देश के बैंकिंग व्यवसाय में लगातार हो रहे भ्रष्टाचार, फर्जीवाड़े और घोटालों के माहौल में भारत की वित्त मंत्री का एक हैरान करने वाला बयान आया है। इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (पीएमसी) घोटाले को लेकर निर्मला सीतारमन ने कहा है कि सरकार का इस घोटाले से कोई लेना देना नहीं है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया इस मामले को देख रहा है।
आर्थिक जगत में मची खलबली और चारों ओर से आ रही आर्थिक मंदी की खबरों के बीच वित्त मंत्री का यह बयान गैर जिम्मेदाराना तो है ही, बैंकिंग व्यवस्था को और ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला भी है। इससे सरकार के साथ साथ बैंकिंग सिस्टम में भी लोगों का भरोसा टूटेगा। ऐसे समय में जब बैंक लाखों करोड़ रुपए के एनपीए की समस्या से जूझ रहे हों, यदि लोगों का रहा सहा भरोसा भी टूटा तो बैंकिंग सिस्टम का भगवान ही मालिक है।
दरअसल पीएमसी पर वित्त मंत्री का बयान भी राजनीतिक मजबूरी के तहत आया है। इन दिनों महाराष्ट्र के साथ-साथ पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में विधानसभा चुनाव का माहौल है। वित्त मंत्री 10 अक्टूबर को मुंबई के भाजपा कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाली थीं। इसकी जानकारी मिलने के बाद पीएमसी घोटाले से प्रभावित लोगों ने भाजपा दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया।
चुनावी माहौल में इस तरह का प्रदर्शन भाजपा की संभावनाओं पर कोई विपरीत असर न डाले शायद इसीलिए निर्मला सीतारमन प्रदर्शनकारियों से मिलने को तैयार हुई होंगी। लेकिन घोटाले से पीडि़त बैंक ग्राहकों से चर्चा में भी उन्होंने कोई ठोस बात नहीं की, न ही समस्या के पुख्ता समाधान का कोई जरिया बताया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि हम ऐसी घटनाओं को रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो हम एक्ट में बदलाव करेंगे, लेकिन अभी इस बदलाव के बारे में ज्यादा कुछ कह नहीं सकते हैं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी यह मुद्दा उठा तो वहां भी वित्त मंत्री ने सफाई दी कि सरकार का इस बैंक घोटाले से कोई लेना देना नहीं है। बैंकिंग रेगुलेटर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है और वही इस मामले को देख रहा है। वित्त मंत्रालय ने अपनी तरफ से पहल करते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय को पूरे मामले का अध्ययन कर यह रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है कि वास्तव में हो क्या रहा है।
पीएमसी 11,600 करोड़ रुपये से अधिक की जमाराशि के साथ देश के टॉप 10 सहकारी बैंकों में से एक है। लेकिन इसके बावजूद उसके ग्राहक बैंक में जमा की गई अपनी ही राशि नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बैंक में घोटाले की खबरों के बाद उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। बैंक को कोई नया लोन देने से मना करने के साथ ही पहले अपने खाते से ग्राहकों को सिर्फ 1000 रुपए ही निकालने की इजाजत दी गई थी, लेकिन जब हल्ला मचा और भारी विरोध हुआ तो 26 सितंबर को यह लिमिट बढ़ाकर 10000 रुपए और बाद में 3 अक्टूबर को 25000 रुपए कर दी गई।
