अच्‍छा नहीं है कश्‍मीर में बुरा होने की मनौती मांगना

24 अगस्‍त 2019 को भारत के तमाम समाचार टीवी चैनलों के स्‍क्रीन पर दोपहर करीब सवा बारह बजे जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के दिग्‍गज नेता अरुण जेटली के निधन की खबरें चमकने लगीं थीं, उससे ऐन पहले तक वे सभी स्‍क्रीन कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष राहुल गांधी के साथ श्रीनगर गए नौ विपक्षी दलों के 12 नेताओं की तसवीरें दिखा रहे थे। ऐसी आखिरी तसवीरों में ये नेता श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरते दिख रहे थे। लोग यह जानने को उत्‍सुक थे कि आखिर इन नेताओं के साथ क्‍या होता है, क्‍या इन्‍हें श्रीनगर या घाटी के किसी इलाके में जाने की इजाजत मिलेगी, या फिर उन्‍हें हवाई अड्डे से बाहर ही नहीं निकलने दिया जाएगा।

लोग वो सब कुछ होता हुआ देख पाते इसी बीच अरुण जेटली के निधन की खबर चमकने लगी। और देखते ही देखते उस खबर ने विपक्षी नेताओं के कश्‍मीर दौरे की खबर को लील लिया। जेटली के निधन की खबरों और उनके विजुअल्‍स के बीच ही, स्‍क्रीन पर नीचे चलने वाली खबरपट्टी के जरिये देश ने जाना कि उस दिन श्रीनगर हवाई अड्डे पर वही हुआ जिसका ज्‍यादातर लोगों को पहले से ही अनुमान था। विपक्षी नेताओं को श्रीनगर में घुसने की इजाजत नहीं मिली और उन्‍हें हवाई अड्डे से ही लौटा दिया गया।

जेटली के निधन और उसके चलते विपक्षी नेताओं के श्रीनगर दौरे की खबरों के ऑफस्‍क्रीन हो जाने के बारे में सोशल मीडिया पर जो निहायत ही घटियापन हुआ उसके बारे में मैं कोई बात नहीं करना चाहूंगा, क्‍योंकि ऐसी गंदगी से खुद को दूर रखना ही बेहतर है। आप सोच रहे होंगे कि जिस बात को तीन दिन बीत गए उस पर आज बात करने की क्‍या तुक है। तो उसका कारण यह है कि जिस तरह 24 अगस्‍त को कई लोग बहुत उत्‍सुकता से यह जानना चाहते थे कि श्रीनगर में विपक्षी दलों का हश्र क्‍या होता है, उसी तरह 26 अगस्‍त को भी देश इस बात पर नजरें गड़ाए था कि जी-7 समिट के दौरान फ्रांस के बिअरेत्‍ज में मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान क्‍या होता है?

मामला 24 अगस्‍त को भी कश्‍मीर के हालात और उसके भविष्‍य से जुड़ा था और 26 अगस्‍त को भी। और भारत ही क्‍यों पूरी दुनिया इस पर नजरें गड़ाए हुई थीं कि कश्‍मीर में धारा 370 समाप्‍त कर देने और पूरे राज्‍य का पुनर्गठन करने के भारत सरकार के फैसले के बाद, अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप इस बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधी मुलाकात में कश्‍मीर को लेकर क्‍या कहते हैं। यह जानने की धुकधुकी इसलिए भी थी कि ट्रंप पिछले दो महीनों में कश्‍मीर को लेकर सीधे तौर पर भी और दाएं बाएं होते हुए भी कश्‍मीर मामले में अपनी मध्‍यस्‍थता की बात को दोहरा चुके थे। और उन्‍होंने सिर्फ अपने स्‍तर पर ही यह बात नहीं कही थी। 22 जुलाई को पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के अमेरिका दौरे के समय दोनों नेताओं की संयुक्‍त प्रेस कान्‍फ्रेंस में ट्रंप ने कश्‍मीर मामले में टांग फंसाते हुए, यह कहकर मोदी को भी लपेट लिया था कि खुद नरेंद्र मोदी ने उनसे (ट्रंप) कश्‍मीर में मध्‍यस्‍थता करने को कहा है।

