मेरा किसी भी पार्टी से कोई व्यक्तिगत रागद्वेष नहीं है। लेकिन मध्यप्रदेश में इन दिनों राज्य के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस में जो कुछ चल रहा है, उसके रंग ढंग समझ से परे हैं। कांग्रेस तो चलो मान लें कि विपक्ष में होने और लगातार 13 साल से सत्ता से बाहर होने के कारण इस हालत में पहुंच गई है। वहां तो किसी को सूझ ही नहीं रहा कि सालों साल देश और प्रदेश में राज करने वाली इस पार्टी को फिर से कैसे खड़ा किया जाए?
लेकिन भाजपा को क्या हुआ? वह तो लगातार 13 साल से सत्ता में है। न सिर्फ प्रदेश में बल्कि देश में भी उसका राज है। उसके पास तो संगठन का बहुत पुख्ता और बेहतर ढांचा है। उसे अपेक्षाकृत अधिक अनुशासन वाली पार्टी माना जाता रहा है। एक समय उसके ‘चाल, चरित्र और चेहरा’ जैसे नारे की दुहाई दी जाती थी। वह ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ होती थी। ऐसी पृष्ठभूमि वाली भाजपा को क्या होता जा रहा है?
देश भाजपा शासित जितने भी राज्य हैं उनमें भी मध्यप्रदेश उन राज्यों में शामिल है जिसे भाजपा का अभेद्य किला कहा जा सकता है। यहां न सिर्फ पार्टी का संगठन पुराना और मजबूत है बल्कि उसका काफी फैलाव भी है। लेकिन इस पुख्ता बुनियाद वाले ढांचे पर खड़े संगठन में भी ‘अनुशासनहीनता’ की दरारें लगातार सामने आ रही हैं। तमाम दिशानिर्देशों, चेतावनियों और धमकियों के बावजूद पार्टी के ही लोग कई मामलों पर मुखर होकर जनता के बीच आ रहे हैं।
ताजा मामला हरदा जिले का है। वहां पूर्व मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता कमल पटेल ने ‘कमल सेना’ नाम से एक संगठन खड़ा कर लिया है। खुद कमल पटेल का कहना है कि ‘कमल सेना’ नर्मदा तटों पर हो रहा अवैध उत्खनन रोकने के लिए बनाई गई है। अफसरों की मिलीभगत से निर्माण कार्यों में लगे ठेकेदार और कंपनियां बड़े पैमाने पर नर्मदा में अवैध उत्खनन कर रही हैं। ‘कमल सेना’ इस काम को सख्ती से रोकेगी।
पिछले दिनों प्रदेश के नर्मदा घाटी विकास राज्यमंत्री लालसिंह आर्य जब जिला योजना समिति की बैठक में भाग लेने हरदा पहुंचे तो कमल पटेल ने उन्हें ले जा कर अवैध उत्खनन के ठिकाने दिखाए। मंत्री को आया देख रेत माफिया ने पोकलेन और जेसीबी मशीनें पेड़ों के पीछे और झाडि़यों में छिपाने का असफल प्रयास किया। वे नदी में दो दर्जन से अधिक डंपर और रेत से भरी नावें छोड़ कर भाग गए। बाद में मंत्री ने जिला खनिज अधिकारी को हटाते हुए उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए।
कमल पटेल का आरोप है कि हरदा जिले में कलेक्टर, एसपी और अन्य अधिकारियों की मिलीभगत से नर्मदा के बीचों-बीच सड़क बनाकर रेत का अवैध उत्खनन किया जा रहा है। उन्होंने खुद जाकर पोकलेन मशीन को पकड़ा और कलेक्टर से जब उसे जब्त करने को कहा तो भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। पटेल ने कलेक्टर,एसपी सहित कई अधिकारियों के रेत माफिया से मिले होने का आरोप लगाते हुए इन्हें निलंबित कर इनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। इतना ही नहीं वे अवैध उत्खनन की शिकायत लेकर खुद ही ग्रीन ट्रिब्यूनल में पहुंच गए हैं।
अब एक तरफ तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में हुई नर्मदा सेवा यात्रा अभी अभी खत्म हुई है। इस दौरान खुद मुख्यमंत्री ने जगह जगह ऐलान किया है कि नर्मदा से अवैध खनन सख्ती से रोका जाएगा। दूसरी ओर खुद सत्तारूढ़ पार्टी के ही वरिष्ठ नेता नर्मदा से अवैध उत्खनन के मामले उजागर कर रहे हैं। ‘कमल’ की पार्टी वाले कमल पटेल की ‘कमल सेना’ का यह कारनामा, सरकार के मुंह पर सरेआम कीचड़ उछाल रहा है। जाहिर है इससे सरकार और पार्टी दोनों की किरकिरी हो रही है।
अवैध उत्खनन का मामला अकेले कमल पटेल ने ही उजागर नहीं किया है, प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से नर्मदा सहित चंबल, सिंध आदि कई नदियों से अवैध उत्खनन की खबरें लगातार आ रही हैं। जाहिर है इन खबरों ने विपक्ष को भी सरकार पर वार करने का मौका दे दिया है। यही कारण था कि पिछले दिनों कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे को उनके निधन से एक सप्ताह पहले पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था। सिंधिया का कहना था कि नर्मदा को यदि बचाना है तो रेत के अवैध उत्खनन को तत्काल बंद करना होगा।
प्रश्न यह है कि पार्टी की इतनी मजबूत स्थिति होने और अगले चुनाव में भी उसके आसार मजबूत होने के दावों के बीच आखिर क्या वजह है कि पार्टी के ही नेता इस तरह सार्वजनिक रूप से पार्टी को कठघरे में खड़ा कर उसे जलील कर रहे हैं। एक कारण यह बताया जा सकता है कि कमल पटेल हरदा से इस बार फिर टिकट चाहते हों और पार्टी पर दबाव बनाने के लिए वे ऐसा कर रहे हों।
लेकिन अमित शाह ने यूपी और दिल्ली एमसीडी चुनाव में जो तेवर दिखाए हैं,उन्हें देखते हुए लगता तो नहीं कि पार्टी ऐसे किसी दबाव में आने वाली है। और फिर सागर की पारुल साहू ने तो चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया है। ग्वालियर के राज चड्ढा को न तो टिकट चाहिए और न पार्टी उन्हें टिकट देगी। फिर क्यों ये लोग खुलेआम बगावती सुर में बोल रहे हैं?
और एकबारगी मान भी लें कि ऐसा टिकट पाने के लिहाज से ही किया जा रहा है तो भी पार्टी इन मुद्दों को कैसे खारिज कर सकेगी? जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं वे तो आंखों के सामने दिख रह हैं। इस सच को कैसे झुठलाया जा सकेगा?