पीएमसी पर ये पाबंदियां कामकाज में अनियमितताएं और रीयल एस्टेट कंपनी एचडीआईएल को दिये गये कर्ज के बारे में सही जानकारी नहीं देने के बाद लगाई गई हैं। बैंक ने एचडीआईएल को अपने कुल कर्ज 8,880 करोड़ रुपये में से 6,500 करोड़ रुपये का ऋण दिया था। यह बैंक द्वारा दिए गए कर्ज का करीब 73 प्रतिशत है और यह पूरा कर्ज पिछले दो-तीन साल से एनपीए बना हुआ है।
शुरुआती आकलन के मुताबिक पीएमसी का घोटाला 4300 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है। इस मामले में अब तक प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) चार लोगों को गिरफ्तार कर चुका है। इसमें रियल एस्टेट कंपनी एचडीआईएल के प्रमोटर्स सारंग और राकेश वाधवान के साथ ही पीएमसी बैंक के पूर्व एमडी जॉय थॉमस और पूर्व चेयरमैन वरयाम सिंह शामिल हैं। जांच में यह भी पता चला है कि एचडीआईएल ने बैंक ऑफ इंडिया का बकाया चुकाने के लिए भी पीएमसी बैंक से 90 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था।
अब तक की जांच में सामने आया है कि बैंक और एचडीआईएल कंपनी, दोनों ही आरबीआई और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को धोखे में रखने के लिए 10 साल से यह खेल कर रहे थे। इस सांठगांठ के जरिये हुई धोखाधड़ी को छिपाने के लिए बैंक में करीब 21 हजार डमी अकाउंट्स खोले गए और उनके जरिए लेनदेन को वाजिब दिखाया किया जा रहा था।
पीएमसी बैंक की वेबसाइट के मुताबिक 13 फरवरी 1984 को शींव क्षेत्र में एक छोटे से कमरे से शुरू हुए इस सहकारी बैंक ने 35 सालों में छह राज्यों में अपनी 137 शाखाएं खोलीं। वर्तमान में यह बैंक महाराष्ट्र, दिल्ली,कर्नाटक, गोवा, गुजरात, आंध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश में अनुसूचित सहकारी बैंक के रूप में काम कर रहा है। इसके सदस्यों की संख्या 51 हजार से अधिक है। बैंक ने वर्ष 2018 में 100.90 करोड़ का और 2019 में 99.69 करोड़ का शुद्ध मुनाफा कमाया था।
अब सवाल यह है कि जो बैंक इतने सारे राज्यों में इतनी बड़ी सदस्य संख्या के साथ काम कर रहा है उसके ग्राहकों के हितों के प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी है या नहीं। अंतत: बैंक के ग्राहक इस देश के नागरिक हैं और उन्होंने उस बैंक में अपनी पूंजी लगाई जिसे भारत के रिजर्व बैंक ने कारोबार की अनुमति प्रदान की। ऐसे में वित्त मंत्री पल्ला झाड़ मुद्रा में ऐसा कैसे कह सकती हैं कि इस मामले का सरकार से कोई लेना देना नहीं है। यह रिजर्व बैंक का मामला है वो जाने।
क्या रिजर्व बैंक इस देश का नहीं है? जब रिजर्व बैंक से पैसा झटकना हो तो सरकार को सारे रास्ते नजर आ जाते हैं, लेकिन जब लोगों के हितों के संरक्षण की बात हो तो सरकार हाथ खड़े कर रिजर्व बैंक को खुद से अलग बताने लगती है। माना कि रिजर्व बैंक अपने आप में बैंकों की एक स्वतंत्र नियामक इकाई है। लेकिन उसकी हालत सरकार ने क्या कर रखी है, यह बात क्या किसी से छिपी है?
और फिर भी यदि रिजर्व बैंक के अधिकारों और भूमिका के बारे में किसी को जानना हो तो पंजाब नैशनल बैंक घोटाले के बाद तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल का वह बयान याद करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था- ‘’हर बार घोटाले के बाद यह कहने का चलन हो जाता है कि रिजर्व बैंक को इसे पकड़ना चाहिए था। कोई भी बैंकिंग नियामक सारे घोटाले को पकड़ या रोक नहीं सकता है।‘’
कुल मिलाकर बैंक का घोटाला सरकार का मामला नहीं और सारे घोटाले पकड़ना आरबीआई के बस में नहीं, तो फिर बैंकों के ग्राहक अपने साथ कोई अनहोनी होने पर आखिर जाएं तो कहां जाएं?