मप्र उपचुनाव : मेहगांव में बीजेपी से ज्‍यादा कांग्रेस में क्‍लेश

2
1691

मेहगांव उपचुनाव

डॉ. अजय खेमरिया

पूर्व मंत्री राकेश चौधरी को लेकर मप्र कांग्रेस में जो कलह मची है उससे बेफिक्र होकर चौधरी साहब मेहगांव की चुनावी वीथिकाओं में घूम रहे हैं। उनकी लग्जरी गाड़ी पर केवल डन्डा लगा है लेकिन झंडा गायब है, यानि वे चुनाव लड़ रहे हैं और यही इस सीट का सबसे बड़ा पेंच बन गया है।

मेहगांव की इस सीट पर क्लेश बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस में मचा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ चाहते है कि राकेश चौधरी को कांग्रेस की टिकट दी जाए लेकिन दिग्विजयसिंह और उनके समर्थक किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देना चाहते। भिंड की स्थानीय राजनीति वैसे भी ठाकुर बनाम ब्राह्मण के ट्रेंड पर चलती रही है।

डॉ. गोविन्द सिंह भिंड में ठाकुर पॉलिटिक्स का आइकॉन हैं तो किसी दौर में चौधरी राकेश और उनके पिता ब्राह्मण राजनीति का चेहरा हुआ करते थे। 2013 में ऐन चुनाव से पहले राकेश चौधरी ने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा शुरू होते ही सदन में बीजेपी का दामन थाम लिया था। उन्‍होंने पूर्व सीएम दिग्विजयसिंह और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह पर न केवल नीतिगत बल्कि निजी तौर पर भी बेहद गंभीर आरोप लगाए थे।

सियासत में आरोपों की महत्ता नहीं होती, लेकिन राकेश चौधरी ने जिस तरह के पारिवारिक आरोप सार्वजनिक रूप से लगाए थे उनकी कसक अजय सिंह अभी तक भूले नहीं हैं। यही वजह है कि जब चौधरी को टिकट देने का सवाल आया तो अजय सिंह ने पार्टी छोड़ने तक की धमकी दे दी। दिग्विजयसिंह की पूरी लॉबी इस मुद्दे पर अजय सिंह के साथ है।

भिंड के कद्दावर नेता डॉ. गोविन्द सिंह भी नहीं चाहते हैं कि राकेश चौधरी को फिर से टिकट दी जाए। असल में मेहगांव से गोविन्द सिंह अपने भांजे राहुल सिंह भदौरिया को टिकट दिलाना चाहते है, लेकिन कमलनाथ नहीं चाहते कि सिंधिया की तरह दिग्विजय के गुट को भी यहां खड़ा होने दिया जाए। जाहिर है यहां लड़ाई कांग्रेस में ज्यादा घनी है।

इस बीच राकेश चौधरी अपना प्रचार शुरू कर चुके हैं। चूंकि 2013 में वह अपने भाई मुकेश को यहां से बीजेपी के टिकट पर जिता चुके हैं, इसलिए उनके लिए यह क्षेत्र आसान लग रहा है। यहां ठाकुरों के बाद सबसे बड़ी संख्या ब्राह्मणों की है। ओबीसी में लोधी, बघेल, गुर्जर, कुशवाहा चार बड़ी संख्या वाली जातियां हैं।

1993 में बसपा के डॉ. नरेश गुर्जर और 2003 में निर्दलीय मुन्ना सिंह नरवरिया (लोधी) यहां से एमएलए रह चुके हैं। एक ट्रेंड यह भी है कि ब्राह्मण उम्मीदवार को लोधी और गुर्जर यहां वोट नहीं करते हैं। यही कारण है कि इस सीट पर ब्राह्मण, लोधी, ठाकुर, गुर्जर, बघेल जातियों के कैंडिडेट हर चुनाव में खड़े होते हैं। यहां दलितों में सर्वाधिक वोटर जाटव बिरादरी  के हैं। मुस्लिम की संख्या भी कस्बाई क्षेत्रों में मौजूद है।

कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आये ओपीएस भदौरिया निजी रूप से साधारण और मिलनसार छवि के नेता हैं 2013 में वह नजदीकी मुकाबले में मुकेश चौधरी से हार गए थे। तब कहा गया था कि ओपीएस को डॉ. गोविन्द सिंह ने निपटाया था। लहार से सटे भरौली कस्बे में कछवाहा वोटरों ने एक मुश्त मुकेश को वोट कर दिया था जो निर्णायक साबित हुआ।

