यह किस्सा मुझे उस समय भी याद आया था जब आतंकवादी गतिविधियों के आरोपी और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया -सिमी- के आठ सदस्य 30 अक्टूबर यानी दीवाली की रात भोपाल की सेंट्रल जेल से फरार हुए थे। और यह किस्सा मुझे रविवार को भी याद आया, जब पंजाब की नाभा जेल पर हमला कर खालिस्तान लिबरेशन फोर्स से जुड़े आतंकी हरमिंदरसिंह मिंटू के अलावा चार और कैदियों को छुड़ा लिया गया।
किस्सा करीब 12 साल पुराना है। मैं उन दिनों चंडीगढ़ में अमर उजाला समूह के ब्यूरो चीफ के रूप में पदस्थ था। एक दिन हमारे सिटी चीफ दीपक वाजपेयी ने संपादक उदय कुमार जी के कमरे में चर्चा के दौरान ऐसी सूचना दी कि एक पल को मैं और उदयजी दोनों चौंक गए। अपने पाठकों की जानकारी के लिए बता दूं कि दीपक इन दिनों दिल्ली में आम आदमी पार्टी में प्रवक्ता की हैसियत से जुड़े हुए हैं। वे हमारे स्टार रिपोर्टर हुआ करते थे।
तो दीपक ने बंद कमरे की चर्चा में बताया कि चंडीगढ़ के निकट बनी अत्यंत सुरक्षित मानी जाने वाली बुड़ैल जेल में कुछ कैदी फरार होने के लिए एक सुरंग बना रहे हैं। यह ऐसी सूचना थी जिसे सुनकर एकबारगी तो हम भौंचक रह गए। एक पल को तो भरोसा ही नहीं हुआ। हमने दीपक से पूछा- ‘सच कह रहे हो?’ दीपक ने कहा- ‘हां सर वहां सुरंग बनाई जा रही है।‘
…वैसे तो अखबार की दुनिया में ऐसी कई सनसनीखेज सूचनाएं प्रतिदिन हवा में तैरती रहती हैं, लेकिन यह प्रोफेशन का तकाजा होता है कि उन सूचनाओं को तथ्यों, प्रमाणों आदि की पड़ताल या समुचित आधार होने के बाद ही खबर बनाया जाए। क्योंकि हवा हवाई बातों को खबर बना दिए जाने से अखबार तो मुश्किल में पड़ता ही है, पूरे प्रोफेशन की साख पर भी बट्टा लगता है। सूचना या जानकारी की विश्वसनीयता अखबारी दुनिया की सबसे बड़ी जरूरत और सबसे बड़ी पूंजी है।
लिहाजा हमने दीपक से पूछा कि उनकी इस सूचना का स्रोत क्या है? दीपक ने बताया कि जेल से ही उनके एक ‘सोर्स’ ने यह खबर दी है। हमारी तमाम आशंकाओं, जिज्ञासाओं और ढेर सारे सवालों के बावजूद दीपक अपनी बात पर अड़े हुए थे और उनका कहना था कि उनका ‘सोर्स’ पक्का है और उन्हें मिली सूचना सौ फीसदी सही है। लेकिन फिर भी सूचना इतनी गंभीर थी कि हम उस पर यकीन करने का मन नहीं बना पा रहे थे। उसे खबर बनाने की बात तो अभी बहुत दूर थी।
दरअसल जिस तरह पुलिस का अपना मुखबिर तंत्र होता है, उसी तरह एक पत्रकार का भी अपना मुखबिर तंत्र होता है। पत्रकारों के पास कोई जादू की छड़ी नहीं होती जो उन्हें सूचनाएं जुटाकर ला देती हो, उनके अपने ‘सोर्स’ ही ऐसी सारी सूचनाएं मुहैया कराते हैं। हां, संपादक स्तर के लोगों को यह तय करना होता है कि वह सूचना कहां तक सही, विश्वसनीय और प्रकाशन योग्य है।
यही कारण रहा कि दीपक वाजपेयी की उस ‘सूचना’ को विश्वसनीयता की कसौटी पर खरा उतरने और पूरी संतुष्टि होने तक, खबर बनने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा। बाद में हमने ‘रिस्क’ लेते हुए उस खबर को प्रकाशित किया। जैसी कि आशंका थी जेल प्रशासन ने खबर का खंडन किया और ऐसे मामलों में अखबार को देख लेने जैसी जो बातें कही जाती हैं वे भी हुईं।
लेकिन जेल प्रशासन की बदकिस्मती देखिए कि उन्होंने बैरक में सुरंग बनाए जाने की हमारी जिस खबर का पुरजोर खंडन करते हुए हमें कानूनी कार्रवाई तक की धमकी दी थी, बुड़ैल जेल की उसी बैरक से कुछ ही दिन बाद पांच कैदी फरार हो गए। इनमें पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंतसिंह की हत्या के आरोपी जगतार सिंह हवारा, जगतार सिंह तारा, परमजीत सिंह भ्योरा के अलावा उनका रसोइया और हत्या का ही एक अन्य आरोपी देव सिंह शामिल था। इस घटना के बाद दीपक वाजपेयी रातोंरात सुपर स्टार हो गए।
बुड़ैल जेल से जुड़ा 12 साल पुराना यह किस्सा मुझे जेल ब्रेक की ताजा वारदात के कारण ही याद नहीं आया। इसे सुनाने के पीछे मेरा मकसद मूल रूप से यह बताना है कि जेल से फरारी या वहां घुसपैठ की घटनाएं, किसी भी सूरत में इतनी गोपनीय नहीं हो सकतीं कि उनका किसी को भी पता न चले। इनमें या तो कहीं न कहीं किसी की मिलीभगत होती है या किसी न किसी को उसकी भनक जरूर होती है। यदि ऐसा नहीं होता तो बुड़ैल जेल से खतरनाक कैदियों की, सुरंग के जरिए फरारी से पहले, हमारे रिपोर्टर तक यह बात कैसी पहुंचती कि वहां एक सुरंग बनाई जा रही है। और वह सुरंग भी कोई छोटी मोटी नहीं थी। ढाई फुट चौड़ी, 14 फुट गहरी और 90 फुट से अधिक लंबी वह सुरंग रातोंरात नहीं खुद गई होगी। पर सारी आंखें मुंदी रहीं। रविवार को हुई नाभा जेल की घटना के पीछे भी ऐसा ही कोई इतिहास छिपा होगा और भोपाल सेंट्रल जेल में 30 अक्टूबर को हुई घटना के पीछे भी।
दरअसल हमारी मुश्किल यह है कि हम इतिहास से कोई सबक नहीं लेते… और शायद अब तो हमने वर्तमान से भी सबक लेना छोड़ दिया है… खुदा खैर करे…