सच में, भाजपा के राजनीतिक प्रबंधन का जवाब नहीं

कमाल है भाई, राजनीतिक प्रबंधन हो तो भारतीय जनता पार्टी जैसा, वरना न हो !! (आपको याद आ रहा होगा अमिताभ बच्‍चन का वह डायलॉग कि ‘’मूंछें हो तो नत्‍थूलाल जी जैसी हों वरना न हों…।’’)

आप मेरे इस कथन का नमूना देखना चाहते हैं? तो लीजिए वह भी पेश है। बहुत से लोगों को तो अब याद भी नहीं होगा, लेकिन जिन थोड़े बहुत लोगों को याद है, वे इस बात की तसदीक जरूर करेंगे। मामला बुधवार शाम को आई एक खबर का है जिसने भारतीय जन मानस से लेकर मीडिया तक में खलबली मचा दी थी।

खबर रिजर्व बैंक ने दी थी। उसकी 2016-17 की सालाना रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि जिस नोटबंदी को मोदी सरकार ने इतना बढ़ा चढ़ाकर पेश किया था और जिसे देश में कालेधन से लेकर आतंकवाद की समस्‍या तक को जड़ से खत्‍म करने का ‘चमत्‍कारिक फार्मूला’ बताया गया था, उसकी हवा निकल गई है। रिपोर्ट के मुताबिक हजार-पांच सौ के जो नोट बंद किए गए थे, उनमें से 99 फीसदी नोट वापस बैंकों में आ गए। यानी जिस पैमाने पर कालेधन का अंदाज लगाया गया था वो तो कहीं निकला ही नहीं।

इसीलिए जब बुधवार को आरबीआई की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई तो हल्‍ला मच गया। उसके बाद खबर आई कि चालू वित्‍त वर्ष की पहली तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर का भी भट्टा बैठ गया है। पिछले वित्‍त वर्ष की पहली तिमाही में यह 7.9 फीसदी थी जो इस बार घटकर 5.7 फीसदी ही रही है। नोटबंदी मामले में पूर्व वित्‍त मंत्री पी. चिदंबरम ने तो यहां तक कह दिया कि रिजर्व बैंक को नोटबंदी से हासिल हुए 16 हजार करोड़ रुपए और नए नोट छापने के लिए उसने खर्च कर दिए 21 हजार करोड़ रुपए। यानी सीधे सीधे 5 हजार करोड़ का फटका लगा।

दुनिया में किसी भी राष्‍ट्राध्‍यक्ष ने देश के नाम इतना महंगा संदेश प्रसारित नहीं किया होगा। नोटबंदी के बारे में 8 नवंबर 2016 को दिया गया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण करीब 37 मिनिट का था और चिदंबरम के गणित के हिसाब से देखें तो इस संदेश की लागत प्रति मिनिट 135.15 हजार करोड़ या 2.27 करोड प्रति सेकंड बैठती है। इसीलिए मैंने कहा कि इतना महंगा संदेश किसी राष्‍ट्राध्‍यक्ष ने प्रसारित नहीं किया होगा।

खैर… इस पर आगे बात करेंगे। फिलहाल बात भाजपा के राजनीतिक प्रबंध कौशल की। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट आने के बाद सरकार और भाजपा को भी लग गया था कि इस मुद्दे पर उनके पास कहने और प्रधानमंत्री के फैसले का बचाव करने के लिए ज्‍यादा कुछ नहीं है। इसीलिए जो खबर चंडूखाने की चर्चा के रूप में कई दिनों से मीडिया में चल रही थी, उसे तत्‍काल हवा दी गई और रात करीब दस बजे अधिकांश चैनल, जो नोटबंदी पर चर्चा या अन्‍य कार्यक्रमों के जरिए अपनी-अपनी घंटी बजवा रहे थे, वे सारे कार्यक्रम रोक कर मंत्रियों के इस्‍तीफे की खबर चलाने लगे।

और यह खबर इस कदर वायरल हुई कि नोटबंदी का नामोनिशान तक मिट गया। शुक्रवार को भी सुबह से ही करीब करीब सभी चैनल पिले पड़े थे कि किस-किस मंत्री ने इस्‍तीफा दिया, कौन-कौन और दे सकता है, फिर कौन-कौन मंत्रिमंडल में शामिल हो सकता है। नए मंत्रियों को शामिल करने के बाद राज्‍यों के राजनीतिक गणित और समीकरणों की क्‍या स्थिति होगी वगैरह… यानी हर वो फालतू टाइप की बात जो ऐसे मौकों पर हर बार कर्मकांड की तरह दोहराई जाती है।

पहले तो यह हो जाता था कि मीडिया के भेदिये राजनीतिक दलों में घुसपैठ पा जाते थे और थोड़ा बहुत पता भी लग जाता था कि कौन मंत्री बन रहा है और किसकी छुट्टी हो रही है। कुछ प्रसंग तो ऐसे रहे हैं कि मीडिया के प्रभाव के चलते मंत्रिमंडल में लोगों को स्‍थान भी मिल जाया करता था। मुझे याद है एक जमाने में मालवा क्षेत्र के एक अखबार की तूती बोलती थी और कहा जाता था कि मंत्रिमंडल के गठन में उसकी भी राय शामिल होती है। ज्‍यादा दूर क्‍यों जाएं, नीरा राडिया टेप कांड में भी तो यह बात सामने आई थी कि कैसे मीडिया के लोगों से संपर्क किया गया था, बेहतर मंत्रालय दिलवाने के लिए।

लेकिन अब जमाना बदल गया है। यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह का जमाना है। यहां अनुमान का अनुमान लगाने की भी गुंजाइश नहीं होती। अभी तक का अनुभव यह रहा है कि मीडिया ने जो-जो भी अनुमान लगाए हैं, सरकार और पार्टी ने उसके ठीक उलट फैसले किए हैं। इसलिए ठोस या अंदर की सूचना पाना तो दूर इस सरकार में अटकल लगाना भी खतरे से खाली नहीं है। लेकिन फिर भी मीडिया बाज नहीं आता।

खबरों के प्रति मीडिया की यह लालसा इस सरकार को बहुत रास आती है। मीडिया को रहा होगा खबरों से खेलने का गुमान, लेकिन यह सरकार मीडिया से खेलती है। जब भी कोई बड़ा मसला होता है, ऐसी सूचना पटक दी जाती है कि बड़ी या महत्‍वपूर्ण खबर पर से ध्‍यान हटकर तात्‍कालिक या टटपूंजी खबरों पर चला जाता है।

और यही नोटबंदी के मामले में भी हुआ है। जिस नोटबंदी को रिजर्व बैंक ने खुद एक तरह से सरकार की बड़ी चूक माना है और जिस नोटबंदी ने पूरे देश की अर्थव्‍यवस्‍था को हिलाकर रख दिया है। वह नोटंबदी का मामला मंत्रिमंडल विस्‍तार की हवा में हमारे मीडिया से चंद घंटों के भीतर ही गायब करवा दिया गया।

क्‍या अब भी आप मेरी इस बात से सहमत नहीं हैं कि भाजपा का राजनीतिक और मीडिया प्रबंधन गजब का है?

 

2 COMMENTS

  1. सारगर्भित टिप्पणी
    खतरे की घण्टी तथा
    भविष्य के प्रति सतर्कता का आवाहन

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