लेकिन सरकार के इन तमाम फैसलों को लेकर विशेषज्ञों के बीच अलग राय भी है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि कॉरपोरेट टैक्स में छूट के चलते राजकोष को जो एक लाख 45 हजार करोड़ का घाटा होगा उसकी भरपाई कब और कैसे होगी। विशेषज्ञों को आशंका है कि इतनी बड़ी राशि का झटका कहीं अर्थव्यवस्था को और कमजोर न कर दे।
हालांकि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि सरकार की ओर से 1.45 लाख करोड़ रुपये की कर छूट देने के फैसले का राजकोषीय घाटे पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। कंपनी कर में दी गई छूट से उच्च वृद्धि हासिल होगी और कर संग्रह बढ़ेगा जिससे नुकसान की भरपाई हो जाएगी।
कुमार के मुताबिक ‘’इन उपायों से वृद्धि तेज होगी और इससे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों का संग्रह भी बढ़ेगा। इससे राजस्व को होने वाले नुकसान की भरपाई हो जाने का अनुमान है। कर तथा इतर मोर्चों से अधिक राजस्व प्राप्त होने से सरकार को राजकोषीय नुकसान की भरपाई करने में मदद मिलेगी। जीडीपी की पांच प्रतिशत की वृद्धि दर अपने चक्र के सबसे निचले स्तर है। सुधारात्मक उपायों से हम इस साल करीब 6.50 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर लेंगे।‘’
सरकार और उसके अधिकारियों की राय बहुत उम्मीद से भरी हुई है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि कॉरपोरेट जगत को यह जो इतनी बड़ी राहत मिली है वह क्या वास्तविक अर्थों में बाजार तक पहुंच पाएगी, और क्या उसका देश की आम जनता को कुछ फायदा मिल सकेगा? ताजा घोषणा से कंपनियों को अपना घाटा कम करने और अपनी आर्थिक सेहत सुधारने में जरूर मदद मिल सकती है, लेकिन क्या उससे बाजार की दशा और उसके मनोभाव पर कोई असर पड़ेगा?
देश में इस समय रोजगार का सबसे बड़ा संकट है। एक तरफ बड़ी संख्या में छंटनी होने और कंपनियां व कारोबार बंद होने से लोगों का रोजगार छिन रहा है। दूसरी तरफ पूंजी के अभाव के चलते बाजार लगातार मंदी की गिरफ्त में आता जा रहा है। खुद विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक खरीदारी को बढ़ावा नहीं मिलेगा बाजार का मूड बिगड़ा ही रहेगा।
निश्चित रूप से सरकार ने रोजगार दे सकने वाले कई उद्योगों को सहायता देकर, अधिक से अधिक लोन के लिए बैकों को अतिरिक्त राशि उपलब्ध करवाकर, साथ ही अन्य कई रियायतें और राहत देकर उद्योग और कॉरपोरेट जगत को एक बार फिर बहुत बड़ा टेका लगाया है। अब इस सेक्टर की जिम्मेदारी है कि वह इसके जरिये देश की आर्थिकी को मजबूत करे साथ ही इसका लाभ वास्तविक अर्थ में लोगों तक पहुंचने के उपाय करे। उधर सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि इतनी बड़ी राहत यूं ही व्यर्थ न हो जाए।