हालांकि बाद में भारत ने इसका पुरजोर खंडन किया था और अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी ट्रंप के बयान के विपरीत कश्‍मीर को भारत व पाकिस्‍तान के बीच का मामला बताकर अपने राष्‍ट्रपति के बयान से पैदा हुई गफलत की धुंध को साफ करने की कोशिश की थी। लेकिन फिर भी निगाहें बिअरेत्‍ज पर लगी थीं, जहां इन तमाम सारे कांडों के बाद ट्रंप और मोदी के बीच सीधी मुलाकात और बात होने वाली थी। इस मुलाकात पर सबसे ज्‍यादा नजरें पाकिस्‍तान की गड़ी हुई थीं, वह उम्‍मीद कर रहा था कि अमेरिका कश्‍मीर को लेकर जरूर ऐसा कोई ट्रंप कार्ड खेलेगा जिससे उसे इस मुद्दे पर खेलने और भारत को उलझाने के साथ साथ घरेलू मोर्चे पर चल रहे संकट और घमासान से भी ध्‍यान बंटाने का अवसर मिल सकेगा।

और जब 26 अगस्‍त की शाम दोनों नेताओं की बातचीत और मुलाकात का ब्‍योरा और विजुअल्‍स सामने आए तो पांसा ही पलट चुका था। दोनों नेताओं की संयुक्‍त प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में जब एक पत्रकार ने मोदी से पूछा कि कश्मीर मुद्दे पर भारत-पाकिस्तान के बीच राष्‍ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश को आप कैसे देखते हैं? तो इसके जवाब में मोदी ने कहा, ”भारत और पाकिस्तान के सारे मुद्दे द्विपक्षीय हैं। इसलिए हम दुनिया के किसी भी देश को इसके लिए कष्ट नहीं देते हैं। और मुझे विश्वास है कि भारत और पाकिस्तान जो 1947 के पहले एक ही थे, हम मिलजुल कर हमारी समस्याओं पर चर्चा भी कर सकते हैं और समाधान भी कर सकते हैं।”

ट्रंप ने एक तरह से पूरी दुनिया के सामने मोदी की बात की ताईद करते हुए कहा- ‘’मुझे पूरा यक़ीन है कि भारत और पाकिस्तान आपस में मिलकर सभी मुद्दे सुलझा लेंगे। मोदी ने उन्हें बताया है कि कश्मीर में हालात नियंत्रण में हैं।‘’ ट्रंप ने इस बार अपने बयान में मध्‍यस्‍थता का कोई जिक्र नहीं किया। इसके बाद पूरी दुनिया में ट्रंप और मोदी के एक दूसरे का हाथ ठोकते हुए जो विजुअल्‍स वायरल हो रहे हैं, वे भारत की स्थिति को मजबूती ही देते हैं।

अब सवाल सिर्फ इतना है कि अमेरिका चाहे जो कहे, पाकिस्‍तान अपनी मजबूरियों के चलते जो राग अलापना हो अलापे, लेकिन हम भारत के लोग और भारत के राजनीतिक दल क्‍या चाहते हैं? मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इस मामले में विपक्ष की आवाज को बिलकुल अनसुना कर दिया जाना चाहिए, लेकिन विपक्ष को यह समझ कब आएगी कि यदि वह राजनीति भी कर रहा है तो ऐसी राजनीति उसके लिए ही घातक है। अरे जब पुलवामा और बालाकोट भावनात्‍मक मुद्दा बनकर चुनाव में विपक्ष को मटियामेट कर सकते हैं तो यह तो 370 को खत्‍म करने का मामला है। आप हर बार उस सान पर ही अपनी तलवार क्‍यों रगड़ना चाहते हैं जो भाजपा की तलवार को धारदार करने के लिए ही बनाई गई हो।

रही बात कश्‍मीर के लोगों और वहां अमन की, तो थोड़ा इंतजार करने में क्‍या हर्ज है। क्‍या आप ऐसा सोच रहे हैं कि यह सरकार कश्‍मीरियों का (आप अपनी ‘सुविधा’ से यहां कश्‍मीरियों के बजाय घाटी के मुसलमानों पढ़ सकते हैं) घरों में घुसकर कत्‍लेआम करवा देगी? क्‍या ऐसा संभव है? जो भी होगा आज नहीं तो कल सामने आ ही जाएगा, अच्‍छा होना होगा तो भी और बुरा होना होगा तो भी। जरूरत इस बात की है कि विपक्ष खुद को इस मानसिकता से बाहर लाए कि कश्‍मीर में यदि अच्‍छा हो गया तो भाजपा को फायदा हो जाएगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here