1991 में आमिर खान की एक फिल्मा आई थी, ‘दिल है कि मानता नहीं’ उस फिल्म का एक गाना बहुत मशहूर हुआ था जिसके बोल थे-‘‘तू प्यार है किसी और का, तुझे चाहता कोई और है…’’ आज उसी 27 साल पुराने फिल्मी गाने की तर्ज पर गुनगुनाने को मन कर रहा है-‘’तू पढ़ता है किसी और से, तुझे जांचता कोई और है…’’
दरअसल ये लाइनें हमारी समूची शिक्षा प्रणाली की हकीकत हैं। यहां अव्वल तो पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं और यदि पढ़ाने को कोई कामचलाऊ बंदा मिल भी जाए तो परीक्षा में उत्तरपुस्तिकाएं जांच कर छात्रों का सही मूल्यांकन करने वाले भी हम नहीं जुटा पा रहे। और जब यह सब नहीं हो पा रहा, तो फिर वैसा ही होता है जैसा हाल ही में सागर के एक घटनाक्रम से सामने आया।
हुआ यह कि भोपाल के बरकतुल्ला विश्वविद्यालय ने सागर के शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय के समन्वयक संदीप दुबे को उत्तर-पुस्तिकाएं जांचने की जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने चौथे सेमेस्टर की हिंदी साहित्य की उत्तर-पुस्तिकाएं डॉ. धनीराम अहिरवार को जांचने के लिए दीं।
डॉ. धनीराम अहिरवार शासकीय महाविद्यालय शाहगढ़ में ‘अतिथि विद्वान’ बताए जाते हैं। (यहां मुझे विद्वान शब्द पर भी सख्त आपत्ति है) उन्हें 2000 कॉपियां जांचने के लिए दी गईं। इसमें से 500 कॉपियां उन्होंने बीए प्रथम वर्ष के छात्रों को जांचने के लिए ठेके पर दे दीं। एक अखबार ने जब यह काम करने वाले छात्रों से बात करके किराये पर जांची जा रहीं इन कॉपियों की तसवीरें प्रकाशित कर दीं तो हड़कंप मच गया।
घटना के बाद सागर से लेकर भोपाल तक सफाई देने का दौर चला और बताया गया कि धनीराम अहिरवार को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है। प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर कहा गया है कि वे डॉ. धनीराम अहिरवार को किसी भी तरह के परीक्षा कार्य में न लगाएं और ना ही उनसे मूल्यांकन करवाएं। विवि प्रशासन ने धनीराम अहिरवार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शासन को भी पत्र लिखा है।
बरकतुल्ला विश्वविद्यालय ने इस मामले में परीक्षा नियंत्रक डॉक्टर ए.के. मुंजाल को हटा दिया। विवि प्रशासन ने पूरे मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर दी है, जिसे सात दिन में रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। बताया गया कि सागर के परीक्षा समन्वयक संदीप दुबे की भूमिका भी यदि संदिग्ध पाई गई तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी।
दरअसल यह तो सिर्फ एक नूमना भर है कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था कैसी चल रही है। ऐसा नहीं हैं कि इस तरह की घटना कोई पहली बार हुई है या फिर प्रदेश में ऐसी हरकत करने वाला सिर्फ एक धनीराम अहिरवार ही है वे तो एक प्रतीक भर हैं। व्यवस्था से खिलवाड़ करने वाले ऐसे कई धनीराम घूम रहे हैं और पूरी शिक्षा प्रणाली का कोई धनीधोरी नजर नहीं आ रहा।
उच्चतम वेतनमानों पर काम करने वाले प्रदेश के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो जितना वेतन पा रहे हैं उसके मुकाबले न उतना काम कर रहे हैं और न ही उनके काम की वैसी कोई गुणवत्ता़ है। जब भी ऐसा कोई प्रसंग आता है यह दलील दे दी जाती है कि क्या करें आजकल के छात्र पढ़ना ही नहीं चाहते…
अब यदि पढ़ाने वाले अपनी जिम्मेदारी ठीक से न निभा रहे हों, पढ़ने वालों में शिक्षा के प्रति कोई रुचि न हो और परीक्षा की कॉपियां जांचने वाले ठेकेदारी पर यह काम करते हों तो आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है कि हमारे विश्वविद्यालयों से कैसे तो लोग डिग्रियां पा रहे होंगे और उनकी शिक्षा या ज्ञान का स्तर क्या होगा?
यह मध्यप्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हम न तो बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने का सिस्टम बना पाए हैं और न ही उनकी शिक्षा को परखने की कोई माकूल कसौटी। चाहे स्कूल या कॉलेज की परीक्षा का मामला हो या फिर नौकरियों में भरती की परीक्षा का, कभी हमारे यहां सागर कांड हो जाता है तो कभी व्यापमं।
परीक्षा के नाम पर युवा पीढ़ी के भविष्य से कैसे-कैसे खिलवाड़ हो रहे हैं इसे लेकर मुझे करीब दो साल पुराना एक प्रसंग याद आता है। वह मामला हरदा जिले के टिमरनी में सरस्वेती विद्या मंदिर के एक छात्र से जुड़ा था। उस समय जो खबरें छपी थीं उनके मुताबिक 12 वीं के एक छात्र आशुतोष शर्मा को अंग्रेजी में कम अंक होने के कारण मेरिट लिस्ट से वंचित होना पड़ा था।
खुद के कम नंबर देखने के बाद आत्मविश्वास से भरे इस छात्र ने बोर्ड में दो आवेदन लगाए थे, इनमें से एक आवेदन पुनर्मूल्यांकन का था और दूसरा अपनी उत्तरपुस्तिका देखने का। हैरानी की बात देखिए कि पुनर्मूल्यांकन के परिणाम में उस छात्र को ‘कोई परिवर्तन नहीं’ का जवाब दे दिया गया। पोल तब खुली जब उसकी उत्तरपुस्तिका देखी गई।
बाद में पता चला कि इस छात्र की अंकसूची में अंग्रेजी में जो सिर्फ 63 नंबर दर्शाए गए थे वे वास्तव में 99 थे। बोर्ड ने अपनी गलती मानी और उसे संशोधित अंक सूची जारी की। बढ़े हुए अंकों के कारण उसके कुल अंक 500 में से 477 यानी 95.4 प्रतिशत हो गए।
लेकिन बढ़े हुए अंकों वाली यह अंकसूची उस छात्र को जब तक मिली तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वह कई अच्छे कॉलेजों में प्रवेश पाने से वंचित हो गया था। उसके मामले में शिक्षा बोर्ड के सचिव ने खुद मंजूर किया था कि इसमें सबंधित टीचर की गलती है।
क्या इन मामलों को सिर्फ ‘गलती’ मानकर यूं ही भुला दिया जाना चाहिए? बिलकुल नहीं, मेरे विचार से छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले ऐसे लोगों के लिए सिर्फ परीक्षा ही क्यों, पूरा शिक्षाकर्म ही प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए…