अजय बोकिल
अगर ईवीएम को ‘लू’ लग जाए तो चुनावी नतीजा क्या होता है, इसे देश के 9 राज्यों में चार लोकसभा और 10 विधानसभा उपचुनावों के नतीजों से समझा जा सकता है। बीजेपी के लिए इन उपचुनावों का मुकाबला 12-2 पर छूटा। हॉकी कमेंट्री में यह विपक्ष द्वारा आज की सबसे बड़ी सत्ताधारी पार्टी को ‘रौंद डालने’ वाली स्थिति है। भले ही भाजपा और उसके नेता यह दावा करते रहे कि ये तो उपचुनाव हैं, इनकी सियासी तासीर अलग होती है और दूसरा ये कि इस भीषण गर्मी में भी मोदी की आंधी अभी खत्म नहीं हुई है।
ये उपचुनाव कई मायनों में अलग इसलिए थे कि पहली बार लगा कि जीतने की रणनीतियां दोनों खेमों से बनीं। साफ हुआ कि ‘चाणक्य राजनीति’ का दूसरा फेज चालू हो गया है और इस चरण में चुनावी चक्रव्यूह केवल एक पक्ष द्वारा ही नहीं रचे जाते, वह प्रतिद्वंद्वियों द्वारा भी उतने ही असरदार तरीके से रचे जा सकते हैं। यह बात भाजपा के लिए सर्वाधिक प्रतिष्ठित समझी जाने वाली कैराना लोकसभा सीट पर करारी हार से साबित हुई। यहां ‘जिन्ना’ पर ‘गन्ना’ भारी पड़ा। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के कच्चे चावल इस बार पकना तो दूर, ठीक से भीग भी नहीं पाए।
बावजूद इसके उपचुनाव में मतदान और नतीजों के बाद भी चर्चा के केन्द्र में ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ही रही। कारण जो कल तक इस पर शक जता रहे थे, वो मशीनें ही ‘शक का केन्द्र’ बनीं भाजपा के खिलाफ जनादेश उगल रही थीं। महाराष्ट्र की पालघर सीट के नतीजे पर राज्य में सत्ता की सहयोगी शिवसेना ने हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा। जबकि कैराना के परिणाम प्रतिकूल आने के बाद खुद भाजपा को ईवीएम पर अपनी परछाईं की तरह शक होने लगा।
यूं तो ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें पिछले तीन साल से ज्यादा आ रही हैं, इस बिना पर कि नतीजे कुछ दलों की अपेक्षाओं को ध्वस्त करने वाले आ रहे हैं। विरोधी दलों का मानना है कि भाजपा की चुनावी जीत का अश्वमेध ईवीएम के भरोसे ही दौड़ता रहा है। संदेह इस बात को लेकर ज्यादा रहा है कि मोदी राज में तमाम दूसरी चीजों की तरह ईवीएम भी ‘मैनेज्ड’ हैं। ये वही नतीजा उलगती हैं, जिसके लिए उन्हें ‘निर्देशित’ किया जाता है।
यूपी विधानसभा चुनाव में यह शक और गहराया। इसके पहले आम आदमी पार्टी ने तो बाकायदा विधानसभा में इस गड़बड़ी का डेमो दिया। हालांकि उसको बहुत भरोसेमंद नहीं माना गया। खुद चुनाव आयोग भी ईवीएम के पक्ष में डटकर खड़ा रहा। वोटर ने किस को वोट दिया, इसकी कन्फर्मेशन के लिए वीवीपैट मशीनें लगाई गईं।
लेकिन हाल के उपचुनावों में सर्वाधिक शिकायतें भी वीवीपैट मशीनों में आईं। यानी वोट किसी को और पर्ची किसी के नाम। यह आरोप भी लगा कि मशीनों को कमल के हिसाब से ‘सेट’ किया गया है। हालांकि इनका कोई पुष्ट प्रमाण नहीं था। वहम ज्यादा था। इस बार जो अनोखी शिकायत आई, वह थी भरी गर्मी में ईवीएम का खराब होना। चुनाव आयोग को शक था कि भारी गर्मी के कारण ईवीएम के सेंसर गड़बड़ा गए हैं। इस पर सोशल मीडिया पर कमेंट हुआ कि अब ईवीएम को भी ‘लू लगने’ लगी है। भरी गर्मी में उसकी तबीयत बिगड़ गई है।
कैराना में तो कुछ मतदान केन्द्रों पर ईवीएम का मिजाज ठीक रखने के लिए कूलर व पर्दे भी लगाए गए। शिकायतों के चलते कई बूथों पर फिर से मतदान कराया गया। उधर विपक्षी पार्टियों को लगा कि ईवीएम को ‘खराब’ बताकर मतदान रुकवाने के पीछे भी कोई सोची समझी चाल है। मतलब वांछित वोट ही पड़ें और अवांछित अपनी किस्मत को कोसें।
इस पर राजद नेता तेजस्वी यादव ने दूर की सोचते हुए तंज किया कि आज ईवीएम को गर्मी लगी है, कल को चुनाव ठंड के मौसम में हुए तो ईवीएम को सर्दी लग सकती है। चुनाव बारिश में हुए तो वो भीग भी सकती हैं। कहने आशय यह कि एक निर्जीव वस्तु मौसम को लेकर इतनी संवदेनशील कैसे हो सकती है? खासकर तब कि जब नतीजों से नई सियासी इबारत लिखी जाने वाली हो।
तेजस्वी ने बड़े भाई तेजप्रताप ने ट्वीट किया कि ईवीएम को बार-बार कष्ट देने के बजाए बेहतर है कि उन्हें हमेशा के लिए उठा ही लिया जाए। लालू की बेटी मीसा ने कहा कि अच्छा हुआ कि ईवीएम को ‘लू’ ही लगी, डायरिया हो जाता तो मशीन से केवल भगवा वोट की पर्चियां ही निकलतीं।
ईवीएम में खराबी क्यों हुई, यह अभी भी रहस्य है, लेकिन यदि ईवीएम और मौसम में कोई सांठगांठ है तो भाजपा सहित सभी सत्ताकांक्षी दलों को सावधान हो जाना चाहिए। क्योंकि आगामी लोकसभा चुनाव भी मई में ही होने हैं। तब किस की लू से ईवीएम बीमार पड़ेंगी, कहना मुश्किल है। ध्यान रहे कि मध्यप्रदेश सहित चार राज्यों के चुनाव इसी साल सर्दी के मौसम में होने हैं, तब शीतलहर से ईवीएम जाम हो जाएं तो सियासी फायदा किसको होगा?
वैसे अपने यहां की ईवीएम मशीनों को लेकर अफ्रीकी देश बोत्स्वाना में भी बवाल मचा है। वहां की मुख्य विरोधी पार्टी ईवीएम को लेकर कोर्ट चली गई है। उसे डर है कि ईवीएम का परफार्मेंस वैसा ही न हो, जैसा भारत में होता है। बेशक ईवीएम का ‘बहकना’ काफी कुछ शक की बुनियाद पर खड़ा है, लेकिन स्वस्थ और विश्वसनीय चुनावों के लिए ईवीएम की लू तो उतारनी ही होगी, फिर वह चाहे इनमें सुधार से हो अथवा उपचार से।
(सुबह सवेरे से साभार)