लोकतंत्र की यही खूबी और खूबसूरती है कि उसे जितना दबाने की कोशिश करेंगे, वह तमाम बंदिशों के बावजूद कहीं न कहीं से अपना सिर जरूर उठा लेगा। जितना उसका मुंह बंद करने के जतन होंगे, वह अभिव्यक्ति के दूसरे तरीके निकाल कर अपनी बात कह लेगा। खुद को जिंदा और जीवट बनाए रखने की यही फितरत लोकतंत्र को बाकी सभी समाज/शासन व्यवस्थाओं से अलग पहचान दिलाती है।
ठीक एक सप्ताह पहले मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने, पचमढ़ी में 14-15 फरवरी को हुए पार्टी विधायकों के प्रशिक्षण वर्ग में विधायकों को हिदायत दी थी कि वे विधानसभा में अपनी ही सरकार के खिलाफ बोलने या उसकी आलोचना करने से बचें। यानी सीधे-सीधे विधायकों को चमका दिया गया था कि आने वाले बजट सत्र में अपना मुंह बंद रखें।
सरकार और संगठन की इस हिदायत के पीछे वजह यह थी कि पिछले लंबे समय से विपक्ष तो छोडि़ये, खुद सत्तारूढ़ दल के ही विधायक अपनी सरकार की खिंचाई करने में लगे हैं। अपने ही विधायकों द्वारा पूछे गए सवालों से सरकार कई बार ऐसी घिरी कि उसे जवाब देना भारी पड़ गया।
सोचा गया था कि विधायकों को मुंह बंद रखने का फरमान सुनाकर भविष्य में सदन में होने वाली ऐसी फजीहतों से बचा जा सकेगा। लेकिन राजनीति की फितरत भी कुछ अलग ही होती है। पार्टी या संगठन का सदस्य होने के बावजूद विधायक जनप्रतिनिधि भी होता है। उसे भी पता है कि कहां मुंह खोलना है और कहां बंद रखना है। वह जानता है कि यदि उसने अपने मुंह पर पट्टी बांध ली तो हो सकता है जनता उसके कॅरियर की ही पोटली बांधकर उसे थमा दे।
गुरुवार को जब विधानसभा का बजट सत्र कायदे से शुरू हुआ तो वहां अलग ही नजारा देखने को मिला। एक तो तमाम हिदायतों को दरकिनार करते हुए सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने अपनी बात रखी। दूसरे, एक मामले ने तो राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था की ही पोल खोलकर रख दी। हुआ यूं कि भिंड से भारतीय जनता पार्टी के विधायक नरेंद्रसिंह कुशवाह ने प्रश्नकाल के दौरान अपने जिले में 16 साल पहले स्कूलों के लिए हुई कंप्यूटर की खरीद में घोटाले का मामला उठाया।
सामान्य प्रशासन राज्यमंत्री लालसिंह आर्य ने जवाब में कहा कि मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट होता हुआ जांच के लिए आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के पास लंबित है। लेकिन सवाल करने वाले सदस्य कुशवाह ने मंत्री की बात पर एक तरह से अदालती जिरह करते हुए मंत्री और सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया।
कुशवाह ने कहा कि यह मामला 16 साल से लटका पड़ा है। ईओडब्ल्यू सात साल से जांच कर रहा है, आज तक जांच पूरी होकर रिपोर्ट सरकार के पास क्यों नहीं पहुंची?
जब मंत्री ने जवाब दिया कि जांच रिपोर्ट आते ही दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी, तो कुशवाह ने मंत्री पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए सनसनीखेज खुलासा किया कि ईओडब्ल्यू की जांच रिपोर्ट उनके पास मौजूद है। उसमें तत्कालीन कलेक्टर और पूर्व सांसद को दोषी ठहराया गया है। कुशवाह का आरोप था कि एक करोड़ 20 लाख रुपए के इस घोटाले में इन दोनों को बचाया जा रहा है।
सत्तारूढ़ दल के विधायक ने साफ साफ यह जानना चाहा कि पूर्व सांसद और संबंधित आईएएस अधिकारी पर कार्रवाई कब तक होगी? उन्होंने मंत्री को एक तरह से चुनौती देते हुए कहा कि जांच रिपोर्ट आप तक भले ही न पहुंची हो पर मेरे पास है, मैं आपको दे देता हूं। आप कार्रवाई तो करें…
इसके बाद जैसा कि आमतौर पर होता है, बाकी प्रश्नकर्ताओं को समय देने का हवाला देते हुए सदन की कार्यवाही आगे बढ़ गई। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर सरकार के कामकाज को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। मूल प्रश्न यह है कि सदन में विपक्ष ही नहीं, खुद सत्तारूढ़ दल के सदस्य भी बार बार यह आरोप क्यों लगा रहे हैं कि मंत्री या तो झूठ (संसदीय भाषा में इसे असत्य पढ़ा जाए) बोल रहे हैं या सदन को गुमराह कर रहे हैं।
मंत्रियों के बयानों या सरकार की ओर से विधानसभा में दी जाने वाली जानकारियों के प्रति सदस्यों का लगातार बढ़ता यह अविश्वास चिंताजनक है। हो सकता है कि कई मामलों में सवाल उठाने वाले सदस्यों के पास पर्याप्त या तथ्यात्मक जानकारी न हो, लेकिन उनका बार-बार यह कहना कि सरकार सदन को गुमराह कर रही है, विधानसभा की कार्यवाही की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है। आसंदी ने हमेशा ऐसे मामलों में सदस्यों को सदन की नियम प्रक्रिया का पालन करने की सलाह दी है, लेकिन सदस्य करीब करीब रोज ही जानकारी की प्रामाणिकता को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।
गुरुवार को भिंड के भाजपा विधायक ने जो मामला उठाया, वह यह भी बताता है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच की गति (अथवा दुर्गति) क्या है? सवा करोड़ रुपए के घोटाले की जांच सात साल से चल रही है। और पता नहीं आगे कितने साल तक चलेगी। यदि छोटे छोटे मामलों में जांच की यह हालत है, तो कल्पना की जा सकती है कि भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में जांच का हश्र क्या होता होगा।
और जब जांच ही सालों साल चलनी है तो कार्रवाई की बात तो करना ही बेकार है…