आकाश शुक्ला
शायद देश की जनता की कोरोना वायरस से मौत की चिंता नहीं करते हुए, पश्चिम बंगाल के चुनाव को अति महत्व देना मोदी जी और बीजेपी दोनों को भारी पड़ा। कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच जनता ऑक्सीजन, दवाओं और इलाज के अभाव में मर रही थी और स्वयं की व्यवस्थाओं और धन खर्च करने के बाद भी अस्पतालों में इलाज नहीं मिल रहा था और मोदी जी लाखों की भीड़ इकट्ठा कर बंगाल में रैली पर रैली कर रहे थे। रैलियां तो भीड़ के साथ ममता बनर्जी भी कर रही थीं। परंतु ममता बनर्जी पर दायित्व सिर्फ पश्चिम बंगाल की जनता का था। मोदी जी देश का नेतृत्व करते हैं और जब वे कोरोना के प्रोटोकॉल और चुनाव आयोग के निर्देश को ताक पर रखते हुए लाखों की भीड़ इकट्ठा कर बिना सोशल डिस्टेंस और मास्क लगाये चुनावी रैली कर रहे थे। तब उन रैलियों से उन्होंने एक जिम्मेदार नेतृत्व की अपनी छवि को नुकसान ही पहुंचाया।
इन रैलियों से यह स्पष्ट समझ आने लगा कि उनकी कथनी और करनी में बहुत अंतर है। सुबह लाखों की भीड़ इकट्ठा करने के बाद शाम को टीवी पर आकर सोशल डिस्टेंस और मास्क लगाने का संदेश देते समय उन्होंने अपना विश्वास ही खोया है। मोदी जी के सलाहकार भी उनको ऐसे मुश्किल समय या तो उचित सलाह नहीं दे रहे हैं या हां में हां मिलाते हुए उनकी हर बात पर उन्हें गुमराह कर रहे हैं। हो सकता है कि मोदी जी के कद के आसपास का कोई नेता न होने के कारण उनके सलाहकार मार्गदर्शक मंडल जैसे मूकदर्शक बन गए हैं।
देश के मीडिया ने भी वास्तविकता से मोदी सरकार को हमेशा दूर रखा है, गुणगान में लगे मीडिया के कारण ही न तो दूसरी लहर के समय कोरोना संक्रमण रोकने के प्रयास सही समय पर हो सके और न ही पश्चिम बंगाल की हार का एहसास पूर्व में हो सका। मीडिया तो 200 से ऊपर सीट जीतने के लिए भाजपा को आश्वस्त कर रहा था। मीडिया का अति से अधिक मैनेजमेंट किसी भी सरकार और पार्टी को गर्त में ही ले जाता है। संत कबीर ने कहा है- निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय। बिन पानी बिन साबुना निर्मल करे सुभाय।।
पिछले वर्ष लॉकडाउन के समय जनता हजारों परेशानियों के बावजूद मोदी जी के नेतृत्व के प्रति विश्वास के कारण काफी लंबा लॉकडाउन झेल गई और कोरोना की पहली लहर के दुष्प्रभाव से देश की जनता का बचाव हुआ, इससे मोदी जी के नेतृत्व के प्रति जनता में विश्वास बढ़ा ही था। मोदी जी के कद के आस पास का नेता उनकी पार्टी और विपक्षी पार्टियों में नहीं होने के कारण उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने का काम कोई प्राकृतिक आपदा ही कर सकती थी और यह काम कोरोना की दूसरी लहर ने, उनके एक राज्य की सत्ता पाने के लालच में आकर कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने और बचाव के उपाय करने में की गई देरी और लापरवाही ने कर दिया।
परंतु एक राष्ट्रीय नेतृत्व को एक राज्य के चुनाव के लिए जनता के प्रति गैर जिम्मेदार होते देखना शायद ही आम जनता को पसंद आया हो। इसी का परिणाम है कि पश्चिम बंगाल की जनता में मोदी जी और बीजेपी के दिग्गज नेता अपनी पार्टी के प्रति विश्वास नहीं जगा पाए और बीजेपी सरकार बनाने के जादुई आंकड़े से बहुत दूर रह गई। इसके नुकसान भविष्य के चुनाव में भी मोदी जी को देखने को मिल सकते हैं।
