अरे! अपनी भगोनी के दूध की चिंता भी है या नहीं…

वैसे इस विषय पर मुझे कल ही लिखना था, लेकिन केंद्रीय पर्यावरण राज्‍य मंत्री अनिल माधव दवे के आकस्मिक निधन के कारण कल का कॉलम उनकी स्‍मृतियों को समर्पित हो गया। हालांकि राजनीतिक दृष्टि से कल की बात भी भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी थी और आज का मामला भी इसी पार्टी से वास्‍ता रखता है। फर्क यह है कि अनिल माधव दवे का जिक्र पार्टी और उसकी विचारधारा को लेकर पुरानी पीढ़ी के समर्पण के संबंध में हुआ था, वहीं आज का मामला राजनीति में आने वाली नई पौध के अंतर्द्वंद्व और कार्यशैली को लेकर पनप रही कसमसाहट और छटपटाहट से जुड़ा है।

दरअसल किस्‍सा यह है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल हाल ही में मध्‍यप्रदेश के दौरे पर आए। वे अलग-अलग जगहों पर जाकर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिले। इस मुलाकात का उद्देश्‍य मोटे तौर पर पार्टी की गतिविधियों के बारे में मैदानी फीडबैक लेना और यह जानना था कि भविष्‍य में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए और क्‍या-क्‍या किया जा सकता है।

लेकिन सागर में रामलाल के दौरे के दौरान जो हुआ वह पार्टी के अंदरूनी हालात को चौंकाने वाले अंदाज में उजागर करता है। हुआ यूं कि पहली बार विधायक बनीं पारुल साहू राष्‍ट्रीय संगठन मंत्री से मिलने पहुंचीं और कथित रूप से उन्‍होंने पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी और घमासान के कारण अगला चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। सार्वजनिक रूप से उनका बयान यह आया कि यह आत्‍मसम्‍मान की बात है और मैं अपने सम्‍मान से कोई समझौता नहीं कर सकती। हो सकता है पारुल के इस फैसले और स्‍थानीय नेताओं से विवाद के पीछे कोई और कारण भी हों, लेकिन जो चर्चा बाहर आई वो यही है कि उन्‍होंने अगला चुनाव न लड़ने की बात कही।

अब जरा यह जान लीजिए कि ये पारुल साहू क्‍या हैं। उनसे जुड़ा एक दिलचस्‍प उदाहरण मुझे याद आ रहा है। मध्‍यप्रदेश विधानसभा के पिछले बजट सत्र में 3 मार्च को उन्‍होंने प्रश्‍नकाल के दौरान मुख्‍यमंत्री से एक सवाल पूछा। यह सवाल सागर जिले के जैसीनगर विकासखंड में एक विधवा महिला के साथ एसडीएम द्वारा किए गए दुर्व्‍यवहार का था। पारुल साहू चाहती थीं कि संबंधित एसडीएम पर कार्रवाई हो और उसे निलंबित किया जाए।

सामान्‍य प्रशासन राज्‍य मंत्री लालसिंह आर्य ने मामले की जांच कराने का आश्‍वासन दिया। पारुल साहू कार्रवाई पर अड़ी रहीं तो मंत्री ने कहा कि उस अफसर को हटाकर जांच करा लेंगे। काफी कहासुनी के बाद भी जब मंत्री की ओर से ‘संतोषजनक’ जवाब नहीं आया तो पारुल ने मंत्री को एक नेक सलाह दे डाली।

उन्‍होंने कहा कि जिस विधवा महिला से एसडीएम ने दुव्‍यर्वहार किया था, अब वो दुनिया में नहीं है। लेकिन मरने के बाद भी उसे तभी न्‍याय मिल पाता यदि एसडीएम को निलंबित किया जाता। मंत्रीजी यदि आप उस अफसर का ट्रांसफर ही करना चाहते हैं तो ट्रांसफर करके उसे अपने विधानसभा क्षेत्र में ले जाइए। ताकि भविष्‍य में यदि वह फिर किसी महिला से अभद्र व्‍यवहार करे तो उसका जवाब आपको देना पड़े।

