राकेश अचल
मध्यप्रदेश के चंबल इलाके में मौत कहर बनकर टूटी। जहरीली शराब पीने से एक दर्जन से अधिक लोग बेमौत मारे गए हैं और इतने ही जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। इस भयानक हादसे के बाद प्रदेश सरकार ने परम्परानुसार पुलिस और आबकारी विभाग के मैदानी अमले को निलंबित कर मामले की जांच शुरू कर दी है। लेकिन असल सवाल जहाँ का तहाँ है कि प्रदेश में माफिया के खिलाफ अभियान चलाने का दावा करने वाली सरकार के रहते शराब माफिया सक्रिय कैसे है?
मध्यप्रदेश में जहरीली शराब का कारोबार और उससे होने वाली मौतों का ये कोई पहला मामला नहीं है। बीते वर्षों में रतलाम और उज्जैन में भी ऐसे ही हादसे हो चुके हैं लेकिन किसी को न सजा हुई और न ये काला कारोबार बंद हुआ। सरकार हर हादसे के बाद वैसे ही लकीर पीटती है जैसी मुरैना में हुए हादसे के बाद पीटी जा रही है। कुछ अनजाने लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाता है, मामले की कथित जांच होती है और बाद में सब कुछ धूल के नीचे दब जाता है। सरकार कभी भी इस संगठित माफिया के सरगनाओं तक नहीं पहुंचती।
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में शराब सरकार की आमदनी के प्रमुख स्रोतों में से एक है, इसीलिए कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में आये इस आय को छोड़ने के लिए राजी नहीं होता। शराबबंदी के मामले में सबका मानस एक जैसा होता है। भाजपा ने लगातार 15 साल सत्ता में रहने के बाद प्रदेश में शराबबंदी का साहस नहीं जुटाया जबकि भाजपा शासित गुजरात और बिहार में शराबबन्दी लागू है। ऐसे में 18 माह की कांग्रेस सरकार से तो शराबबंदी के बारे में उम्मीद करना ही बेमानी है। प्रदेश सरकार को शराब बेचने के कारोबार से कर के रूप में सालाना कम से कम दस हजार करोड़ रुपये की आय होती है। प्रदेश में अवैध शराब से भी सक्रिय माफिया कम से कम पांच हजार करोड़ का कारोबार करता है। इस काली कमाई में राजनीति,पुलिस और आबकारी विभाग का अमला शामिल होता है। कोई भी सरकार इस संगठित कारोबार को बंद नहीं करा सकी।
हैरानी की बात ये है कि इस बार जहरीली शराब काण्ड वहां हुआ है जहां आबकारी विभाग का मुख्यालय है। मुरैना से 35 किमी दूर ही प्रदेश के आबकारी आयुक्त का दफ्तर है। यहीं आबकारी नीति बनती है और यहीं से अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई की रणनीति। लेकिन दिया तले अन्धेरा होता ही है, शायद इसीलिए ग्वालियर में बैठे आबकारी आयुक्त को मुरैना में चलने वाले इस काले कारोबार की भनक तक नहीं लगी। सरकार भी अपने किसी उच्च अधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार नहीं मानती। सरकार की धारणा है कि अवैध कारोबार तो मैदानी अमले के संरक्षण में चलता है।
मध्यप्रदेश में अवैध शराब का कारोबार किसी एक अंचल की समस्या नहीं है। चंबल के अलावा मालवा, बुंदेलखंड, बघेलखण्ड, विंध्य अंचल में भी यह अवैध कारोबार खूब फल-फूल रहा है। प्रदेश के आबकारी और गृह विभाग के मंत्रियों में कोई समन्वय न होने से इस काले कारोबार के खिलाफ अब तक कोई संयुक्त अभियान नहीं चलाया गया। इस मामले में शिकायतें आते ही दोनों विभागों के अधिकारी और दलाल सक्रिय हो जाते हैं। शिकायतें दफन कर-करा दी जाती हैं लेकिन असल अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।
आपको जानकर हैरानी होगी कि कोरोना वायरस की महामारी के कारण देश में लागू लॉकडाउन की वजह से आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर अन्य सभी दुकानें बंद थीं। शराब की दुकानें भी बंद रहीं। लेकिन, केंद्र सरकार की नई गाइडलाइन में अनुमति मिलने पर देश के अलग-अलग राज्यों में 4 मई से ही शराब की दुकानें खुल गई हैं। पर मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में शराब के ठेके बंद ही रहे। हकीकत ये है कि प्रदेश सरकार ने रेड जोन के शहरी क्षेत्र को छोड़कर ग्रामीण इलाकों में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दे दी थी, लेकिन शराब के ठेकेदारों के साथ बातचीत में शर्तों को लेकर सहमति नहीं बन पाई। इसी कारण कई स्थानों पर शराब की दुकानें बंद ही रहीं। इससे सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान हुआ।
उन दिनों प्रदेश के आबकारी आयुक्त राजेश बहुगुणा ने बताया था कि मार्च और अप्रैल में राजस्व का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। आबकारी विभाग ने मार्च 2020 में 1995 करोड़ रुपये की राजस्व प्राप्ति का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस दौरान 1342 करोड़ रुपये का राजस्व ही प्राप्त हुआ। यानी 653 करोड़ रुपये की राजस्व क्षति विभाग को हुई। इसी तरह अप्रैल 2020 के लिए 1150 करोड़ रुपये राजस्व का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन पूरा अप्रैल लॉकडाउन में ही गुजर गया। इस दौरान महज 121 करोड़ रुपये का राजस्व ही प्राप्त हो सका। अप्रैल महीने में आबकारी विभाग को 1029 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ।
शराब की बिक्री नहीं होने से इस पर लगने वाले वैट की धनराशि भी विभाग को नहीं मिल पाई सो अलग। मार्च और अप्रैल में, कुल मिलाकर 118.69 करोड़ रुपये का राजस्व वैट के जरिए प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इसका भी नुकसान उठाना पड़ा। आबकारी विभाग का रोना ये है कि लॉकडाउन के कारण केवल शराब नहीं बिकने से ही प्रदेश को लगभग 1800 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है।
मध्यप्रदेश में पूरी सरकार आबकारी राजस्व बढ़ाने पर लगी रहती है लेकिन अवैध शराब कारोबार रोकने में किसी की भी दिलचस्पी नहीं है। विभाग डिफाल्टर आबकारी ठेकेदार व फर्जी नामों से ठेका लेने वालों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करता है लेकिन अवैध शराब कारोबारी उसके रडार पर नहीं आते। प्रदेश में अवैध शराब कारोबार के पनपने की एक वजह आबकारी विभाग में स्टाफ की कमी भी है लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। हमारी जानकारी के मुताबिक आबकारी विभाग का अमला लगभग 40 प्रतिशत कम है।
आबकारी आरक्षकों के स्वीकृत पद 1000 है और इसमें से 400 पद अभी भी खाली हैं। इसी प्रकार आबकारी उपनिरीक्षकों के 250 पदों में से 100 पद खाली पड़े हैं। विभागीय अधिकारी मानते हैं कि अमला कम होने से प्रवर्तन कार्रवाई में जरूर दिक्कत आती हैं। अब देखना ये है कि मुरैना में हुए हादसे के बाद राज्य सरकार कितने अपराधियों को दस फीट गहरे गड्ढे में दफन करती है? या फिर हमेशा की तरह ये हादसा भी पहले के मामलों की तरह दफन हो जाएगा।