पहली बात तो यह है कि रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का जो विस्तार और फेरबदल किया है वह अपनी अब तक की चौंकाने वाली फितरत के तहत ही किया है। तमाम मीडिया वाले अपने-अपने कयास लगाते रहे लेकिन मोदी ने किसी भी अनुमान को सच नहीं होने दिया। सूची में आने वाले लोगों के जो जो नाम मीडिया में चल रहे थे उनमें से केवल पूर्व आईपीएस अधिकारी सत्यपाल सिंह और बिहार के बक्सर से सांसद अश्विनी चौबे का ही नाम ऐसा रहा जो ठीक निकला।
मंत्रिमंडल के पिछले दो विस्तार में मोदी ने भाजपा संगठन में अच्छा काम कर रहे कई लोगों को मंत्रिमंडल में लिया था इनमें अनंत कुमार, रविशंकर प्रसाद, थावरचंद गेहलोत, मुख्तार अब्बास नकवी, प्रकाश जावड़ेकर, जेपी नड्डा, निर्मला सीतारमण, राजीवप्रताप रूडी, पीयूष गोयल, विजय गोयल जैसे नाम गिनाए जा सकते हैं। इस बार भी संगठन से जिन लोगों के नाम मीडिया चला रहा था उनमें पार्टी उपाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर, विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रभात झा, महासचिव भूपेंद्र यादव, राम माधव आदि के नाम शामिल थे। लेकिन इस बार संगठन से किसी को भी मंत्री बनने का मौका नहीं मिला है।
अब जरा मध्यप्रदेश की बात कर लें। रविवार को हुए विस्तार से पहले मोदी केबिनेट में मध्यप्रदेश से सात लोगों तक का प्रतिनिधित्व रहा है। इनमें सुषमा स्वराज, नरेंद्र तोमर, थावरचंद गेहलोत, नजमा हेपतुल्ला, प्रकाश जावड़ेकर, अनिल माधव दवे और फग्गनसिंह कुलस्ते के नाम शामिल थे। ताजा विस्तार से पहले भी मध्यप्रदेश कोटे से दो स्थान खाली हुए थे। इनमें एक अनिल माधव दवे के निधन के कारण और दूसरा फग्गनसिंह कुलस्ते से इस्तीफा लिए जाने के कारण। और इस लिहाज से देखें तो वीरेंद्रकुमार को लिए जाने के बाद भी राज्य से एक मंत्री कम हुआ है। अब केंद्र में राज्य का प्रतिनिधित्व पांच मंत्री कर रहे हैं। क्योंकि नजमा हेपतुल्ला से इस्तीफा लेकर उन्हें मिजोरम का राज्यपाल बनाया जा चुका है।
सवाल उठता है कि इस विस्तार में मध्यप्रदेश का वजन बढ़ा या कम हुआ। तो स्थितियां बताती हैं कि मध्यप्रदेश एक तरह से मोदी मंत्रिमंडल में बदनाम ही हुआ है। एक समय भाजपा की फायरब्रांड नेता कही जाने वाली उमा भारती का मंत्री पद भले ही बच गया हो, लेकिन सभी जानते हैं कि उनके नॉन परफार्मेंस की वजह से उन्हें हटाने की स्थितियां बन गई थीं। उनसे गंगा सफाई जैसा महत्वपूर्ण और मोदी की अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना से जुड़ा विभाग लेकर पेयजल एवं सफाई जैसा विभाग सौंपा गया है। गंगा की सफाई से नाली की सफाई तक उतर आना प्रमोशन तो नहीं कहा जा सकता। और जो स्थितियां बनी हैं उनके चलते ऐसा लगता नहीं कि उमा भारती ज्यादा दिन मंत्रिमंडल में रह पाएंगी।
दूसरा मामला फग्गनसिंह कुलस्ते का है। उनका इस्तीफा होने के बाद मीडिया में जो खबरें छपीं हैं वे चौंकाने वाली हैं। खबरें कहती हैं कि कुलस्ते पर उनकी एक परिजन से जुड़े एनजीओ को फंड दिलाने का मामला भारी पड़ा। बताया गया कि पीएमओ इस बात पर नजर रख रहा था कि कुलस्ते एक खास एनजीओ को फंड दिलाने की कोशिश कर रहे थे।
उल्लेखनीय है कि कुलस्ते का नाम संसद में नोट के बदले वोट कांड में भी उछला था। जुलाई 2008 में जब अमेरिका से परमाणु समझौते के विरोध में तत्कालीन यूपीए सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव आया था, तब पूरे देश में नोट के बदले वोट कांड की चर्चा हुई थी। भाजपा के जिन सांसदों ने लोकसभा में नोटों के बंडल लहराते हुए तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार पर सांसदों को खरीदने का आरोप लगाया था, उनमें फग्गन सिंह कुलस्ते भी शामिल थे। वह नोटों के बंडल लहराते टीवी पर देखे गए थे और उन्हें इस कारण जेल भी जाना पड़ा था।
कुलस्ते को बड़े आदिवासी नेता के रूप में जाना जाता है। वे मंडला से पांच बार के सांसद हैं। मोदी केबिनेट में वे स्वास्थ्य राज्य मंत्री थे। इस्तीफा लिए जाने के बाद उन्होंने मीडिया से कहा- ‘’मैंने गई जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया है। मैं पार्टी संगठन का वफादार रहा हूं, भविष्य में पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी मैं स्वीकार करूंगा, मैंने कोई अपराध नहीं किया है।‘’
ऐसे में कुलस्ते को हटाए जाने के कारणों को लेकर जो धुंध छाई है उसका दूर होना जरूरी है। यदि उनके खिलाफ छपी खबरें सही हैं तो खुद सरकार या पार्टी को उनकी जांच करवाकर कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए या फिर वह कारण बताया जाना चाहिए जिसके चलते उन्हें मंत्रिमंडल से हटाया गया।
जहां तक इस बार मंत्रिमंडल में शामिल किए गए वीरेंद्र कुमार का सवाल है वे लोकसभा में पहली बार 1996 में सागर सीट से चुने गए थे। छह बार के सांसद वीरेंद्र कुमार पिछले दो चुनाव टीकमगढ़ क्षेत्र से जीत रहे हैं। उनकी सादगी और पार्टी के प्रति समर्पण के अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उनकी निकटता की उनके मंत्री बनने में मुख्य भूमिका रही है। मंत्रिमंडल के लिए उनका चयन कर पार्टी ने अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधि (फग्गनसिंह कुलस्ते) को हटाकर अनुसूचित जाति के व्यक्ति को प्रतिनिधित्व दिया है।
वैसे प्रदेश से मंत्री बनने के लिए एक नाम दमोह के सांसद प्रहलाद पटेल का भी था लेकिन ऐन मौके पर उमा भारती को मंत्रिमंडल में बनाए रखने के फैसले के चलते संभवत: उनके नाम पर विचार नहीं हो पाया। क्योंकि उमा भारती व प्रहलाद पटेल एक ही समुदाय और एक ही क्षेत्र (बुंदेलखंड) के हैं। रहा सवाल संगठन से जुड़े लोगों का तो जब सिद्धांतत: इस पर विचार ही नहीं हुआ तो फिर मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद और पार्टी उपाध्यक्ष प्रभात झा अथवा महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद एवं पार्टी उपाध्यक्ष के तौर पर मध्यप्रदेश के प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे के नाम का सवाल ही नहीं उठा होगा।