भू-माफिया के ज्‍वालामुखी पर बैठा मध्‍यप्रदेश

मध्‍यप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के वरिष्‍ठ सदस्‍य और प्रदेश के पूर्व मंत्री महेंद्रसिंह कालूखेड़ा सोमवार को जब यह कह रहे थे कि ’’माननीय अध्‍यक्ष महोदय,आप एक वाल्‍केनो (ज्‍वालामुखी) पर बैठे हुए हैं… आप भ्रष्‍टाचार और भू-माफियाओं के वाल्‍केनो पर बैठे हैं…’’ तो वे न सिर्फ अपने प्रश्‍न से उपजे मुद्दों की ओर सरकार का ध्‍यान दिला रहे थे, बल्कि वे मध्‍यप्रदेश में आने वाले समय की एक ऐसी समस्‍या को लेकर सचेत कर रहे थे जो बड़े पैमाने पर खून खराबे का कारण बन सकती है।

कालूखेड़ा ने मूल रूप से अशोकनगर जिले के तुलसी सरोवर की जमीन पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण का मामला उठाया था। प्रदेश में सरकारी जमीन को लेकर ऊपर से नीचे तक होने वाले भ्रष्‍टाचार की पोल खोलता यह मामला बताता है कि भू-माफिया किस दबंगई से अपना काम कर रहा है और सरकारी तंत्र में फैला भ्रष्‍टाचार किस तरह उसे भरपूर संरक्षण देकर फलने फूलने के अवसर उपलब्‍ध करा रहा है।

मूल रूप से मामला यह था कि अशोकनगर के तुलसी सरोवर में सिंचाई विभाग की करोड़ो रुपए की जमीन भू माफिया ने हड़प ली। इस मामले में जल संसाधन विभाग के सब इंजीनियर के साथ ही जिला कांग्रेस अध्‍यक्ष गजराम सिंह ने शिकायत की। एसडीओ ने इलाके के पटवारी को सरकारी दस्‍तावेजों से छेड़छाड़ करने और जमीन पर अवैध निर्माण कराने के आरोप मे निलंबित कर दिया। उसके खिलाफ एफआईआर भी करवाई गई।

इसके बाद ऊंचा खेल शुरू हुआ। एसडीओ के 8 दिसंबर 2016 के इस आदेश के खिलाफ राजस्‍व मंडल ग्‍वालियर में अपील की गई और राजस्‍व मंडल ने 6 जनवरी 2017 को, यानी एक महीने से भी कम समय में सुनवाई कर पटवारी के निलंबन और उसके खिलाफ एफआईआर दोनों का आदेश निरस्‍त कर दिया।

कालूखेड़ा के साथ साथ भाजपा के वरिष्‍ठ विधायक और पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर सहित कई सदस्‍यों ने राजस्‍व मंत्री से इस संबंध में सवाल पूछे। कालूखेड़ा ने चार मामले गिनाते हुए सीधा आरोप लगाया कि राजस्‍व मंडल ने करोड़ो रुपए की जमीन के इन मामलों में भू माफिया को संरक्षण दिया है। निचले स्‍तर पर कार्रवाई होती है तो मंडल उसमें अपनी टांग अड़ा देता है।

राजस्‍व मंत्री ने सदस्‍यों को जवाब से संतुष्‍ट करने की भरसक कोशिश करते हुए अपनी मजबूरी बताई कि राजस्‍व मंडल न्‍यायिक प्रक्रिया वाला बोर्ड है, उसके खिलाफ जांच का अधिकार सरकार के पास नहीं है। राजस्‍व मंडल के बारे में सरकार समीक्षा कर रही है, लेकिन उसके निर्णय की समीक्षा का अधिकार सरकार के पास नहीं है।

सरकार के इस जवाब तथा बहस से जो बात निकली वह यह थी कि भ्रष्‍टाचार का अड्डा बन गए राजस्‍व मंडल को ही खत्‍म किया जाए। कालूखेड़ा ने कहा‍ कि जो बोर्ड मैनेज हो जाए या सरकार के फैसलों के खिलाफ ही निर्णय देने लगे ऐसे बोर्ड का औचित्‍य क्‍या है? सरकार राजस्‍व बोर्ड एक्‍ट में संशोधन कर उसके अधिकार अपने हाथ में ले ले।

दरअसल मध्‍यप्रदेश में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ज्‍यादातर ऐसे मामलों में राजस्‍व से जुड़ा अमला निचले स्‍तर पर ही मैनेज हो जाता है। कभी कभार वहां से कोई कार्रवाई होती भी है तो ऐसे मामले राजस्‍व मंडल में चले जाते हैं, जो इन्‍हें निपटाने की सर्वोच्‍च संस्‍था है। अनेक विधायक कई बार कह चुके हैं कि वहां मामले आसानी से मैनेज कर लिए जाते हैं।

राजस्‍व मंडल की भूमिका और उसके खिलाफ लगातार मिल रही शिकायतों के मद्देनजर खुद मुख्‍यमंत्री ने पिछले दिनों एक समिति गठित कर उसे सारी बातों की समीक्षा का काम दिया है। भू-सुधार आयोग इस बात को देख रहा है कि राजस्‍व मंडल की उपयोगिता क्‍या है, उसके वर्तमान सिस्‍टम में सुधार की कोई गुंजाइश है भी या नहीं, यदि है तो उसे किस तरह ठीक किया जा सकता है अथवा क्‍या उसे खत्‍म करना ही एकमात्र उपाय है। यदि खत्‍म किया जाए तो उसका विकल्‍प क्‍या हो सकता है।

प्रदेश में अभी राजस्‍व संबंधी मामलों को निपटाने का बहुत पेचीदा सिस्‍टम है। ऐसे मामलों में तहसीलदार के यहां शिकायत दर्ज होती है। वहां के फैसले की एसडीओ के यहां, एसडीओ की कलेक्‍टर के यहां, कलेक्‍टर की संभागायुक्‍त के यहां और संभागायुक्‍त की राजस्‍व मंडल में अपील हो सकती है। इस लंबी प्रक्रिया के कारण मामले सालों साल खिंचते रहते हैं और धनबल या बाहुबल के कारण प्रभावित भी होते हैं।

भू माफिया ने ऐसे मामलों में एक गली और निकाल ली है,वे तहसीलदार के फैसलों के खिलाफ सीधे राजस्‍व मंडल चले जाते हैं। वहां से अपने मन मुताबिक फैसला करवा लेने के बाद उनके खिलाफ कलेक्‍टर और कमिश्‍नर भी कुछ नहीं कर पाते। राजस्‍व मंडल की अपील हाईकोर्ट में होती है, जहां जाना हर किसी के बूते की बात नहीं होती।

भू-माफिया के अलावा प्रदेश में जिस तरह आबादी बढ़ रही है और रोजगार के लिए लोग जिस तरह भटक रहे हैं उसके चलते सरकारी जमीन पर बहुत बड़ा संकट खड़ा हुआ है। यदि आज समुचित उपाय नहीं किए गए तो आने वाले दिनों में सारी सरकारी जमीन ऐसे ही विवादों में उलझी हुई मिलेगी। खुद सरकार को ही अपनी विकास योजनाओं के लिए जमीन ढूंढना दूभर हो जाएगा।

और जब ऐसे कब्‍जे आसानी से नहीं हटेंगे तो खून खराबे का कारण बनेंगे। ऐसे में कालूखेड़ा की इस चेतावनी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए कि जमीन के मामले में हम ज्‍वालामुखी पर बैठे हैं।

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