देश में बाघों की संख्या बढ़ने और उसमें भी मध्यप्रदेश में सर्वाधिक बढ़ोतरी होने पर राज्य को ‘टाइगर स्टेट’ का दर्जा मिलने की खबर आने से सिर्फ तीन दिन पहले उत्तरप्रदेश के पीलीभीत जिले का जो वीडियो वायरल हुआ था, उसने यह सोचने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी थी कि इंसानों के रहते अब बाघों का जीवित रहना संभव है। लेकिन इसके बावजूद यदि बाघों की गणना के चमत्कारी नतीजे आए हैं और भारत एक बार फिर सबसे ज्यादा बाघ रखने वाला देश बन गया है, तो इसका श्रेय बाघों के संरक्षण में लगे तमाम लोगों को दिया जाना चाहिए।
26 जुलाई को वायरल हुआ पीलीभीत का वह वीडियो दहला देने वाला है। पीलीभीत टाइगर रिजर्व की दियोरिया रेंज के पास कुछ लोगों का बाघिन से सामना हो गया था। इसी दौरान घबराई बाघिन ने हमला कर दिया जिसमें 9 ग्रामीण घायल हो गए। गांव वालों को जब यह पता चला तो वे भाले और लाठी-डंडे आदि लेकर बाघिन पर टूट पड़े।
सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि लोग किस तरह बाघिन को पीट रहे हैं। बाघिन ने जब-जब उठने की कोशिश की लोगों के हमले ने उसे नाकाम कर दिया। बुरी तरह घायल बाघिन किसी तरह उठी तो हमलावर ग्रामीण डर कर दूर भाग गए। बाद में गंभीर रूप से घायल इस बाघिन ने दम तोड़ दिया।
बाघिन की इस पिटाई के वीडियो को शेयर करते हुए सोशल मीडिया पर किसी ने लिखा- ‘जानवर कौन?’ आज की भाषा और परिस्थितियों के संदर्भ में कहें तो वह ‘टाइगर लिंचिंग’ की बर्बरतम घटनाओं में से एक थी। और यह उदाहरण है कि जिस बाघ को बचाने के नाम पर हम करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं, और जिसके बच जाने को हम अपनी उपलब्धि मान रहे हैं, उसके साथ असलियत में हमारा सलूक कैसा है?
ऐसा नहीं है कि बाघों के साथ इस तरह का सलूक केवल भारत में ही हो रहा है। बाघ और इंसान के बीच जारी इस जंग से दुनिया का ऐसा कोई भूभाग अछूता नहीं है, जहां बाघों की थोड़ी सी भी मौजूदगी है। और यही कारण है कि दुनिया से बाघों के लुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है। इसी खतरे को देखते हुए नौ साल पहले रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में कई देशों ने मिलकर तय किया था कि 2022 तक दुनिया में बाघों की आबादी को दुगुना किया जाए।
29 जुलाई को ‘वर्ल्ड टाइगर डे’ पर भारत में बाघों की गणना के जो नतीजे घोषित किए गए, उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा के साकार हो सकने के प्रति पूरी दुनिया की उम्मीद को बहुत मजबूत किया है। सबसे बड़ी और खुशी की बात यह है कि इस मामले में अगुवाई भारत ने की है। भारत में भी मध्यप्रदेश बाघों के संरक्षण और वंश वृद्धि के मामले में सिरमोर बनकर उभरा है। वर्तमान स्थिति में मध्यप्रदेश पूरी दुनिया में सबसे अधिक बाघों की आबादी वाला इलाका है। यह हमारे लिए बहुत गौरव की बात है।
बाघ गणना के मुताबिक 2014 में जहां भारत में 2226 बाघ थे वे चार साल में बढ़कर 2967 हो गए हैं, यानी संख्या में 741 की वृद्धि हुई है। कुल बाघों में से 526 बाघ मध्यप्रदेश में हैं। जबकि 2014 में प्रदेश में बाघों की संख्या 308 थी। यानी चार सालों में हमने बाघों के कुनबे में 218 बाघों की बढ़ोतरी की है। मध्यप्रदेश के बाद कर्नाटक (524) और फिर उत्तराखंड (442) का नंबर है। सौ से अधिक बाघ रखने वाले राज्यों में महाराष्ट्र (312), तमिलनाडु (264) के अलावा असम और केरल (दोनों में 190-190) शामिल हैं।
