हमारे मध्यप्रदेश के बारे में पिछले कुछ सालों से यह बात लगातार कही जा रही है कि हम बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर आकर तरक्की की राह पर तेजी से बढ़ता हुआ राज्य बन गए हैं। राज्य विधानसभा के बजट सत्र का आरंभ करते हुए राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े दिए हैं। जैसे उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2015-16 में प्रचलित भावों पर राज्य के जीडीपी में 16.62 प्रतिशत की वृद्धि दर अनुमानित है। देश के कई राज्यों को जहां दस प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त करने में भी पसीने छूट रहे हैं, वहां मध्यप्रदेश की यह उपलब्धि बहुत बड़ी मानी जानी चाहिए।
इसी तरह सरकार की ओर से बताया गया कि राज्य में खेती को लाभ का धंधा बनाने की कोशिशें रंग लाने लगी हैं और पिछले चार सालों में प्रदेश की कृषि विकास दर औसतन 20 प्रतिशत रही है जो देश में सर्वाधिक है। दलहन, तिलहन, चना, मसूर, सोयाबीन, लहसुन और टमाटर के उत्पादन में मध्यप्रदेश देश में पहले स्थान पर है। खेती में हमारी इस उल्लेखनीय उपलब्धि का ही परिणाम है कि केंद्र सरकार ने राज्य को लगातार पिछले चार सालों से कृषि कर्मण अवार्ड से सम्मानित किया है।
उद्योगों की स्थिति देखें तो राज्यपाल का अभिभाषण कहता है कि राज्य सरकार ने औद्योगिक विकास की दिशा में जो ठोस प्रयास किए हैं उनके परिणामस्वरूप ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में प्रदेश का नंबर देश में पांचवां है। निवेश के लिहाज से आयोजित होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के नतीजे भी उत्साहवर्धक रहे हैं। इंदौर में अक्टूबर 2016 में हुई समिट में 5.62 लाख करोड़ के 2630 इंटेशन टू इन्वेस्ट प्राप्त हुए।
खेती से लेकर उद्योग जगत के ये सारे आंकड़े इतनी चमक लिए हुए हैं कि इनसे किसी की भी आंखें चौंधिया सकती हैं। इन उपलब्धियों पर किसी भी राज्य का इतराना स्वाभाविक भी है। खासतौर से उस समय जब तुलनात्मक रूप से अन्य कई राज्य इन क्षेत्रों में समस्याओं से जूझ रहे हों।
लेकिन इस चकाचौंध के साथ ही कुछ वास्तविकताओं को देखा जाना भी बहुत जरूरी है। जैसे खेती का ही उदाहरण लें। सरकार ने खुद बताया है कि वर्ष 2016-17 में प्रदेश में प्याज के अधिक उत्पादन और उसकी घटती कीमत के कारण किसानों को बरबाद होने से बचाने के लिए उसे प्याज खरीदना पड़ा। प्याज की मार सह रहे ऐसे 41 हजार 482 किसानों से 10 लाख क्विंटल से भी अधिक प्याज 62 करोड़ 42 लाख रुपये खर्च कर खरीदा गया। लेकिन साथ ही यह भी सचाई है कि खरीदा गया यह प्याज सुरक्षित नहीं रखा जा सका और उसे बेचने की तमाम कोशिशें नाकाम हो जाने के बाद अधिकांश प्याज यूं ही नष्ट हो गया। यही हाल टमाटर और आलू के मामले में अब हो रहा है। दूसरा उदाहरण उद्योग का है। सरकार के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में 2632 करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है, जिससे 7447 लोगों को रोजगार मिलेगा। साढ़े सात करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में उद्योगों से मिलने वाले रोजगार की यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है।
ये दोनों उदाहरण बता रहे हैं कि प्रदेश तरक्की जरूर कर रहा है, लेकिन इस तरक्की को चैनलाइज करने या उसे संभालने के लिए उचित प्रबंधन की भारी कमी है। जैसे, यह कतई अच्छी बात नहीं है कि पहले तो किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य या खरीदार न मिले और दूसरे सरकार जब अपनी गांठ का पैसा लगाकर वह उपज खरीदे तो वो भी सड़ जाए। किसान को राहत मिले इस पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यह भी तो देखना होगा कि प्याज खरीदने में जो पैसा खर्च किया गया वह भी जनता की ही गाढ़ी कमाई का था, उसे इस तरह कैसे जाया होने दिया जा सकता है। यही बात उद्योग और रोजगार के अनुपात में भी देखनी होगी। निवेश के मुकाबले सृजित होने वाले रोजगार के आंकड़े बताते हैं कि हमारे यहां उद्योगों में एक व्यक्ति को रोजगार देने का औसत खर्च दो करोड़ 82 लाख रुपये से अधिक आ रहा है। यह राशि बहुत ही अधिक है।
और इन दोनों उदाहरणों से हटकर एक तीसरा उदाहरण और भी ज्यादा चौंकाने वाला है। सरकार ने विधानसभा में बताया है कि प्रदेश में पांच करोड़ 34 लाख की आबादी को मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना में एक रुपये किलो की दर से खाद्यान्न और नमक तथा 20 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से शकर दी जा रही है। रियायती दर पर दी जाने वाली इस सामग्री के लिए सरकार ने 2015-16 में 416.11 करोड़ रुपये का और 2016-17 में 724.11 करोड़ का अनुदान दिया।
प्रदेश की आबादी यदि साढ़े सात करोड़ मानें तो सरकारी दावे के हिसाब से राज्य के हर दूसरे नागरिक से भी ज्यादा संख्या में लोग रियायती दर पर खाद्यान्न,नमक और शकर खरीद रहे हैं। यानी राज्य की 70 प्रतिशत से भी अधिक आबादी या तो सस्ता अनाज खरीदने के लिए बाध्य है या फिर उसकी खरीद क्षमता होने के बावजूद उसे सस्ता अनाज देकर नाकारा बनाया जा रहा है। किसी भी तेजी से बढ़ते हुए राज्य के लिए ये दोनों ही स्थितियां ठीक नहीं हैं।
इसीलिए मैंने कहा कि हम तरक्की तो जरूर कर रहे हैं लेकिन उसकी दिशा और उसके प्रबंधन पर हमें गंभीरता से सोचना होगा।