सागर का ही दूसरा प्रकरण वहां के महापौर अभय दरे को लेकर है। यह बड़ी अजीब बात है कि सरकार ने भ्रष्‍टाचार की कथित शिकायत के बाद उनके वित्‍तीय और प्रशासनिक अधिकार छीन लिए हैं लेकिन पार्टी उनके बारे में कोई फैसला नहीं कर पाई है। हाल ही में मैंने पढ़ा कि अभय दरे ने नगरीय प्रशासन विभाग के अफसरों पर आरोप लगाया है कि उन्‍होंने बिना उनका पक्ष ठीक से जाने आनन फानन में कार्रवाई कर डाली। उन्‍हें देर रात तलब किया गया और फरमान सुना दिया गया। ठेकेदार की शिकायत वाली जिस ऑडियो क्लिप के आधार पर कार्रवाई की गई उसकी फोरेंसिक जांच होनी चाहिए थी। दरे का कहना है कि उन्‍हें राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया है।

अब यदि दरे की बात मानें तो वे सीधा सीधा सरकार पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वहां बैठे अफसर, सत्‍तारूढ़ पार्टी के ही एक चुने हुए महापौर के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। ऐसे में या तो सच सामने आए या फिर इन सवालों को कुटिल मुसकान के साथ राजनीतिक गलियारों में टहलने दिया जाए कि क्‍या अफसर इतने ताकतवर हो गए हैं कि किसी महापौर को यूं चुटकी में मसल दें, और यदि यह काम वे किसी के इशारे पर कर रहे हैं तो अपनी ही पार्टी के नेता के खिलाफ साजिश करवाने वाले वे लोग कौन हैं?

तीसरा मामला ग्‍वालियर का है। वहां पार्टी के बहुत पुराने नेता राज चड्ढा ने वर्तमान स्थितियों से तंग आकर फेसबुक पर एक कमेंट डाला। उन्‍होंने सीधे मुख्‍यमंत्री को संबोधित करते हुए कहा कि ‘’मुख्‍यमंत्री जीप्रदेश में भ्रष्‍टाचार चरम पर हैअस्‍पतालों की दुर्दशा असहनीय है। सुधार करिये या हम जैसे लाखों कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर कर दीजिएजिन्‍होंने पंडित दीनदयाल जी के सपनों को पूरा करने के लिए पार्टी में अपना जीवन खपा दिया।‘’

इस पर पार्टी ने ‘एक्‍शन’ लेते हुए आधिकारिक बयान जारी कर मीडिया को बताया कि राज चड्ढा को पार्टी की प्राथमिक सदस्‍यता से निलंबित कर दिया गया है। उन्‍हें कारण बताओ नोटिस जारी कर सात दिन में जवाब मांगा गया है। हालांकि मुझे पता चला है कि वो कारण पूछने वाला नोटिस और वो निलंबन की सूचना का कागज राज चड्ढा के पास आज की तारीख तक नहीं पहुंचा है। यानी चड्ढा के मामले में या तो कोई जल्‍दबाजी हो गई या फिर कार्रवाई को लेकर पार्टी दुविधा में है क्‍योंकि चड्ढा पर कार्रवाई की खबर आते ही उसकी जिस व्‍यापक पैमाने पर आलोचना हुई थी उसने पार्टी के हाथ पैर फुला दिए थे।

मध्‍यप्रदेश में सत्‍तारूढ़ पार्टी को लेकर इसी तरह के कई सारे प्रसंग इन दिनों हवाओं और चर्चाओं में तैर रहे हैं। मेरी जिज्ञासा सिर्फ इतनी सी है कि दूसरों के दूध में नींबू निचोड़ने में माहिर हो चुके लोग अपनी भगोनी के दूध की चिंता कर रहे हैं या नहीं…

 

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