जरा याद कीजिए दो ढाई साल पहले का वो समय जब वर्तमान केंद्र सरकार से लेकर देश में भाजपा शासित कई राज्य सरकारों पर असहिष्णुता के आरोप लग रहे थे। कलबुर्गी, दाभोलकर और पानसरे हत्याकांडों को लेकर देश का बुद्धिजीवी समाज सरकार पर पिला पड़ा था और भाजपा एवं उससे जुड़े संगठनों को इन हत्याओं के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहरा रहा था।
यह वो समय था जब देश में कला, साहित्य और संस्कृति से जुड़ा एक वर्ग सरकार के खिलाफ जहर उगलता हुआ उसकी कथित असहिष्णुतावादी हरकतों के विरोध में अपने सम्मान लौटा रहा था। यही वो समय था जब गोरक्षा के नाम पर कुछ गुंडे लोगों की पिटाई और हत्याएं तक कर रहे थे और उस सारी गुंडागर्दी का ठीकरा सरकार के सिर पर फूट रहा था।
याद कीजिए वो समय जब आमिर खान एक अखबार के कार्यक्रम में मंच से इंटरव्यू देते हुए अपनी पत्नी के हवाले से कह रहे थे कि उसे भारत में रहने से डर लगने लगा है, उसे अपने बच्चों की चिंता सताती है। फिल्मी दुनिया का एक और बड़ा कलाकार शाहरुख खान एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में कह रहा था- ‘’हां, असहिष्णुता है, बहुत ज्यादा असहिष्णुता है और यह लगातार बढ़ रही है…’’
पर समय बदला है। आज वही शाहरुख खान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम में गए प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनकर उसी मंच से, एसिट अटैक से पीडि़त बच्चों की मदद करने के लिए क्रिस्टल अवार्ड प्राप्त कर रहा है। वही आमिर खान सार्वजनिक मंच पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के हाथों मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड ग्रहण कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावोस के मंच पर दुनिया को वेद, उपनिषद, बुद्ध और गांधी की याद दिला रहे हैं। वे दुनिया से कह रहे हैं कि शांति,समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भारत आएं। तेजी से बदल रही इस अनिश्चित दुनिया में भारत एक भरोसेमंद, टिकाऊ, पारदर्शी और प्रगतिशील देश है।
लेकिन क्या सचमुच समय बदला है? दावोस के अंतर्राष्ट्रीय मंच से हजारों किमी दूर अपने घर में बैठे, क्या हम लोग आज दावे से कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री दुनिया को जो भरोसा दिला रहे हैं यह देश और यहां का समाज अपने ही प्रधानमंत्री के दावों पर खरा उतर रहा है?और समाज की भी छोडि़ए, खुद प्रधानमंत्री की अपनी पार्टी की सत्ता वाले राज्यों में आज क्या वैसे हालात हैं जिसका सपना मोदी, दुनिया के नेताओं को दिखा रहे हैं?
