‘अविश्‍वास’ की राजनीति से जहरीला होता लोकतंत्र

शुक्रवार को संसद में मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्‍वास प्रस्‍ताव की लहरें देश के राजनीतिक महासागर में अब भी उठ रही हैं और इनका मिजाज बताता है कि ये अभी जल्‍दी ठंडी होने वाली नहीं हैं। वैसे समुद्र में हाईटाइड आने पर लोगों को समुद्री किनारों से दूर रहने की सलाह दी जाती है, लेकिन राजनीति में इसका उलटा होता है। राजनीति के सागर में हाईटाइड आने पर नेता बयानों के सर्फ बोर्ड पर सवार होकर भविष्‍य की संभावनाओं की सर्फिंग पर निकल पड़ते हैं।

पूरी दुनिया में मशहूर हो चुके भारतीय संसद के ‘गले मिलो कांड’ के बाद सबसे बेहूदा और आपत्तिजनक बयान भाजपा नेता सुब्रमण्‍यम स्‍वामी का आया है। जिस समय मैं यह कॉलम लिख रहा हूं उस समय वह बयान आए हुए 50 घंटे से भी अधिक का समय निकल चुका है लेकिन उस पर वैसी चर्चा मैंने कहीं नहीं देखी जिसकी मैं उम्‍मीद कर रहा था।

20 जुलाई को संसद में अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर अपना भाषण पूरा करने के तत्‍काल बाद राहुल गांधी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास जाकर उनसे गले लिपटे, उसके अगले दिन यानी21 जुलाई की दोपहर सुब्रमण्‍यम स्‍वामी ने एक ट्वीट किया जिसमें उन्‍होंने कहा कि रूस और उत्तर कोरिया में जहर देने के लिए गले लगाने के तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पीएम मोदी को तुरंत अपनी मेडिकल जांच करानी चाहिए।

स्‍वामी ने राहुल का नाम लिए बिना इस ट्वीट में उन्हें ‘बुद्धू’ कहा। वहीं मोदी को उन्‍होंने ‘नमो’ के नाम से संबोधित किया। स्‍वामी ने कहा कि खुद को गले लगाने की अनुमति पीएम को नहीं देनी चाहिए थी। नमो तुरंत अपनी मेडिकल जांच करवा कर देखें कि कहीं सुनंदा पुष्‍कर की तरह उनके शरीर में भी कोई मोइक्रोस्‍कोपिक पंचर तो नहीं है।

अपने पाठकों के संदर्भ के लिए मैं स्‍वामी का वह ट्वीट यहां उद्धृत कर रहा हूं-

‘’Namo should not have allowed Buddhu to hug him. Russians and North Koreans  use the embrace technique to stick a poised needle. I think Namo should immediately go for a medical check to see if he has any microscopic puncture like Sunanda had on her hand’’

यह ट्वीट अपने आप में भारतीय राजनीति के पूरे चरित्र को उजागर करने वाला है। और ऐसा लगता है कि देश सिर्फ एक अविश्‍वास प्रस्‍ताव को ही नहीं झेल रहा बल्कि अविश्‍वास से भरी पूरी राजनीति को झेलने के लिए अभिशप्‍त होता जा रहा है। संसद में लाया गया अविश्‍वास प्रस्‍ताव राजनीतिक दलों के लिए भले ही सत्‍ता और विपक्ष का खेल हो, लेकिन मेरे लिए यह पूरे भारतीय समाज में पनप रही ‘अविश्‍वास की संस्‍कृति’ का प्रतीक है।

यह सभी जानते हैं कि देश में प्रमुख राजनेताओं के जीवन को खतरा रहता है। क्‍यों रहता है, इसके कारण अलग अलग हो सकते हैं। इनमें भी भारत के प्रधानमंत्री के लिए तो यह खतरा और भी बड़ा है। ऐसे में न सिर्फ हमारी सुरक्षा एजेंसियों की, बल्कि हर देशवासी की चिंता होनी चाहिए कि उनका प्रधानमंत्री सुरक्षित रहे।

जो लोग सुरक्षा संबंधी चिंताओं को समझते हैं वे यह अच्‍छी तरह जानते हैं कि एक प्रधानमंत्री की सुरक्षा करना कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है। पीएम की सुरक्षा को यह खतरा बाहर से ही नहीं बल्कि भीतर से भी है। यह समझने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि भारत ऐसे ही अपने दो प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को खो चुका है।

लेकिन सुब्रमण्‍यम स्‍वामी जो बात कह रहे हैं वह हमारी तमाम आशंकाओं से भी ऊपर… बहुत ऊपर जाकर यह इंगित कर रही है कि हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधियों के बीच, ऐन संसद के सदन में भी, हमारे प्रधानमंत्री सुरक्षित नहीं हैं। स्‍वामी का कथन सिर्फ प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर ही सवाल खड़े नहीं करता उससे भी अधिक गंभीर मुद्दा यह है कि वे ऐसी बात कहकर देश के सांसदों और देश की संसद तक को प्रधानमंत्री के लिए असुरक्षित बता रहे हैं।

यदि स्‍वामी राहुल गांधी के कदम को लेकर यह कहते हैं कि- रूस और उत्तर कोरिया में जहर देने के लिए गले लगाने के तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। नमो तुरंत अपनी मेडिकल जांच करवा कर देखें कि कहीं सुनंदा पुष्‍कर की तरह उनके शरीर में भी कोई मोइक्रोस्‍कोपिक पंचर तो नहीं है– तो शायद वे यह कहना चाह रहे हैं कि राहुल गांधी कहीं नरेंद्र मोदी की हत्‍या के इरादे से तो उनके गले नहीं मिले थे…?

याद रखिए, यह सवाल न केवल भाजपा का है और न ही कांग्रेस का, यह सवाल पूरी संसद, पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया और इन सबसे ऊपर हमारे पूरे सामाजिक और सांस्‍कृतिक चरित्र पर चस्‍पा किया गया है। क्‍या अब हमें यह भी मानकर चलना होगा कि देश में 60 सालों तक राज कर चुकी पार्टी का अध्‍यक्ष, जिसने प्रधानमंत्री के पद पर रही अपनी दादी और अपने पिता को आतंकी हमलों में गंवाया हो, वह खुद संसद के भीतर देश के प्रधानमंत्री पर जानलेवा हमला कर सकता है…?

मुझे लगता है 20 जुलाई को संसद में सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्‍वास प्रस्‍ताव के दौरान हुई उस ‘गले मिलो’ घटना का निचोड़ यदि यह निकाला जा रहा है तो यह हमारे लोकतंत्र की जड़ों को खत्‍म करने की शुरुआत है। मैंने यह तो सुना है कि उम्र के साथ लोकतंत्र भी मजबूत होता है, लेकिन मैंने यह कहीं नहीं सुना कि मजबूत होने के साथ साथ वह जहरीला भी होता जाता है।

स्‍वामी का बयान हमारे समाज के मानस में फैल रहे मवाद और जहर की बानगी है। क्‍या हम एक आदर्श लोकतंत्र के बजाय जहरीले लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ा रहे हैं?

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