10 जून 2019 को मैंने इसी कॉलम में कांग्रेस के तत्कालीन इस्तीफाधीन अध्यक्ष राहुल गांधी के केरल में अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के दौरे को लेकर कुछ बातें लिखी थीं जो आज प्रसंगवश फिर से याद आ गईं। राहुल गांधी ने उस समय उत्तर से दक्षिण शिफ्ट हो गए अपने नए संसदीय क्षेत्र का तीन दिन का दौरा किया था और उसी दौरान 9 जून को वायनाड के कलपेट्टा में एक रोड शो में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जम कर बरसे थे।
पहले यह जान लीजिए कि उस समय राहुल गांधी ने क्या कहा था। वे बोले थे- ‘’राष्ट्रीय स्तर पर हमारा मुकाबला जहर से है। नरेंद्र मोदी समाज में जहर घोल रहे हैं, हम उनकी विभाजनकारी नीति के खिलाफ लड़ते रहेंगे। मैं कठोर शब्द बोल रहा हूं, लेकिन मोदी इस देश को बांटने के लिए क्रोध और घृणा का इस्तेमाल कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी प्यार, भाईचारे और सच का नाम है, जबकि नरेंद्र मोदी झूठ और नफरत के नाम पर राज करते हैं। कांग्रेस भाजपा के इस झूठ के खिलाफ लगातार लड़ती रहेगी।‘’
मैंने राहुल गांधी के इस बयान पर लिखा था–‘’मुझे समझ नहीं आ रहा कि आखिर राहुल गांधी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर कौनसी राजनीतिक उपलब्धि हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव अभी अभी खत्म हुआ है। उसमें राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने मोदी के खिलाफ अब तक का सबसे आक्रामक या यूं कहें कि तेजाबी रुख अपनाया था। लेकिन उसका नतीजा क्या निकला? राहुल समझते रहे कि वे मोदी को गाली देकर अपने वोट पुख्ता कर रहे हैं जबकि असलियत में उनके ऐसे हर शब्द से कांग्रेस के लिए गड्ढे बन रहे थे।
चुनाव से पहले या चुनाव के दौरान भले ही यह बात समझ में न आई हो या दिखाई न दी हो, लेकिन चुनाव बाद के आकलन में तो यह साफ दिख रहा है कि खुद को दी जाने वाली गालियों को मोदी ने और अधिक छाती से चिपकाकर वोट बटोर लिए। तो फिर आखिर राहुल क्यों वैसी ही भाषा का चुनाव बाद भी इस्तेमाल करने को अपनी ‘सफल रणनीति’ मान रहे हैं।
मुझे लगता है कि चाहे राहुल हों या ममता बैनर्जी या कोई और… यदि विपक्ष के नेताओं को भाजपा और उससे भी बढ़कर मोदी का मुकाबला करना है तो यह सीखना पड़ेगा कि लोगों के बीच आपकी भाषा क्या और कैसी हो… राजनीति में बहुत सारे फैसले इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि आप कब, कहां, क्या और कैसे बोलते हैं…’’
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ऐसा लगता है कि कांग्रेस के कुछ विचारशील नेता अब इस बात को बहुत शिद्दत से महसूस कर रहे हैं। शायद यही कारण है कि पार्टी के समझदार नेताओं में शुमार किए जाने वाले जयराम रमेश ने हाल ही में कुछ ऐसी ही बात कही है। दिल्ली में राजनीतिक विश्लेषक कपिल सतीश कोमीरेड्डी की किताब ‘मालेवॉलेंट रिपब्लिक : ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ द न्यू इंडिया’ के विमोचन के दौरान रमेश बोले- ‘’प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली में हमेशा नकारात्मक बात देखना, या फिर उनके द्वारा किए गए काम को कोई तवज्जो नहीं देना और सिर्फ उनकी इमेज पर निशाना साधने से कोई फायदा नहीं होने वाला। विपक्ष को यह बात समझनी होगी।’’
जयराम रमेश ने 2014 से 2019 के बीच मोदी सरकार द्वारा लागू की गई योजनाओं, खासतौर से उज्ज्वला योजना का जिक्र करते हुए कहा कि इस योजना ने लाखों लोगों को फायदा पहुंचाया। यही कारण है कि लोगों ने उनपर विश्वास जताया, हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए।
कांग्रेस नेता ने कहा कि नरेंद्र मोदी उस भाषा में बात करते हैं, जो भाषा लोग आसानी से समझते हैं। हमें ये भी मानना होगा कि जो काम लंबे समय से नहीं हुआ, वो उनके पहले कार्यकाल में हुआ। यही कारण है कि उनके काम को स्वीकार किए बिना आप उनका मुकाबला नहीं कर सकते। सिर्फ उनकी बुराई करने से कोई फायदा नहीं होने वाला है।
चुनाव के दौरान विपक्ष द्वारा जनमानस का सही आकलन न कर पाने की ओर इशारा करते हुए रमेश ने कहा- ‘’विपक्ष ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान किसानों की समस्या की बात की। लोगों ने भी माना कि किसानों की समस्या है, लेकिन करोड़ों की संख्या में लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि इस समस्या का कारण नरेंद्र मोदी हैं। लोगों के इसी मानस का नतीजा हमें चुनाव में देखने को मिला।‘’
बात जयराम रमेश तक ही सीमित नहीं रही। कांग्रेस के कानूनी अभिभावकों में से एक अभिषेक मनु सिंघवी ने भी रमेश की बातों का समर्थन करते हुए ट्वीट किया- ‘’मोदी की नकारात्मक छवि पेश करने या हमेशा उन्हें शैतान बताने से कोई फायदा नहीं होगा। वह देश के प्रधानमंत्री हैं और (हमारे) ऐसा करने से उन्हें फायदा ही होता है। कोई भी काम अच्छा, बुरा या औसत दर्जे का हो सकता है लेकिन उसका मूल्यांकन मुद्दे पर आधारित होना चाहिए न कि व्यक्ति पर। निश्चित रूप से उज्ज्वला योजना सरकार की सराहनीय योजनाओं में से एक है।‘’
हाल के दिनों में यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस के नेता इस तरह का आत्मनिरीक्षण या आत्मलोचन करते नजर आए हों। इससे पहले अनुच्छेद 370 को लेकर भी कांग्रेस में इसी तरह की अलग-अलग राय देखने को मिली थी। एक तरफ गुलाम नबी आजाद जैसे नेता इसे हटाने का जमकर विरोध कर रहे थे और कांग्रेस संसद में सरकार के इस कदम के खिलाफ खड़ी थी, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया, जनार्दन द्विवेदी, अनिल शास्त्री, मिलिंद देवड़ा, भूपिंदर हुड्डा, दीपेंदर हुड्डा सहित अनेक नेता 370 को हटाए जाने के पक्ष में नजर आए थे। राज्यसभा में तो कांग्रेस के चीफ व्हिप भुवनेश्वर कलीता ने इस मुद्दे पर सदन से इस्तीफा ही दे दिया था।
इसका मतलब यह है कि कांग्रेस में न सिर्फ अंदरूनी कार्यशैली को लेकर मानस बदल रहा है, बल्कि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की व्यक्तिगत एवं कार्यशैलीगत आलोचना को लेकर भी अलग-अलग राय नजर आ रही है। और मेरा मानना है कि इसी बीच आए पी. चिदंबरम के मामले ने पार्टी को और उलझा दिया है। हो सकता है इस मुद्दे पर भी पार्टी में लोगों की अलग-अलग राय जल्द ही सतह पर आ जाए।