दिल के बहलाने का सामान न समझा जाए मुझको अब इतना भी आसान न समझा जाए मैं भी दुनिया की तरह जीने का हक मांगती हूं इसको गद्दारी का ऐलान न समझा जाए अब तो बेटे भी चले जाते हैं होकर रुखसत सिर्फ बेटी को ही मेहमान न समझा जाए – कल्पना तिवारी