यदि आपने फैसला कर लिया है तो अब परीक्षा आपकी है

पिछले कई दिनों से हम इस कॉलम में देश की शिक्षा प्रणाली और उससे जुड़े विभिन्‍न विषयों पर लगातार बात कर रहे हैं। दो दिन पहले हमने स्‍कूलों में परीक्षाओं को लेकर केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक में हुई चर्चा का जिक्र किया था। उस बैठक में यह राय सामने आई थी कि स्‍कूली बच्‍चों को आठवीं कक्षा तक फेल न करने की जो नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) बनी है उसके बारे में राज्‍य सरकारें अपने स्‍तर पर ही फैसला करें।

हाल ही में मध्‍यप्रदेश के जिला प्रशासनिक अधिकारियों के साथ दो दिन चले विचार मंथन के बाद मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की मीडिया से चर्चा के हवाले से खबर छपी है कि राज्‍य में आठवीं कक्षा तक परीक्षा न लिए जाने और किसी भी छात्र को आठवीं तक बिना रोके अगली कक्षा में प्रवेश दे देने की नीति समाप्‍त की जाएगी। अगर वास्‍तव में राज्‍य सरकार ने यह फैसला कर लिया है तो यह प्रदेश के शिक्षा परिदृश्‍य पर दूरगामी परिणाम डालने वाला होगा। सरकार के फैसले पर मैंने संशय इसलिए व्‍यक्‍त किया क्‍योंकि जिस दिन एक अखबार ने मुख्‍यमंत्री के हवाले से ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ खत्‍म करने की बात प्रकाशित की, उसी दिन स्‍कूली शिक्षा मंत्री के हवाले से एक दूसरे अखबार ने छापा कि न तो इस संबंध में कोई तैयारी है और न ही ऐसा कोई प्रस्‍ताव है। शिक्षा का अधिकार कानून में केंद्र सरकार द्वारा संशोधन किए जाने के बाद ही इस बारे में कोई फैसला किया जाएगा।

इन हालात में यह सवाल उठना ला‍जमी है कि शिक्षा जगत में चल रही गतिविधियों से हमारे नीति नियंता वाकिफ भी हैं या नहीं। यदि मीडिया ने स्‍कूल शिक्षा मंत्री के बयान को ठीक ठीक समझते हुए, उसी भावना के अनुरूप छापा है, तो यह चिंता का विषय है। क्‍या विभाग में मंत्री बदल जाने के बाद सरकार का स्‍टैण्‍ड भी बदल जाता है?  स्‍मृति ईरानी जब मानव संसाधन विकास मंत्री थीं, तब इसी तरह की एक बैठक में मध्‍यप्रदेश के तत्‍कालीन स्‍कूल शिक्षा मंत्री पारस जैन ने बड़े जोर शोर से यह मामला उठाया था। उन्‍होंने परीक्षा प्रणाली पर मध्‍यप्रदेश का रुख साफ करते हुए इस बात की पुरजोर वकालत की थी कि बगैर परीक्षा के आठवीं कक्षा तक छात्रों को अगली कक्षा में पदोन्‍नत करने की नीति पर पुनर्विचार होना चाहिए। इस नीति के कारण शिक्षा के स्‍तर और उसकी गुणवत्‍ता में बहुत गिरावट आई है। क्‍या विजय शाह को पारस जैन का यह स्‍टैण्‍ड किसी ने नहीं बताया?

देखा जाए तो मध्‍यप्रदेश जैसे राज्‍य में, जहां बच्‍चों की पृष्‍ठभूमि वैसे ही कमजोर है, वहां गुणवत्‍ता विहीन शिक्षा, आगे चलकर बच्‍चों के लिए बहुत घातक सिद्ध होगी। पहली नजर में यह मसला भले ही मानवीय और बच्‍चों को परीक्षा के तनाव से मुक्‍त रखने जैसी लोकप्रिय धारणाओं के चलते अच्‍छा लगे, लेकिन आगे चलकर रोजगार पाने या अन्‍य उद्यम स्‍थापित करने की प्रतिस्‍पर्धा में बच्‍चे काफी पिछड़ेंगे, क्‍योंकि पढ़ाई की कमजोर बुनियाद उनमें वह आत्‍मविश्‍वास पैदा ही नहीं होने देगी जो आज के इस घोर प्रतिस्‍पर्धात्‍मक समय में अनिवार्य है। शिक्षा जगत से जुड़ी अनेक संस्‍थाओं की रिपोर्टें कहती हैं कि आठवीं तक के बच्‍चे भी न तो ठीक से बारहखड़ी पढ़ पाते हैं, न ही जोड़ और घटाव के मामूली सवाल हल कर पाते हैं।

आठवीं तक बच्‍चे को बिना परीक्षा के आगे बढ़ाने का एक अर्थ यह हुआ कि, एक तरह से उसकी असली पढ़ाई नौंवी कक्षा यानी करीब 13 वर्ष की उम्र से शुरू हो रही है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं, क्‍योंकि जब शिक्षक को यह मालूम है कि बच्‍चे को बिना परीक्षा के, आठवीं तक धक्‍का देकर आगे बढ़ाते ही जाना है,तो वह उसे पढ़ाने में आखिर क्‍यों रुचि लेगा?  इस नीति का दुष्‍परिणाम यह हुआ है कि प्राइमरी से लेकर अपर प्राइमरी स्‍तर तक यह माहौल बनने लगा कि न बच्‍चों को शिक्षा की गुणवत्‍ता की चिंता है और न ही शिक्षकों को।

हां, जैसीकि शिक्षा सलाहकार बोर्ड की सिफारिश है, परीक्षा या आकलन की कोई प्रक्रिया या पद्धति अवश्‍य होनी चाहिए जो बच्‍चों में शिक्षा की गुणवत्‍ता को सुनिश्चित करे। इसमें कोई दो राय नहीं कि परीक्षा बच्‍चों के लिए हौवा नहीं बननी चाहिए। लेकिन परीक्षा को दोष देने से पहले हमें यह भी देखना होगा कि वास्‍तव में परीक्षा ही बच्‍चों के लिए हौवा बन रही है या फिर बच्‍चों पर अधिकतम अंक हासिल करने/करवाने का समाज और अभिभावकों की महत्‍वाकांक्षा का दबाव। परीक्षाएं तो पहले भी होती रही हैं, साल में दो बार और बाद में तो हर तिमाही में, लेकिन तब तो ऐसा माहौल नहीं बना। यानी दोष परीक्षा की व्‍यवस्‍था में नहीं, बल्कि शिक्षा की पद्धति और समाज के रवैये में है। इसलिए यदि एक बार फिर, पुरानी पद्धति के मुताबिक, परीक्षा लेकर ही छात्रों को अगली कक्षा में पदोन्‍नत करने का फैसला होता है, तो यह बात सुनिश्चित की जानी चाहिए कि शिक्षकों और अभिभावकों की भी पर्याप्‍त काउंसलिंग हो। ताकि जो दबाव बच्‍चों पर उच्‍च कक्षाओं में अधिकतम अंक लाने के लिए बनाया जा रहा है, वह दबाव छोटी कक्षाओं में भी न बनाया जाने लगे। यदि ऐसा हुआ तो पढ़ाई के तनाव के चलते बच्‍चों की आत्‍महत्‍याओं का ग्राफ और तेजी से बढ़ेगा, जिसे कभी स्‍वीकार नहीं किया जा सकता।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here