प्रसंग यूं है कि-
एक नवयुवती छज्जे पर बैठी है…
केश खुले हुए हैं और चेहरा बता रहा है कि वह उदास है, उसकी मुख मुद्रा देखकर लग रहा है, जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है।
अब इस दृश्य पर यदि विभिन्न कवियों से अगर कविता लिखने को कहा जाता तो वे इस पर कैसे लिखते, आइए जरा इसकी बानगी देखिए…
कबीर-
कबिरा देखि दुःख आपने कूदिंह छत से नार
तापे संकट ना कटे, खुले नरक का द्वार
तुलसीदास-
छत चढ़ नारी उदासी कोप व्रत धारी
कूद ना जा री दुखारी
सैन्य समेत अबहिन आवत होइहैं रघुरारी
रहीम-
रहिमन कभउँ न फांदिये छत ऊपर दीवार
हल छूटे जो जन गिरें फूटै और कपार
मैथिली शरण गुप्त-
अट्टालिका पर एक रमणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में, किसके नहीं है दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।
हरिवंश राय बच्चन-
किस उलझन से क्षुब्ध आज
निश्चय यह तुमने कर डाला
घर चौखट को छोड़ त्याग
चढ़ बैठीं तुम चौथा माला
अभी समय है, जीवन सुरभित
पान करो इस का बाला
ऐसे कूद के मरने पर तो
नहीं मिलेगी मधुशाला
श्याम नारायण पांडे-
ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड खंडिनी
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी
सिंहनी सी ठान के, आन बान शान से
मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से
तुम डगर डगर गिरो, तुम नगर नगर गिरो
तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।
गोपाल दास नीरज-
हो न उदास रूपसी, तू मुस्काती जा
मौत में भी जिन्दगी के कुछ फूल खिलाती जा
जाना तो हर एक को है, एक दिन जहान से
जाते जाते मेरा, एक गीत गुनगुनाती जा
राम कुमार वर्मा-
हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाट मत जोहो।
जानता हूँ इस जगत का
खो चुकी हो चाव अब तुम
और चढ़ के छत पे भरसक
खा चुकी हो ताव अब तुम
उसके उर के भार को समझो।
जीवन के उपहार को तुम ज़ाया ना खोहो,
हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाँट मत जोहो।
गुलजार-
वो बरसों पुरानी इमारत
शायद
आज कुछ गुफ्तगू करना चाहती थी
कई सदियों से उसकी छत से
कोई कूदा नहीं था
और आज
तंग हालात
परेशां
स्याह आँखों वाली
उस
लड़की ने
इमारत के सफ़े
जैसे खोल ही दिए
आज फिर कुछ बात होगी
सुना है इमारत खुश बहुत है…
काका हाथरसी-
गोरी बैठी छत पर, कूदन को तैयार
नीचे पक्का फर्श है, भली करे करतार
भली करे करतार, न दे दे कोई धक्का
ऊपर मोटी नार, नीचे पतरे कक्का
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढना
उधर कूदना मेरे ऊपर मत गिर पडना।
प्रसून जोशी-
जिंदगी को तोड़ कर
मरोड़ कर
गुल्लकों को फोड़ कर
क्या हुआ जो जा रही हो
सोहबतों को छोड़ कर
हनी सिंह-
कूद जा डार्लिंग क्या रखा है
जिंजर चाय बनाने में
यो यो की तो सीडी बज री
डिस्को में हरयाणे में
रोना धोना बंद कर
तू कर ले डांस हनी के गाने में
रॉक एंड रोल करेंगे कुड़िये
फार्म हाउस के तहखाने में..
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इतने में वह युवती उठी और जैसे खुद से ही बुदबुदाते हुए बोली-
चलो बाल तो सूख गए, चल कर नाश्ता कर लेती हूं, ऑफिस को देर हो रही है….
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यह सामग्री हमें डॉ. प्रज्ञा थापक ने वाट्सएप पर भेजी है।