जिस समय प्रधानमंत्री दावोस से चले होंगे और जिस समय वे भारत में उतर रहे होंगे उस समय अपने देश से उन्हें क्या खबरें मिल रही होंगी? यही ना कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और मध्यप्रदेश की सड़कों पर आग लगी हुई है। हिंसा पर उतारू लोग सार्वजनिक और निजी संपत्ति को सरेआम तबाह कर रहे हैं। चारों तरफ अराजकता का माहौल है।
और यह माहौल भी किस कारण? न तो किसी विकास की मांग को लेकर और न ही किसी कमजोर या शोषित वर्ग पर हुए अत्याचार को लेकर। यह तोड़फोड़, आगजनी और हिंसा है एक फिल्म का प्रदर्शन रोकने को लेकर। वह फिल्म जिसे देश का सेंसर बोर्ड और भारत का सुप्रीम कोर्ट तक मंजूरी दे चुका है।
आज देश के मोर्चों पर लड़ने वाली भारत की सेना से अलग कुछ ‘सेनाएं’ अपने ही देश के खिलाफ युद्ध पर उतर आई हैं। उनके सेनानायक देश के लोगों से ‘जनता कर्फ्यू’ का आह्वान कर रहे हैं। वे तमाम कानून कायदों को ताक पर रखकर इस सारी हिंसा को एक तरह से जायज ठहराते हुए उलटा सवाल पूछ रहे हैं कि क्या हमसे विरोध का अधिकार छीन लिया गया है? वे अदालतों के फैसलों को सीना ठोककर चुनौती देते हुए कह रहे हैं- ‘’जब बात नहीं सुनी जाएगी तो प्रतिक्रिया तो होगी…’’
एक कवि की रचना पर बनी फिल्म, क्या इस देश के एक सम्मानित समुदाय के गौरवशाली इतिहास से बड़ी हो गई है? यदि ऐसा है तो,कमाल है भाई संजय भंसाली! जो काम बड़े से बड़ा विदेशी आततायी नहीं कर पाया, इस देश के उस गौरवशाली समुदाय को हिलाने का काम तुमने एक छोटी सी हरकत से कर दिखाया। आज तुम्हारी ‘पद्मावती’ उर्फ ‘पद्मावत’ इस देश को हिला डालने का सबब बन गई है।
विशुद्ध राजनीतिक और कारोबारी चक्रव्यूह में देश का समाज ऐसे पीसा जा रहा हो मानो चक्की में अनाज के दाने। और विडंबना देखिए कि प्रधानमंत्री और करणी सेना के मुखिया कल्याणसिंह कालवी दोनो ही महात्मा गांधी का नाम ले रहे हैं। मोदीजी गांधी का नाम लेकर दुनिया को बता रहे हैं कि भारत शांति और अहिंसा का देश है।
दूसरी तरफ कल्याणसिंह कालवी पद्मावत फिल्म की रिलीज किसी भी कीमत पर न होने देने के लिए प्रेस कान्फ्रेंस करते हुए कह रहे हैं कि मैं पोरबंदर गया था, वहां गांधी के आश्रम में मैंने यही प्रार्थना की- ‘’बापू हमें शक्ति दो… रास्ते में पड़ने वाले देवी मंदिरों में मैंने मन्नत मांगी,हे मां हमें शक्ति दो…’’
कालवी से पूछा गया, जो हिंसा हो रही है, लोगों को जो तकलीफ हो रही है क्या उसके लिए आप जनता से माफी मांगेंगे, वे बोले- ‘’मैं जरूर माफी मांगूंगा, मैं माफी मांगूंगा मां पद्मावती से कि हे मां जिसके लिए तुमने सोलह हजार स्त्रियों के साथ जौहर किया, क्या अब 800 साल बाद आपको उसीसे प्रेमालाप करते हुए दिखाया जाएगा…’’ गांधी का हवाला देते हुए कालवी बार बार यही कहते रहे- सबको सन्मति दे भगवान!!!
मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं गांधी से क्या कहूं। जिस देश की आजादी के लिए उन्होंने संघर्ष किया और उनकी जिस हस्ती को हमारे प्रधानमंत्री पूरी दुनिया के सामने एक संदेश के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, उसी गांधी के देश में हो रही हिंसा को, जायज प्रतिक्रिया बताते हुए,कोई उनसे जाकर यह प्रार्थना करे कि हे बापू हमें शक्ति दो, तो मैं क्या कहूं…
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं तो गांधी से सिर्फ यही माफी मांग सकता हूं कि हे बापू जिस देश के लिए तुमने संघर्ष किया और जिस अहिंसा के लिए अपना जीवन दे दिया, उसी देश में आज तुम्हारे जाने के 70 साल बाद, आग लगाने के लिए भी अब तुमसे ही ताकत मांगी जा रही है…
हो सके तो हमें माफ कर देना बापू!!!