इन वोटरों पर डॉ. गोविंद सिंह का प्रभाव है, वे उनके सजातीय भी हैं। भिंड में सियासी जानकारों का दावा है कि ओपीएस की सिंधिया निष्ठा और अपने भांजे राहुल भदौरिया के भविष्य को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया गया था। बीजेपी में इस बार टिकट को लेकर कोई दावेदारी इसलिए नहीं है क्योंकि टिकट ओपीएस को मिलनी ही है।

वैसे भी पिछले चुनाव में बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने ओपीएस का साथ दिया था। अब बीजेपी के राकेश शुक्ला के सामने ओपीएस के साथ आने के अलावा विकल्प नहीं है, क्योंकि उनकी सियासत के लिए बड़ा खतरा चौधरी परिवार ही है। और यह तय हो गया है कि कांग्रेस या अन्य बैनर से चौधरी लड़ ही रहे हैं।

सूत्र बताते हैं कि दिल्ली से ऐन वक्त पर चौधरी की टिकट फाइनल कराई जाएगी, अगर ऐसा नहीं होता तब वह बसपा से मैदान में होंगे। अगर उन्हें टिकट मिली तो डॉ. गोविंद सिंह कैसे कांग्रेस की नैया पार लगायेंगे? अगर उनके भांजे को टिकट मिली तब चौधरी की ताकत ठाकुर वोटरों के विभाजन से स्वत: बढ़ जाएगी। ऐसी परिस्थिति में चौधरी का पेंच कांग्रेस के लिए बहुत गहरा फंस चुका है।

कांग्रेस के पास जयश्री राम बघेल, पूर्व मंत्री जगदीश देवड़ा के पीए रहे राजेन्द्र गुर्जर के विकल्प भी हैं। बीजेपी के दावेदार राकेश शुक्ला, कीर्ति सिंह चौहान, केपीएस भदौरिया, ममता भदौरिया फिलहाल तो ओपीएस के साथ नजर आ रहे हैं। चूंकि ओपीएस किसी के लिए प्रतिक्रियावादी नहीं हैं, इसलिए संभव है बीजेपी के मैदानी कार्यकर्ताओं के साथ उनका समन्वय अन्य सीटों की तुलना में जल्द स्थापित हो जाये।

सिंधिया-शिवराज फैक्टर के साथ यहां उमा भारती भी एक परिणामोन्मुखी चेहरा है। क्योंकि यहां बीस हजार से ज्यादा लोधी वोटर हैं। मेहगांव में ब्राह्मण और ठाकुर के अलावा लोधी, गुर्जर, बघेल, कुशवाहा जातियों का महत्व भी समानांतर है। इसलिए इनका रणनीतिक युग्म ही चुनावी समीकरण को आकार देता रहा है।

1990 में हरिसिंह नरवरिया और 2003 में मुन्ना सिंह नरवरिया लोधी जाति से एमएलए रहे हैं। लोधी जाति का पहला विधायक रामध्वनि सिंह के रूप में 1957 में इसी सीट से निर्वाचित हुआ था। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कोई भी जीतने वाला विधायक कभी 35 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं ला पाता है, क्योंकि मुकाबला बहुकोणीय रहता है।

2018 में पहली बार ओपीएस 61566 वोट लेकर आये थे। इतने वोट यहाँ कभी किसी को प्राप्त नहीं हुए हैं। 2013 में मुकेश चौधरी 29733 वोट लेकर जीते थे। इसी तरह 2008 में राकेश शुक्ला 33634, मुन्ना सिंह 2003 में 24277, राकेश शुक्ला 1998 में 31360, डॉ. नरेश गुर्जर 1993 में 21317 और 1990 में हरिसिंह नरवरिया 15525 वोट हासिल कर एमएलए बने थे। इस बार भी यहां चार बड़े कैंडिडेट तो मैदान में होंगे ही। देखना होगा मेहगांव में किसकी मेहनत रंग लाती है।

2 COMMENTS

  1. बरिष्ठ पत्रकार तथा विचारक डॉ अजय खेमरिया जी ने चंबल क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों का सटीक आकलन किया है, बधाई ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here