दुनिया में इस समय बाघों की संख्या लगभग 3900 है। और इस हिसाब से देखा जाए तो धरती पर जंगल के इस राजा की कुल आबादी का करीब 76 फीसदी हिस्सा भारत में है। बाघ सिर्फ जंगल में रहने वाला प्राणी ही नहीं है, बल्कि हमारी पूरी जैव विविधता की धुरी भी है। बाघ हैं तो जंगल हैं और जंगल हैं तो पर्यावरण के बचे रहने की उम्मीद भी है।
बाघों की गणना के जो आंकड़े आए हैं, उन्होंने हमें गर्व करने का अवसर तो दिया ही है, लेकिन हमारी जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों बहुत अधिक बढ़ा दी है। सबसे पहली बात तो यह कि बाघों का कुनबा बढ़ने पर खुश होते समय हमें मध्यप्रदेश में पिछले पांच सालों में बाघों के शिकार और उनकी असमय हुई मौतों की संख्या को नहीं भूलना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि पिछले पांच सालों में ही प्रदेश में 28 बाघों का शिकार किया गया। अकेले 2019 में ही अब तक 11 बाघों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 6 की मौत आपसी लड़ाई के कारण, एक की शिकार के कारण व एक की करंट लगने से मौत हुई। बाकी तीन मौतों के कारणों का पता नहीं चल सका है।
बाघ संरक्षण को लेकर आई जागरूकता और संरक्षण के प्रयासों के चलते उम्मीद है कि जंगल के इस सबसे ताकतवर प्राणी की संख्या में आगे और बढ़ोतरी होगी। और यह बढ़ोतरी कई तरह से हमारे लिए चुनौती का कारण बनेगी। हमें इस वृद्धि को जारी रखते हुए सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि बाघ अपना जीवनकाल प्राकृतिक रूप से पूरा कर सकें। शिकार और असमय होने वाली उनकी मौतों को कम से कम किया जाए।
बाघों की बढ़ती आबादी के साथ एक बड़ा मसला उनके लिए जीने लायक स्थितियां मुहैया कराने का भी है। हमने देखा है कि कई बाघों की मौत आपसी लड़ाई में हो रही है। संख्या बढ़ने पर अपनी टेरेटरी को लेकर यह संघर्ष और बढ़ेगा और तब ऐसी मौतों की संख्या बढ़ने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। लिहाजा हमें बाघों की बसाहट के लिए नए क्षेत्र खोजने और विकसित करने होंगे।
मनुष्य और बाघों की बढ़ती आबादी के बीच संतुलन बिठाने के लिए जरूरी है कि बाघों के जीवनचक्र, विचरण और स्वभाव को लेकर जंगल के आसपास बसने वालों को और अधिक जागरूक व शिक्षित किया जाए, ताकि पीलीभीत जैसी घटनाओं को रोका जा सके। हमें बाघों की बढ़ती आबादी को देखते हुए उनके लिए भोजन और खासकर पानी के स्रोतों के भी पर्याप्त प्रबंध करने होंगे।
मुझे लगता है कि लगातार विपरीत परिस्थितियां झेलते और अपने अस्तित्व पर आए संकट के चलते बाघों में भी अपनी नस्ल को बचाने के लिए कुछ प्राकृतिक व शारीरिक परिवर्तन अवश्य आए होंगे। उन्होंने भी नई परिस्थितियों से निपटने और उनके अनुरूप खुद को ढालते हुए, अपनी नस्ल को बचाने के तरीके ढूंढे होंगे। ऐसे शारीरिक और व्यवहारगत परिवर्तनों पर और गहन अध्ययन किया जाना चाहिए ताकि उसके आधार पर हम दुनिया के सुंदरतम प्राणियों में से एक इस प्राणी के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में और अधिक असरकारी एवं परिणाममूलक ढंग से काम कर सकें।