ऐसे फालतू सवाल पूछकर हुजूर का टेम खोटी न करें

अकसर ऐसा होता है कि राजनीतिक हो हल्ले में लोगों की रोजमर्रा जिंदगी से जुड़ी चीजें दब जाती हैं। कई बार यह भी होता है कि गैर मुद्दों को मुद्दा बनाकर इतना शोर मचाया जाता है कि असली मुद्दों पर ध्यान ही नहीं जा पाता। लोग बिगड़ते हालात को लेकर परेशान हो रहे होते हैं, लेकिन मीडिया की सुर्खियां कुछ और ही कहानी बयां करती दिखती हैं।

जिन दिनों कर्नाटक के चुनाव चल रहे थे उन्हीं दिनों हमारे कार्टूनिस्ट ने एक कार्टून भेजा था जिसका लब्बोलुआब यह था कि एक आम आदमी भगवान से दुआ कर रहा है कि हे ईश्‍वर ये चुनाव के दिन कभी खत्म न होने देना, क्योंकि इनके कारण कम से कम पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी तो थमी हुई है।

लेकिन वो कहावत है ना कि ‘बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी।‘ तो कर्नाटक में जैसे ही चुनाव खत्म हुए आम आदमी बकरे की मानिंद हलाल होना शुरू हो गया है। चुनाव के चलते तेल कंपनियों ने 24 अप्रैल के बाद 19 दिनों तक दाम नहीं बढ़ाए। 12 मई को जैसे ही कर्नाटक में वोटिंग खत्म हुई, 14 मई से कीमतें बढ़नी शुरू हो गईं।

सोमवार को मीडिया में कर्नाटक सरकार को लेकर राजनीतिक तकरार की खबरों के साथ साथ इस बात की भी चीखपुकार देखी सुनी गई कि देश में पेट्रोल और डीजल के भाव आसमान छू रहे हैं। कर्नाटक चुनाव के बाद तेल कंपनियों ने भावों की दैनिक समीक्षा का काम शुरू कर दिया है।

इस समीक्षा का नतीजा यह निकला है कि भोपाल में रविवार को पेट्रोल के दाम 81.87 रुपए प्रति लीटर और डीजल के दाम 71.15 रुपए प्रति लीटर रहे। रविवार को समाप्त पिछले चौबीस घंटों में ही पेट्रोल 67 पैसे तो डीजल 54 पैसे तक महंगा हो गया। अखबारों ने सोमवार को ये दाम और बढ़कर पेट्रोल 82.20 रुपए लीटर और डीजल 71.42 रुपए लीटर बिकने का अनुमान प्रकाशित किया।

मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि तेल कंपनियां अपना मार्जिन कर्नाटक चुनाव से पहले के स्तर पर ले गईं तो पेट्रोल 4.55 रुपये तक और डीजल 4 रुपये तक महंगा होगा। जो सरकार महंगाई कम करने के आसमान फोड़ दावों के साथ सत्ता में आई थी यह उसकी सच्चाई है।

मैं जानता हूं बात कड़वी लगेगी, लेकिन इस सच्चाई को एक और तरीके से समझने की कोशिश करिए। कच्चे तेल की कीमत 2013 में, यानी मोदी सरकार आने से पहले 112 डॉलर प्रति बैरल थी और उस समय दिल्ली में पेट्रोल का प्रति लीटर भाव 76.06 रुपए था। आज कच्चा तेल 80 डॉलर प्रति बैरल है और दिल्ली  में पेट्रोल का भाव 76.24 रुपए प्रति लीटर है।

साफ है कि मोदी सरकार आने के बाद भी इस मामले में लोगों को कोई बहुत ज्यादा रियायत नहीं मिली। उलटे नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के दौरान जब कच्चे तेल के दाम घट रहे थे, सरकार ने 9 बार में पेट्रोल पर 11.77 रुपए और डीजल पर 13.47 रुपए एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी। चारों ओर महंगाई का बहुत ज्यादा शोर होने पर इस बीच सिर्फ एक बार, अक्टूबर 2017 में 2 रुपए प्रति लीटर ड्यूटी घटाई।

पेट्रोल और डीजल के दामों को लेकर हमेशा से ही एक विवाद यह भी रहा है कि सरकारें इस पर अनाप शनाप टैक्स लगाकर अपना खजाना भरती रही हैं। चूंकि यह अनिवार्य उपयोग की वस्तु है इसलिए लोगों की मजबूरी है कि चाहे जितना दाम हो, वे उसे खरीदेंगे ही, और सरकार इसी मजबूरी का फायदा उठाकर लोगों का लगातार शोषण कर रही है।

हमारे अपने मध्याप्रदेश की ही बात लें, यहां पिछले साल अक्टूबर तक पेट्रोल पर 31 और डीजल पर 27 फीसदी वैट वसूला जा रहा था। इसके अलावा पेट्रोल पर 4 रुपए और डीजल पर 1.50 रुपए प्रति लीटर अतिरिक्त शुल्क और लिया जा रहा था। बाद में केंद्र सरकार के निर्देश पर अक्टूबर 2017 में पेट्रोल पर 3 फीसदी और डीजल पर 5 फीसदी वैट कम किया गया। लेकिन मध्यप्रदेश आज भी उन राज्यों में शुमार है जहां पेट्रोल डीजल की कीमतें सर्वाधिक हैं।

सोमवार को मैं टीवी चैनल्स देख रहा था। उसमें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा दोनों कर्नाटक के चुनाव पर तो बढ़ चढ़कर बोल रहे थे लेकिन इनमें से किसी के पास इस बात की फुर्सत नहीं थी कि दो बात ईंधन के बढ़ते दामों को लेकर भी कह देते।

मैं जानता हूं, चाहे सरकार हो या विपक्ष, किसी के पास जनता से जुड़े असली मुद्दों पर बात करने का समय नहीं है। और यदि समय हो और वे बोलना भी चाहें तो क्या आप बता सकते हैं कि वे क्या बोलेंगे? चलिए उनका जवाब सुनने के लिए मैं आपको सितंबर 2017 में लिए चलता हूं।

उस समय रिटायर्ड आईएएस अफसर के.जे. अल्फोंस को मोदीजी ने अपनी सरकार में नया नया मंत्री बनाया था। अल्फोंस महोदय के पास पर्यटन मंत्रालय का प्रभार था। उनसे किसी ने गलती से पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों के बारे में पूछ लिया। उन्होंने बड़ा ही क्रांतिकारी बयान देते हुए कहा-‘’जिनके पास कार और बाइक है, वे भूखे नहीं मर रहे हैं और पेट्रोल डीजल की बढ़ी हुई कीमतों का भुगतान करने में सक्षम हैं।‘’

अल्फोंस ने कहा था-‘’पेट्रोल कौन खरीदता है, जिसके पास कार, बाइक होगी। निश्चित तौर पर वह भूखा तो नहीं होगा। जो इसका (कार या बाइक खरीदने का) भुगतान कर सकता है, उसे पेट्रोल डीजल की कीमतों का भुगतान भी करना ही होगा।‘’

ये प्रसंग मैंने आपको सिर्फ इसलिए सुनाया कि आप भी यदि पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों से त्रस्त होकर सरकार से सवाल पूछने का मन बना रहे हों तो पहले सुनिश्चित कर लीजिएगा कि आप भूखे मर रहे हैं या नहीं। यदि आप भूखे मर रहे हों तो ही सवाल पूछें अन्यथा ऐसे गैर जरूरी सवाल पूछने की मनाही है। ऐसे फालतू सवाल पूछकर सरकार हुजूर का टेम खोटी न करें…

 

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