मैं इसी कॉलम में पहले भी कई बार लिख चुका हूं कि बढ़ते अपराधों के पीछे एक प्रमुख कारण है लोगों में कानून और सजा के प्रति डर का कम होना या लगभग खत्म-सा हो जाना। जब सजा का डर ही न हो तो कोई अपराध करने से क्यों परहेज करेगा। माना कि डरना अच्छी बात नहीं है, लेकिन कानून के मामले में स्थिति इसके ठीक उलट है। वहां डर के आगे जीत नहीं बल्कि डर के आगे सजा है…
अभी दो दिन पहले ही मैंने एक और बात का उल्लेख किया था कि लोगों में न सिर्फ कानून का डर खत्म होता जा रहा है बल्कि अब तो उससे भी आगे बढ़कर लोग अपने-अपने हिसाब से अपराधों की व्याख्या करते हुए, तर्क-कुतर्क के साथ उनकी हिमायत भी करने लगे हैं। जब समाज में अपराध या अपराधियों के ऐसे हिमायती पैदा हो जाएं तो फिर कोई भी कानून किसी का क्या बिगाड़ लेगा?
अब इस बात को खुद देश के गृह मंत्री राजनाथसिंह ने स्वीकार किया है। शनिवार को उन्होंने गुरुग्राम में स्टूडैंट पुलिस कैडर के कार्यक्रम में कहा कि कानून का डर कम होने के कारण अपराध बढ़ रहे हैं। हमें बचपन से ही बच्चों को कानून और संविधान के बारे में जागरूक बनाना होगा, उन्हें पुलिस की कार्यप्रणाली से अवगत कराना होगा।
दरअसल जिस समय देश के गृह मंत्री कानून का डर खत्म हो जाने की बात कह रहे थे शायद उसी समय मीडिया के दफ्तरों में राजस्थान के अलवर जिले में एक बार फिर गो-तस्करी के शक में एक व्यक्ति की पीट पीट कर हत्या कर दिए जाने की खबर लिखी जा रही थी। बताया गया कि घटना का शिकार हुआ अकबर नाम का व्यक्ति अपने साथी के साथ पशु खरीद कर ले जा रहा था।
अलवर में इससे पहले भी 2017 में पहलू खान नामक व्यक्ति की ऐसे ही भीड़ ने पीटकर हत्या कर दी थी। अब एक तरफ तो देश के गृह मंत्री का बयान है कि लोगों में कानून का डर खत्म होने के कारण अपराध बढ़ रहे हैं वहीं राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने इस संबंध में कुछ और ही स्टैंड लिया है। दोषियों पर कार्रवाई की बात कहने के साथ ही कटारिया ने यह भी बोल दिया कि मृत्यु दंड का कानून बना देने का यह मतलब नहीं है कि कोई मर्डर होगा ही नहीं।
केंद्र व राजस्थान में एक ही दल की सरकार है और यदि केंद्रीय गृह मंत्री व राजस्थान के गृह मंत्री के बयानों को प्रतिनिधि बयान माना जाए तो उनके कहे का यह निष्कर्ष क्यों नहीं निकाला जाए कि तमाम सारे कानून मौजूद होने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस सहित भारी भरकम तंत्र होने के बावजूद सरकारें अपराध रोकने के मामले में असहाय हैं।
एक लिहाज से हालात तो ऐसा ही कह रहे हैं। वैसे सरकारों और सरकारों के प्रतिनिधि के तौर पर मंत्रियों को उनके बयानों के लिए कठघरे में खड़ा किया जा सकता है, लेकिन उसके साथ क्या यह भी सच नहीं है कि खुद समाज ही कानून को ठेंगे पर रखने की शिक्षा दे रहा है, इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है…?
कुछ उदाहरण लीजिए… जब भी भ्रष्टाचार की बात होती है तो उसके प्रमाण में ट्रेन की बर्थ का आरक्षण पाने के लिए दी गई रिश्वत का जिक्र अकसर किया जाता है। कहा जाता है कि यह ऐसा मामला है जिससे जीवन में कोई भी व्यक्ति अवश्य गुजरा होगा। मनचाही ट्रेन में मनचाही तारीख को यात्रा करने के लिए बोगी में जगह पाने के लिहाज से कभी न कभी तो उसने रेल कर्मचारियों को घूस दी होगी…
ऐसा ही मामला हम रोज सड़कों पर भी देखते हैं, जहां कानून तोड़ने, ट्रैफिक नियमों का पालन न करने या उनके प्रति डर के भाव की गैरमौजूदगी आम बात है। खुद पुलिस अधिकारी मंजूर करते हैं कि ज्यादातर लोग ट्रैफिक नियमों को अवहेलना के योग्य ही मानकर चलते हैं। हम खुद ऐसे दृश्य किसी भी सड़क या चौराहे पर आए दिन देख सकते हैं जब व्यक्ति सरेआम ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाता नजर आता है।
आप तो बस किसी चौराहे के नजदीक थोड़ी देर खड़े़ हो जाएं और आने जाने वालों पर नजर रखें। आप यही पाएंगे कि जेब्रा लाइन का पालन कोई नहीं करता। पैदल रोड क्रॉस करने वालों को वाहनों के बीच से ही जैसे तैसे जगह बनाकर सड़क पार करनी होती है। उधर अपनी साइड का सिग्नल हरा होने से पहले ही लोग वाहन लेकर दौड़ पड़ते हैं, जबकि सिग्नल क्लियर होने में चार पांच सेकंड का समय बचा होता है। आगे निकल भागने की यह आपाधापी अकसर दुर्घटनाओं को न्योता देती है।
मुझे लगता है देश में जहां कानून का सबसे ज्यादा उल्लंघन होता है वह जगह सड़क ही है। यदि भारत में कानून की धज्जियां उड़ाए जाने की प्रामाणिक पुष्टि करनी हो तो आप कुछ न करें किसी भी शहर के चौराहे पर खड़े होकर वहां पांच मिनिट का वीडियो रिकार्ड कर लें। आपको पता लग जाएगा कि लोगों के मन में कानून के प्रति कितना डर है। और जब डर ही नहीं है तो कानून के प्रति सम्मान के भाव की बात तो आप भूल ही जाइए।
हम अकसर अपनी गौरवशाली परंपराओं, समृद्ध अतीत और सांस्कृतिक वैभव की बात करते हुए भारत के विश्वगुरू होने के जुमले उछालते रहते हैं। लेकिन जहां कानून कायदे के पालन जैसे सामान्य कर्तव्य का निर्वहन भी न हो पाता हो, वहां आप गुरु बनने की सोच भी कैसे सकते हैं। गुरु बनने से पहले जरूरी है हम उन देशों का चेला बनना सीखें जिन्होंने कानून और व्यवस्था का पूरा सम्मान करते हुए उसे एक नागरिक का प्रथम कर्तव्य माना है।
एक देश वो है जहां कोई सरकारी कर्मचारी यदि तय समय से चंद मिनिट पहले अपनी कुर्सी से उठ जाता है तो उस विभाग के कर्मचारी सार्वजनिक तौर पर पूरे देश से माफी मांगते हैं और एक हम हैं जो ट्रैफिक लाइट पर चंद सेकंड रुकने का भी धैर्य न रखते हुए, कानून तोड़ने की होड़ सी लगाते हुए उसमें अपनी शान समझते हैं।
हम सरकारों को तो अकसर दोष देते रहते हैं, लेकिन कभी कभार अपने गिरेबान में भी तो झांक कर देखें…