हाल ही में मैंने आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के मध्यप्रदेश विधानसभा में हुए प्रवचन का जिक्र करते हुए सवाल उठाया था कि अपनी गलतियों पर लीपापोती करने के बजाय, उनके लिए जनता के सामने कान पकड़ने का साहस जनप्रतिनिधियों में कब आएगा? और 3 मार्च को विधानसभा में सवाल-जवाब के दौरान जो हुआ, उससे साबित हो गया कि वह दिन शायद इस मनुष्य जीवन में देखना संभव नहीं होगा।
हुआ यूं कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और इन दिनों भाजपा विधायकों के ‘अदृश्य मार्गदर्शक मंडल’ के अध्यक्ष बाबूलाल गौर ने राज्य में कुपोषण को लेकर सवाल पूछा। उन्होंने महिला एवं बाल विकास मंत्री से जानना चाहा कि श्योपुर जिले में वर्ष 2015 एवं 2016 में कुपोषण से किस किस माह में कितनी कितनी मौते हुई हैं।
जब पूरे प्रदेश में और खासतौर से श्योपुर जिले में कुपोषण से होने वाली मौतों का हल्ला मचा हो, अखबारों के पन्ने ऐसी खबरों से रंगे पड़े हों और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट इस मामले में सरकार से जवाब-तलब कर रहा हो, वैसी स्थिति में क्या आप बता सकते हैं कि सरकार का जवाब क्या रहा होगा?
चलिए ज्यादा उलझिए मत… मैं ही आपको चौंकाते हुए यह मुश्किल हल कर देता हूं… महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने जवाब दिया- ‘’स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार श्योपुर जिले में 2015 और 2016 में कुपोषण से मृत्यु की जानकारी निरंक (यहां इस तकनीकी शब्दा का अर्थ आप शून्य समझें) है।‘’ यानी सरकार की ओर से एक पूर्व मुख्यमंत्री को बताया गया कि प्रदेश में पिछले दो सालों में कुपोषण से एक भी मौत नहीं हुई है।
हो सकता है यह जवाब सुनकर आप में से कई लोग अपना सिर पीट लें। लेकिन सरकार का तो यही ऐलान है कि दो सालों में एक भी बच्चा कुपोषण से नहीं मरा। अब आप ही बताइए, जब विधानसभा तक में सरकारें इस तरह वास्तविकता से आंखें मूंदने लगें तो जनता बिचारी क्या करे? मैं यह अतिवादी बयान तो नहीं देता कि सरकार या महिला बाल विकास विभाग बच्चों को मार रहा है, लेकिन सरकार खुद सोचे कि आखिर इस तरह सचाई से मुंह मोड़ लेने वाला बयान क्या उसे शोभा देता है? ऐसे बयान से उसकी कौनसी बचत हो जाएगी?
विधानसभा में मंत्रियों को ऐसे जवाब विभाग के अफसर ही लिखकर देते हैं। और अफसर इस तरह का झूठ इसलिए परोसते हैं क्योंकि यह झूठ उनकी थाली में परोसे जाने वाले 56 पकवानों को सुरक्षित करता है। यदि वे कह देंगे कि हां, कुपोषण से बच्चे मरे हैं, तो फिर उस करोड़ों रुपए के बजट पर ही सवाल खड़ा हो जाएगा जो बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए सरकार खर्च करती है। और यदि वहां सवाल खड़ा हुआ, तो जाहिर है कई लोग ‘हलके’ हो जाएंगे। ऐसे में सही जवाब देकर अपना ‘वजन’ कम करना कौन चाहेगा?
विभाग की मंत्री के जवाब पर गौर साहब का भड़कना स्वाभाविक था। उन्होंने कहा भी कि, यह कैसे संभव है कि एक भी बच्चे की मौत कुपोषण से नहीं हुई। उन्होंने कई सारी रिपोर्ट सदन में पढ़ते हुए पूछा कि क्या ये खबरें गलत हैं? गौर ने मंत्री से मामले की जांच कराने और जांच दल में खुद को भी शामिल करने की मांग की जिसे मंत्री ने मंजूर कर लिया। यानी अब प्रदेश को इंतजार करना चाहिए कुपोषण पर आने वाली एक और जांच रिपोर्ट का।
सदन में मंत्री ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया। उन्होंने कहा कि कुपोषण को लेकर स्वास्थ्य विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग के मापदंड अलग-अलग हैं। मंत्री का यह बयान प्रदेश में कुपोषण की समस्या की दिशा मोड़ने वाला है। इस बयान के बाद सबसे बड़ा सवाल तो यही उठता है कि सरकार कुपोषण से किस विभाग के मापदंडों को आधार मानकर निपट रही है? और यदि विभागों के मापदंड ही अलग-अलग हैं तो बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए आवंटित बजट किस मापदंड को देखकर दिया जा रहा है।
मंत्री का बयान दोनों विभागों को कुपोषण से होने वाली मौतों के मामले में, अपनी-अपनी खाल बचाने का पर्याप्त अवसर देता है। यानी जब महिला बाल विकास विभाग पर बात आए तो वह कह दे कि यह स्वास्थ्य विभाग का मापदंड है और स्वास्थ्य विभाग पर बात आए तो वे कह दें यह काम तो महिला बाल विकास विभाग का है। क्या सरकार ने कुपोषण की समस्या और कुपोषित बच्चों को फुटबॉल समझ लिया है?
बाबूलाल गौर के सवाल और अर्चना चिटनिस के जवाब ने कुपोषण की समस्या पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत पैदा कर दी है। अब सरकार या तो दोनों विभागों की राय लेकर एकजाई मापदंड तय करे। या फिर कुपोषण और उससे जुड़ी तमाम बातें किसी एक विभाग के हवाले करे। इसके लिए कोई एक अलग एजेंसी या मिशन भी बनाया जा सकता है। इस संदर्भ में चिटनिस का सदन में दिया गया यह सुझाव विचारणीय है कि इस समस्या से निपटने के लिए विधायकों की एक वर्कशॉप हो और उनसे भी सुझाव लिए जाएं।
कुपोषण प्रदेश के माथे पर लगा बहुत बड़ा कलंक है। ‘बीमारू’ के दायरे से निकलकर ‘सेहतमंद’ होने का दावा करते मध्यप्रदेश पर जब तक यह दाग लगा रहेगा, हमारी तरक्की का कोई मतलब नहीं है।
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