भारत भूषण आर. गांधी
हाल ही में एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र के मुखपृष्ठ पर एक खबर छपी थी कि अगले साल चुनाव है और जनता नाराज न हो इसलिए हेलमेट न लगाने पर जुर्माने की राशि बढ़ाने का प्रस्ताव केबिनेट में निरस्त कर दिया गया। दरअसल सरकार को संबंधित विभाग की ओर से प्रस्ताव भेजा गया था कि बिना हेलमेट के दुपहिया वाहन चलाते पाए जाने और पकडे जाने पर जुर्माना दो सौ पचास रुपये से बढ़ाकर दुगुना यानि पांच सौ रुपये कर दिया जाए।
इस जो टिप्पणी समाचार पत्र में प्रकाशित हुई उसके अनुसार मंत्री जी अभी जुर्माने कि राशि को यथावत रखना चाहते हैं क्योंकि आने वाले साल में विधानसभा का चुनाव है और सरकार जनता से किसी भी प्रकार की नाराज़गी नहीं चाहती।
राजनीति की दृष्टि से अनेक निर्णयों को लेने से पहले उसके लाभ और हानि की चिंता सभी राजनीतिक पार्टियाँ करती हैं, इसलिए केबिनेट में प्रस्ताव का मंजूर न हो पाना कहीं कुछ गलत नहीं लगता। लेकिन हेलमेट के बिना वाहन चलाने वालों पर सख्ती न करना क्या उन वाहन चालकों को और गैरजिम्मेदार नहीं बनाएगा? और यदि किसी की मृत्यु या संघातिक चोट बिना हेलमेट के वाहन चलाने वाले के साथ घटित होती है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
यदि नियम हेलमेट लगाकर वाहन चलाने का है तो क्या दुर्घटना बीमा कंपनी उस चालक की क्षतिपूर्ति को निरस्त नहीं कर देगी। सभी प्रकार के बीमा किसी न किसी शर्त के साथ ग्राहकों से अनुबंधित किये जाते है ऐसे में वाहन चालक द्वारा ऐसी कोई भी गलती करने पर बीमा क्लेम खटाई में पड जाता है।
दूसरी तरफ यह भी जानकारी है कि चुनाव को देखते हुए पुलिस और स्थानीय प्रशासन को अतिक्रमण आदि की कार्रवाई न करने के लिए भी मौखिक रूप से निर्देश जारी किये गए हैं। ऐसे में तो यही लगता है कि जब तक चुनाव नहीं हो जाते तब तक अतिक्रमण कर लीजिए और वोट मिलने के बाद अपने लोगों को प्रश्रय देने या दूसरे लोगों को दण्डित करने की पूरी सम्भावना बना दीजिये।
कुल मिलाकर यह समय सभी के लिए फीलगुड सन्देश देने का है कि जैसा चल रहा है, चलता रहने वाला है। वैसे भी ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’ तो कहा ही जाता है। अभी विधानसभा चुनाव के नाम पर कार्रवाई से छूट मिल रही है फिर उसके बाद हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के नाम पर भी छूट मिल जाए।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)
(मध्यमत)
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