सवाल दर सवाल हैं, उन्‍हें जवाब चाहिए…

पत्रकार होना कई बार इतना भारी पड़ जाता है कि पूछिये मत। अकसर लोग सवाल पूछ-पूछ कर नाक में दम कर देते हैं। और सवाल भी ऐसे कि जिनका जवाब किसी के पास नहीं… हकीम लुकमान के पास भी नहीं… दूसरी दिक्‍कत यह कि आप कोई जवाब देना भी चाहें तो जिद ऐसी कि वह जवाब प्रश्‍न पूछने वाले के अनुकूल या मंशानुरूप होना चाहिए। यदि आपका जवाब उसके अनुकूल नहीं हुआ तो आपकी खैर नहीं…

अब मैं तो क्‍या, दुनिया में कोई भी किसी को पूरी तरह संतुष्‍ट नहीं कर सकता। अब्राहम लिंकन के हवाले से एक मशहूर उक्ति कई बार सुनाई जाती है जो कहती है कि आप बहुत सारे लोगों को थोड़े समय के लिए बेवकूफ बना सकते हैं या थोड़े से लोगों को पूरे समय बेवकूफ बना सकते हैं लेकिन सभी लोगों को हर समय बेवकूफ नहीं बना सकते…

ऐसे ही सवाल जवाब के बारे में भी है। आप बहुत सारे लोगों के थोड़े से सवालों का जवाब दे सकते हैं या थोड़े से लोगों के बहुत सारे सवालों का जवाब देने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन सारे लोगों के सारे सवालों का जवाब देना संभव नहीं है…

तो आज मेरे पास ऐसे ही कुछ सवाल हैं, जिनका कोई ठीक ठीक जवाब मेरे पास नहीं है। इसीलिए मैंने सोचा कि मैं वे सारे सवाल अपने सुधी पाठकों से ज्‍यों के त्‍यों शेयर कर लूं। इनका ब्‍योरा देने से पहले मैं यह जरूर बताना चाहूंगा कि इनमें से ज्‍यादातर सवाल बुधवार को आई खबरों से जुड़े हैं इसलिए इनका तात्‍कालिक महत्‍व भी है।

बुधवार को पहली खबर आई कि गुजरात में पटेलों के नेता हार्दिक पटेल और उनके दो साथियों लालजी पटेल तथा ए.के. पटेल को विसनगर सत्र न्‍यायाधीश की अदालत ने दंगा भड़काने,संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और गैर कानूनी तरीके से इकट्ठा होने मामले में दोषी ठहराते हुए दो साल के कारावास और 50-50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है।

दरअसल विसनगर में 23 जुलाई 2015 को दर्ज कराई गई एफआईआर में हार्दिक पटेल और उनके साथियों को आरोपी बनाया गया था। उस समय हुई हिंसक घटनाओं में भीड़ ने एक कार को आग के हवाले कर दिया था और स्थानीय भाजपा विधायक ऋषिकेश पटेल के कार्यालय में तोड़फोड़ की थी।

अब सवाल यह पूछा जा रहा है कि हार्दिक पटेल को सजा सुना दी वो तो ठीक है, लेकिन पिछले दो चार सालों में राजस्‍थान में गूजरों ने, हरियाणा में जाटों ने और पूरे देश में गोसेवकों ने जो किया उसकी जिम्‍मेदारी कौन तय करेगा? गुजरात के पटेल आंदोलन की तुलना में कहीं अधिक जान माल के नुकसान वाली इन घटनाओं में आंदोलन के किन किन नेताओं को सजा सुनाई गई है?

दूसरा मामला केरल का है। बुधवार को ही केरल में सीबीआई की विशेष अदालत ने चोरी के आरोपी युवक की हिरासत में पिटाई से हुई मौत के मामले में दो पुलिस अधिकारियों को मौत की सजा सुनाई। उन पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। बताया गया है कि केरल में पुलिस अफसरों को मौत की सजा सुनाए जाने का यह पहला मामला है।

केरल की घटना को लेकर सवाल पूछा जा रहा है कि क्‍या ऐसी ही सजा राजस्‍थान के उन पुलिस वालों को भी दी जाएगी जिनकी हिरासत में कथित गो-तस्‍कर रकबर उर्फ अकबर की मौत हुई। अलवर जिले के रकबर को कथित गोरक्षकों ने गाय ले जाते हुए पीटा था। बाद में राज्‍य सरकार ने माना कि उसकी मौत पुलिस हिरासत में हुई और अब मामले की मजिस्‍टीरियल जांच कराई जा रही है।

ऐसे ही गो-तस्‍करी को लेकर हो रही मॉब लिंचिंग पर हाल ही में अलग-अलग बयान आए हैं। इनमें कहा गया है कि यदि लोग बीफ खाना छोड़ दें तो मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं रुक सकती हैं। या कि जब तक गो-हत्‍या होगी मॉब लिंचिंग जरूर होगी। या फिर यह कि जैसे-जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बढ़ती जाएगी, मॉब-लिंचिंग की घटनाएं बढ़ती जाएंगी।

गो-रक्षकों द्वारा की गई पिटाई के कारण मरने वालों की बढ़ती संख्‍या को देखते हुए इस बारे में भी कई सवाल पूछे जा रहे हैं। ये सवाल न सिर्फ मामले के आपराधिक पहलू से जुड़े हैं बल्कि हमारे सामाजिक ताने बाने से भी वास्‍ता रखते हैं। इनमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्‍या हम मुसलमानों को गो-पालन के व्‍यवसाय से दूर कर देना चाहते हैं?

जैसे कि यह सच है कि कसाईखाने के कारोबार में ज्‍यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग लगे हैं उसी तरह यह भी सच है कि मुस्लिम समुदाय के हजारों लोग पशुपालन के जरिये अपनी आजीविका चला रहे हैं जिसमें गो-पालन भी शामिल है। इन लोगों को गो-तस्‍करी या गो-वध से दूर रखने की बात तो समझ में आती है लेकिन यदि उनके गो-पालन को भी संदिग्‍ध बना दिया गया तो न सिर्फ कई लोग बरोजगार हो जाएंगे बल्कि गायों के पालने का संकट भी बढ़ेगा।

इसी सिलसिले में एक और बर्बर सवाल मुझसे पूछा गया। सवाल यह था कि यदि किसी हाईवे पर कोई गाय दुर्घटना में कुचल जाए तो कौन-कौन उसके अवशेषों को वहां से उठाने के लिए तैयार होगा? इसी तरह यह भी जिज्ञासा जाहिर की गई कि गायें अगर हैं तो उम्र पूरी होने के बाद वे मरती भी होंगी, क्‍या ऐसा कोई रिकार्ड प्रस्‍तुत किया जा सकता है कि मध्‍यप्रदेश में पिछले पांच सालों के दौरान कितनी गायों का विधिवत अंतिम संस्‍कार किया गया?

सुनने में ये सारे सवाल खराब लग सकते हैं। इन पर बहुत गुस्‍सा भी आ सकता है। लेकिन अब सवाल तो सवाल हैं। और चाहे राजनीतिक बिरादरी हो या अन्‍य कोई, वह यह न समझे कि सवाल केवल उन्‍हीं से किए जा रहे हैं। आज के जमाने में सवालों की बौछार से कोई नहीं बचा है, इस मामले में कोई निरापद नहीं है… मीडिया भी नहीं… मीडिया यदि सवाल पूछता है तो खुद उससे सवाल पूछने वाले भी हजारों लोग बैठे हैं…

ऐसे में अब आप ही बताइए, मैं इन सवालों का क्‍या जवाब दूं…

 

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