मध्यप्रदेश के आईएएस अधिकारी और सामान्य अन्य पिछड़ा अधिकारी कर्मचारी संघ (सपॉक्स) के संरक्षक राजीव शर्मा ने अपनी फेसबुक वॉल पर 14 जून को एक पोस्ट डाली। उसमें उन्होंने वांछित रोजगार न मिल पाने पर आत्महत्या करने वाले एक युवक के अंतिम पत्र को अटैच करते हुए लिखा है- ‘’क्या इसे पढ़ कर आप की आँख नम होती हैं, यह छतरपुर के एक युवा देशराज यादव का आख़िरी पत्र है।‘’
पोस्ट किए गए पत्र का मजमून इस प्रकार है-
मां मैं इस दुनिया से हार कर जा रहा हूं, क्योंकि मैंने संविदा शिक्षक भर्ती का बहुत इंतजार किया, 2011 के बाद इंतजार करते करते 7 साल बीत चुके फिर भी भर्ती नहीं निकली। सोचा था चुनाव के समय निकलेगी लेकिन नहीं निकली। हमारे जैसे कई लड़कों का डीएड, बीएड में पैसा बरबाद होगा, सात साल इंतजार बहुत होता है। तैयारी करते करते हम भी थक चुके थे। सफलता हमारे पास थी, लेकिन सफलता के लिए हमें मौका ही नहीं मिला। फिर अतिथि शिक्षक की नौकरी की लेकिन उसमें हमारे पेट तक का गुजारा नहीं चलता था।
घर का बड़ा लड़का होने के नाते सारी जिम्मेदारी थी, पिताजी आंखों से हीन थे। सोचा था कि शिक्षक की नौकरी मिल जाएगी तो माता पिता की जिंदगी आराम से कट जाएगी। मुझे दुनिया वालों से तथा गांव वालों से बहुत प्यार मिला। लेकिन शिक्षक की नौकरी की सोच, ये दिन रात सोचा करता था कि भर्ती कब निकलेगी। इसी सोच में मेरी आंखों में आंसू सूख चुके थे।
अतिथि शिक्षक में पांच साल काम किया लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। मां मुझे माफ कर देना क्योंकि आपकी पांच उंगलियों में से एक उंगली कटने जा रही है। लेकिन तुम चिंता मत करना, क्योंकि तुम्हारे अभी चार पुत्र हैं, कोई कोई मां तो एक एक पुत्र को रोती है।
आपका पुत्र देशराज यादव
योग्यता 12+बीए+डीएड+आईटीआई+कंप्यूटर
मैंने बहुत गरीबी हालत में अपनी पढ़ाई की लेकिन मेरे भाग्य में नौकरी नहीं थी।
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इस पत्र में कोई तारीख नहीं डली है। लेकिन चूंकि राजीव शर्मा एक जिम्मेदार पद पर हैं इसलिए यह मानकर चला जा सकता है कि इस पत्र में जिस घटना का उल्लेख किया गया है वह ताजा ही होगी। श्री शर्मा ने अपनी ओर से इस पत्र के बारे में सिर्फ इतना ही लिखा है कि क्या ’क्या इसे पढ़ कर आप की आँख नम होती हैं’ लेकिन इस सवाल से ज्यादा महत्वपूर्ण वे सवाल है जो उन्होंने नहीं लिखे, या कि जो इस घटना से उठ रहे हैं।
दरअसल यह सिर्फ देशराज यादव नाम के एक युवक का सुसाइड नोट ही नहीं है, बल्कि प्रदेश के लाखों बेरोजगार युवाओं की वह पीड़ा और नियति है जो इसके माध्यम से उजागर हो रही है। इस पत्र के सार्वजनिक होने का समय ठीक वही है जब मध्यप्रदेश सरकार धड़ाधड़ लोक कल्याण की नित नई घोषणाएं कर रही है। प्रदेश के 51 जिलों में कौशल एवं रोजगार महापंचायत के जरिए एक दिन में एक लाख लोगों को रोजगार देने के प्लान से जुड़ी खबरें भी मीडिया में छपी हैं।
लेकिन दूसरी ओर रोजगार न मिलने के कारण युवाओं में इस हद तक निराशा पनप रही है कि वे आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं। बेरोजगारी की हालत क्या है इसकी एक बानगी इसी साल फरवरी माह में उस समय देखने को मिली थी जब चपरासियों के 738 पदों के लिए तीन लाख से भी ज्यादा आवेदन आए थे और आवेदन करने वालों में उच्च शिक्षा प्राप्त उम्मीदवार भी शामिल थे।
दरअसल राज्य में लगातार बढ़ रही बेरोजगारी ने कई तरह के संकट खड़े किए हैं। एक ओर सबसे ज्यादा रोजगार या आजीविका के साधन प्रदान करने वाला कृषि क्षेत्र संकट में है। खेती को लाभ का धंधा बनाने की तमाम घोषणाओं के बावजूद स्थिति यह है कि फायदा होना तो दूर की बात किसानों को उनकी उपज का लागत मूल्य भी ठीक से नहीं मिल पा रहा है। दूसरी ओर उद्योग धंधों और सेवा क्षेत्र की स्थिति भी ऐसी नहीं है जो बेरोजगारी के इतने बड़े बोझ को उठा सके।
बेरोजगारों की संख्या कितनी तेजी से बढ़ रही है, इसका अंदाजा आप एक आंकड़े से लगा सकते हैं। इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के रोजगार कार्यालयों में रजिस्टर्ड शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 11.24 लाख थी। पिछले करीब 14 सालों के दौरान सरकार ने औसतन 17 हजार 600 व्यक्तियों को रोजगार प्रदान किया। इतनी कम मात्रा में रोजगार उपलब्ध होने के कारण शिक्षित बेरोजगारों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है।
एक मुश्किल यह है कि निजी क्षेत्र की नौकरियां कम होने के साथ साथ उनमें बहुत ज्यादा अस्थिरता होने के कारण अधिकांश लोगों का झुकाव सरकारी नौकरियों की ओर ही है। कई सालों से सरकारों में बड़ी भरतियां नहीं हो रही हैं। इस बीच सरकार ने अपने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने का फैसला भी कर लिया है। ऐसी स्थिति में सरकारी नौकरियों के अवसर और कम हुए हैं।
बेरोजगारी का यह मामला सरकार के लिए इसलिए भी मुसीबत का सबब है क्योंकि यह चुनाव का साल है और विपक्ष ने इस मुद्दे को सरकार की बड़ी विफलता के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है। इन हालात में यदि कोई युवा नौकरी न मिलने पर खुद की जान देने जैसा कदम उठाता है और सरकार का ही एक वरिष्ठ अधिकारी उस मुद्दे की संवेदनशीलता को सोशल मीडिया पर उजागर करता है तो मामला और गंभीर हो जाता है।
राजीव शर्मा ने भले ही सिर्फ आंखें नम हो जाने के बारे में सवाल किया हो लेकिन असलियत में वे प्रदेश के लोगों की एक दुखती रग पर हाथ रखते हुए उनकी पीड़ा को आवाज दे रहे हैं। इस आवाज को समय रहते सुना जाना बहुत जरूरी है…