इस चुनाव में भले ही बीजेपी को पश्चिम बंगाल में तीन से बढ़कर 75 सीटें मिल गई हों परंतु राष्ट्रीय स्तर पर इस चुनाव के कारण कोरोना के राहत कार्यों में हुई लापरवाही के दुष्परिणाम भविष्य में भी मिलेंगे। राष्ट्रीय नेतृत्व को अपनी छवि गढ़ने में वर्षों लग जाते हैं, मोदी जी की छवि भी वर्षों के प्रचार के बाद समस्त प्रचार माध्यमों से गढ़ी गई थी। परंतु ऑक्सीजन की कमी, अस्पतालों में अव्यवस्था, दवाओं की कालाबाजारी, अस्पतालों के आसमान छूते बिल पर समय रहते नियंत्रण नहीं कर पाने के कारण जिनके परिजन असमय कॉल कलवित हुए हैं, वे परिवार 303 सांसदों के बहुमत वाले राष्ट्रीय नेतृत्व की बेरुखी आने वाले कई चुनावों में नहीं भूल पाएंगे, उन्हें यह याद रहेगा कि जब उनके परिजन इलाज के अभाव में मौत के मुंह में जा रहे थे, तब देश का राष्ट्रीय नेतृत्व एक राज्य के चुनाव को जीतने के लालच में अपने कर्तव्य से विमुख होकर रैलियों में भीड़ इकट्ठी कर खुद को मिल रहे जनसमर्थन पर आत्ममुग्ध हो रहा था।
राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस के कारण अपनी समस्त रैलियां स्थगित कर एक आदर्श प्रस्तुत किया था। परंतु कांग्रेस के जनाधार खो देने के कारण उनका यह कदम उतना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाया। उनके द्वारा अन्य दलों से भी रैलियां स्थगित करने के आग्रह का अन्य पार्टियों के नेताओं द्वारा मजाक उड़ाया गया कि उनकी रैली में तो वैसे भी कोई नहीं आता। आचार्य चाणक्य ने कहा है- बालादप्यर्थजातम् श्रुणुयात… अर्थात बालकों की भी अत्यंत उपयोगी बात सुननी चाहिए।
परंतु मोदी जी एवं बीजेपी के समस्त नेता भूल गए कि वे राष्ट्र का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्हें चुनाव में आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। यदि मोदी जी और बीजेपी भीड़ वाली रैलियों को करने से बचते और तृणमूल कांग्रेस भी इसका समर्थन करती एवं ऑनलाइन एवं वर्चुअल रैली के माध्यम से चुनाव प्रचार होता तो एक आदर्श जनता के सामने प्रस्तुत होता और जनता को भी यह सुखद एहसास होता कि हमारी कीमत सिर्फ वोट देने तक ही नहीं है, हमारे स्वास्थ और जीवन की चिंता राजनीतिक दलों को भी है।
पश्चिम बंगाल में 15 मार्च को 251 नए कोरोना संक्रमण के केस आए थे वहीं 1 अप्रैल को 1274 नए मामले सामने आए। 1 मई आते आते मामलों की संख्या 17512 हो गई है, चुनाव के रिजल्ट तो आ गए परंतु चुनाव के कारण कोरोना के संक्रमण के असली रिजल्ट अगले 15 दिनों में समझ आएंगे। इसके लिए जिम्मेदार राजनैतिक दल और चुनाव आयोग कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों के लिए हत्या के अपराधी जैसे रहेंगे। चुनाव के अंतिम दौर में जरूर चुनाव आयोग के लेट लतीफ आदेश के बाद कुछ रैलियां स्थगित हुईं परंतु तब तक तीर कमान से निकल चुका था।
मोदी जी एवं बीजेपी बंगाल का चुनाव भी हार गए और साथ ही साथ जनता में जो विश्वास अर्जित किया था वह भी। जनता की नजर में उनकी छवि एक ऐसे गैर जिम्मेदार नेता की हो गई है जिसके लिए चुनाव और अपना प्रचार ही सब कुछ है। जो अपना प्रचार करने का कोई भी मौका किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ना चाहता, चाहे जनता की जान जा रही हो। यदि मोदी जी और बीजेपी अपनी राष्ट्रीय नेतृत्व की जिम्मेदारियां निभाने के कारण अपने चुनावी प्रचार को तिलांजलि दे देते और हार जाते तो हार कर भी अपनी जिम्मेदारियां निभाने के कारण देश की जनता का दिल जीत लेते और अपनी छवि को होने वाले नुकसान और भविष्य के चुनावी नुकसान से भी बच जाते। समय रहते कोरोना का संक्रमण भी नियंत्रित होता और जनता की जान जाने से बचती। (मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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