ये चावल हांडी की हकीकत बयां नहीं करते हैं…

देश में 500 और 1000 के नोट बंद करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा को आज पूरे 21 दिन हो जाएंगे। 8 नवंबर की रात मोदी ने नोटबंदी का जो ऐलान किया था, उससे आर्थिक लेन देन के क्षेत्र में आई सुनामी की लहरें अभी ठंडी नहीं पड़ी हैं। प्रधानमंत्री ने देश से इन लहरों के ठंडा होने के लिए 50 दिन का समय मांगा है। इस बीच रविवार को मोदीजी का देश के नाम एक और संबोधन हुआ। हर माह के अंतिम रविवार को आकाशवाणी के जरिए देश के लोगों से की जाने वाली ‘मन की बात’ में भी इस बार नोटबंदी का मामला छाया रहा।

प्रधानमंत्री ने नोटबंदी को लेकर समाज के विभिन्‍न वर्गों और लोगों की तरफ से आने वाली सकारात्‍मक प्रतिक्रियाओं को मन की बात में हाईलाइट किया। उन्‍होंने इस संबंध में कुछ उदाहरण भी दिए। अपने मध्‍यप्रदेश का ही एक उदाहरण देते हुए वे बोले- किसी ने मुझे कहा कि खंडवा में एक बुज़ुर्ग इंसान का एक्‍सीडेंट हो गया। अचानक पैसों की जरूरत पड़ गई। वहाँ स्थानीय बैंक के कर्मचारी के ध्यान में आया और मुझे ये जान कर खुशी हुई कि उसने ख़ुद उस बुज़ुर्ग के घर जाकर पैसे पहुँचाए, ताकि उनके इलाज़ में मदद हो जाए।

महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए मोदी ने कहा कि अकोला में नेशनल हाईवे NH-6 पर एक रेस्‍टारेंट ने बोर्ड लगाया कि अगर आप की जेब में पुराने नोट हैं और आप खाना खाना चाहते हैं, तो पैसों की चिंता न करें। यहाँ से भूखे मत जाइए, खाना खा के ही जाइए। भविष्‍य में जब भी इस रास्‍ते से गुजरें, खाने के पैसे तब दे दीजिएगा। लोग वहाँ जाते हैं, खाना खाते हैं और 2-4-6 दिन बाद जब भी वहाँ से फिर गुजरते हैं, तो खाने का भुगतान कर देते हैं।

अपने गृह राज्‍य गुजरात का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि 17 नवम्बर को सूरत में, एक शादी चाय पर चर्चा की तर्ज पर संपन्‍न हुई। उस परिवार ने कोई जलसा न करते हुए खाने के बजाय शादी में आने वाले लोगों को सिर्फ़ चाय पिलाई, क्योंकि नोटबंदी के कारण पैसों को लेकर कुछ कठिनाई थी। सूरत के भरत मारू और दक्षा परमार द्वारा अपनी शादी में की गई इस अनूठी पहल की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार व कालेधन के खिलाफ़ लड़ाई में उनके योगदान को प्रेरक बताया।

असम के छोटे से गांव धेकियाजुली के चाय बागान कामगारों की कहानी सुनाते हुए प्रधानमंत्री बोले कि उन्‍हें जब साप्‍ताहिक पारिश्रमिक के रूप में 2000 रुपये का नोट मिला, तो अड़ोस-पड़ोस की चार महिलाएं इकट्ठी हुईं और चारों ने साथ जाकर  ख़रीदारी करते हुए 2000 रुपये के नोट से भुगतान कर दिया।

प्रधानमंत्री की मन की बात में दिए गए इन उदाहरणों के अलावा हाल ही में केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्‍मृति ईरानी का एक किस्‍सा भी मीडिया में खूब उछला। इसमें कहा गया कि कोयंबटूर के दौरे पर गईं स्‍मृति ईरानी ने अपनी टूटी चप्‍पल की मरम्‍मत करने वाले कामगार को दस रुपये की मजदूरी के बदले सौ रुपए का नोट दे दिया क्‍योंकि उनके पास छुट्टा नहीं था।

हो सकता है ऐसे दो चार दर्जन उदाहरण और भी निकल आएं जिन्‍हें प्रेरक बताते हुए तर्क दिया जाए कि नोटबंदी से लोगों को कहीं कोई दिक्‍कत नहीं है और वे कालेधन के खिलाफ सरकार की ओर से छेड़े गए इस अनुष्‍ठान में अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार आहुति दे रहे हैं।

लेकिन… ये दर्जन दो दर्जन उदाहरण उस वास्‍तविक स्थिति को बदल नहीं सकते जो देश का नागरिक इन दिनों भुगत रहा है। नोटबंदी हो या न हो, इतने बड़े देश में ऐसे सैकड़ों उदाहरण रोज घटित होते रहते हैं। निश्चित रूप से ये ताजा उदाहरण हांडी के वे चावल नहीं हैं जिनका एक दो दाना उठाकर हम कह दें कि भात अच्‍छा पक गया है। ये उदाहरण हांडी की हकीकत बयान करने के बजाय लोगों की परेशानियों पर पर्दा डालने का जतन करते ज्‍यादा नजर आते हैं।

हो सकता है कोई एक बैंक कर्मचारी किसी जरूरतमंद को पैसा देने उसके घर चला गया हो, किसी होटल वाले ने लोगों को उधारी में खाना देने की उदारता दिखाई हो या शादी में फिजूलखर्ची रोकने के लिए किसी ने मेहमानों को सिर्फ चाय पिलाकर विदा कर दिया हो… लेकिन क्‍या सरकार दावे के साथ कह सकती है कि हर व्‍यक्ति उसके फैसले को इसी भाव से प्रसाद के रूप में ग्रहण कर रहा है?

प्रधानमंत्री ने युवाओं से नोटबंदी के फैसले के प्रभावी अमल में सहयोग मांगा है। लेकिन सोमवार को भोपाल में एक बैंक में अपनी रोजमर्रा की जरूरत के लिए,सिर्फ दो चार सौ रुपए निकालने की खातिर, लंबी कतार में घंटों बरबाद कर रहे ऐसे ही कुछ युवा छात्रों ने मुझसे कहा- जो समय हमें पढ़ाई में लगाना चाहिए वह लाइन में खड़े होकर बरबाद करना पड़ रहा है। ऐसे हजारों लाखों छात्र, युवा, किसान और मजदूर रोज सारा काम छोड़कर लाइन में लग रहे हैं। उनकी हैसियत तो टूटी चप्‍पल सुधरवाने तक की नहीं है, वे कहां से किसी को दस रुपए के बजाय सौ का नोट देकर कह दें कि बाकी पैसा भी रख लो, मेरे पास छुट्टा नहीं है।

जाहिर है ऐसे पब्लिसिटी स्‍टंट या चोचलों को प्रचारित करने से तो आम लोगों की मुसीबतें कम नहीं होने वालीं।

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