अध्यात्म के नाम पर सेक्‍स का गोरखधंधा

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अजय बोकिल

लगता है इस देश में आध्यात्मिकता के नाम पर गोरखधंधों की कथा अनंत है। देश की राजधानी दिल्ली में जिस कथित आध्यात्मिक बाबा का भयंकर सेक्स स्कैंडल उजागर हो रहा है, उससे हाईकोर्ट तक हैरान है। वीरेन्द्र देव दीक्षित नामका यह ढोंगी बाबा 16 हजार रानियां बनाने का सपना न सिर्फ पाले हुए था, बल्कि उसे पूरा करने के लिए उसने किलेनुमा आश्रम भी बनवा रखा था। दिल्ली के उत्तरी इलाके रोहिणी में स्थित इस आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए आश्रम से 41 बागालिग लड़कियों को गिरफ्तार किया। बाबा के देश में ऐसे कई ‘आश्रम’ बताए जाते हैं। पुलिस को उसके यहां ड्रग्स और कई सीरिंज भी बरामद हुई हैं।

मामला उजागर होने के बाद से बाबा फरार है। आश्रम में अध्यात्म के नाम पर जो घिनौना सेक्स रैकेट उजागर हुआ है, उसके मुताबिक बाबा रोजाना 10 लड़कियों के साथ रेप करता था। इनमें कई लड़कियां नाबालिग थीं। यह आश्रम तीस साल से चल रहा था और पास पड़ोस के लोगों को खबर नहीं थी कि आश्रम के भीतर होता क्या है। जब एक एनजीओ संचालिका ने हिम्मत करके आश्रम के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई तो दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने पुलिस के साथ आश्रम पर रेड की। अब इस बेहद चौंकाने वाले मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं।

कोर्ट ने पाया कि इस तथा‍कथित विश्वविद्यालय में लड़कियों को बंधक बनाकर रखा गया है और कई तरह के अनैतिक काम किए जाते हैं। रेड के दौरान यह भी सामने आया कि आश्रम में रखी गई महिलाएं नारकीय हालत में रहने पर मजबूर थी। बाबा खुद को शिव बताता था और लड़कियों से कहता था कि मुझसे संबंध बनाओगी तो तुम पार्वती बन जाओगी। आश्रम में बंधक लड़कियों को बाकी दुनिया से कोई रिश्ता रखने नहीं दिया जाता था। बरामद लड़कियों की मानसिक दशा भी ठीक नहीं है। डॉक्‍टरों का कहना है कि कई लड़कियां अभी भी बोलने की स्थिति में नहीं है।

इस फर्जी बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित की कहानी भी आसाराम, संत रामपाल, राम रहीम, स्वामी ‍नित्यानंद की रासलीलाओं की अगली कड़ी है। बाबा वीरेन्द्र देव के कारनामे उजागर होने के बाद उसके कुछ समर्थकों ने साथ छोड़ना शुरू कर दिया है, लेकिन ज्यादातर की आंखों पर अभी भी पट्टी बंधी हुई है। बाबा के एक भक्त को जब यह पता चला तो उसकी प्रतिक्रिया थी कि हम लोग काफी सालों से बाबा के भक्त हैं। मैं बाबा की कृपा से संभला हूं। बिजनेस में काफी नुकसान हुआ था। बाबा की वजह से मेरे जीवन में खुशहाली आ गई। मेरी छोटी बेटी अभी भी इस आश्रम में रह रही है।

यहां विचार के मुद्दे दो हैं। पहला तो शहर के बीचोबीच यौन शोषण का धंधा बेखटके चल रहा था और किसी को इसकी खबर तक नहीं थी। अगर थी तो पुलिस ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? क्यों उसका मुंह अब तक बंद था? दूसरे, ऐसी कौन सी मजबूरियां हैं, जो लोगों को इन फर्जी बाबाओं का अंधभक्त बना देती है? ऐसे कुकर्मी बाबाओं के खिलाफ पुलिस तभी कार्रवाई करती है, जब उसे भरोसा हो जाए कि राजनीतिक नेतृत्व का इशारा किस ओर है, वरना पुलिस पैसे खाकर अपनी जेब भरती और गर्दन बचाती रहती है।

पड़ोसियों का कहना है कि बाबा वीरेन्द्र देव के यहां आश्रम में आधी रात के बाद कई रईसों और प्रभावशाली लोगों की गाडि़यां आया करती थीं। इसका साफ मतलब है कि बाबा की पहुंच ‘ऊपर’ तक थी। रहा सवाल ऐसे ढोंगियों के चंगुल में लोगों के फंसने का तो ये बाबा लोग दूसरों को प्रभावित करने की कला में माहिर होते हैं। उनकी बातों में आकर लोग अपनी विवेक बुद्धि खो बैठते हैं। उनका पूरी तरह ब्रेन वॉश हो जाता है। इसके लिए व्यक्ति अनपढ़ हो, यह जरूरी नहीं है।

उदाहरण के लिए हाल में एक पूर्व जस्टिस को बलात्कार मामले में जेल में बंद आसाराम के पैर सार्वजनिक रूप से छूते देखा गया। पता नहीं बाबा से वो कौन सा आशीर्वाद लेना चाहते थे और बाबा के पास अब देने को क्या बचा है, लेकिन चरण स्पर्श करने वाले महाशय को कानून की गरिमा की फिकर भी नहीं थी। यह शायद अंधभक्ति का सबसे घटिया और क्षुब्ध करने वाला उदाहरण है। वैसे भी अध्यात्म इस देश की जनता की ऐसी कमजोर नस है, जिसे कोई भी अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए चाहे जैसे दबा सकता है और यह सब धर्म या अध्यात्म के नाम पर होता है।

हो सकता है कि ये कथित बाबा अपना धंधा जमाने और लोगों का भरोसा जीतने के लिए दो चार का भला भी करते होंगे, लेकिन बाद में वो जो कुछ करते हैं, उसे देखकर यमदूत भी शरमा जाएं। विडंबना यह है कि ऐसे कुकृत्यों के प्रमाण मिलने और अदालतों द्वारा सजा दिए जाने के बाद भी अंधभक्तों की आंखों का पर्दा नहीं हटता। वे आंखों देखी मक्खी निगलने को तैयार रहते हैं, लेकिन अपने ‘गुरू’ के किसी भी अनैतिक काम पर विश्वास करने  को तैयार नहीं होते। उलटे वे यह मानते हैं कि उनके आराध्य बाबा या माता आदि कुछ गलत कर ही नहीं  सकते। यानी उनका ‘गलत’ भी ‘सही’ ही होगा।

वास्तव में अध्यात्म का उद्देश्य मनुष्य को ईश्वर की ओर ले जाना और सांसारिक मोह माया से निवृत्त करना है, लेकिन अध्यात्म की दुकानें खोले ये बाबा मनुष्य की भोगवृत्ति के सबसे बड़े उपभोक्ता और मार्केटियर है। वे मोक्ष दिलाने की आड़ में समाज को जहर पिलाने का काम बड़ी सफाई और बेशरमी के साथ करते हैं। इन्हें खुद नर्क में जाने का डर नहीं होता। जीवन की आपाधापी, संकट, तनाव और अपना विवेक गिरवी रखने की मजबूरी समाज में ऐसे बाताओं के फलने फूलने का स्पेस बनाती है। देश कितना ही संकट में हो, बाबाओं के इन गोरखधंधों पर कभी कोई आंच नहीं आने वाली।

(सुबह सवेरे में प्रकाशित आलेख से साभार)

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