भ्रष्‍टाचार कह कर अपमान न करें, यह ‘खेल’ भावना है

दो उदाहरण हैं और दोनों ही बताते हैं कि प्रदेश में कैसा विकास हो रहा है और जन कल्‍याण के दावों की सच्‍चाई क्‍या है। तमाम तरह की बैठकों, दिशा निर्देशों और उलटा सीधा लटका देने की धमकियों के बावजूद जमीन पर लोग उलटे सीधे काम करने से बाज नहीं आ रहे हैं।

पहला मामला मेहनतकशों का है। दो माह पहले आपने मध्‍यप्रदेश में किसानों की दुर्दशा का खूनी नजारा देखा था। उसी के समानांतर दूसरा नजारा प्रदेश के मजदूरों के नाम पर होने वाले खुले खेल का है। खबर आई है कि प्रदेश में मजदूरों की आबादी यहां की कुल आबादी से भी अधिक है।

1957 में एक क्रांतिकारी फिल्‍म आई थी नया दौर उसमें साहिर लुधियानवी ने मजदूरों पर एक खूबसूरत गीत लिखा था, जिसका मुखड़ा था- साथी हाथ बढ़ाना साथी रे… इसी गीत का एक अंतरा है-

एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया

एक से एक मिले तो ज़र्रा बन जाता है सेहरा

एक से एक मिले तो राई बन सकती है परबत

एक से एक मिले तो इन्सांबस में कर ले किस्मत

साथी हाथ बढ़ाना…

लेकिन मध्‍यप्रदेश में पट्ठों ने मेहनतकशों की दुनिया में ऐसा एक से एक मिलाया कि उनकी संख्‍या राज्‍य की आबादी से भी आगे निकाल दी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्‍यप्रदेश की आबादी 7.26 करोड़ थी। और आज सरकारी रिकार्ड के मुताबिक राज्‍य में रजिस्‍टर्ड मजदूरों का आंकड़ा 8 करोड़ 34 लाख से ज्‍यादा है। राज्‍य में आबादी की बढ़ोतरी के जो अनुमान लगाए गए हैं उनके मुताबिक यदि देखें तो आज की तारीख में अनुमानित आबादी 8.09 करोड़ होनी चाहिए और इस हिसाब से भी रजिस्‍टर्ड मजदूरों की संख्‍या करीब 25 लाख ज्‍यादा है।

अब एक लिहाज से देखें तो सरकार के रजिस्‍टर में कुछ गलत नहीं लिखा है क्‍योंकि राज्‍य के ज्‍यादातर लोगों की हालत मजदूरों जैसी ही तो है। ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता कि हमारे यथार्थवादी अफसरों ने अपने रजिस्‍टर में यथास्थिति को ही परिलक्षित किया हो। और उन्‍हें यह भी अनुमान रहा होगा कि अभी कुछ साल यही स्थिति बनी रहने वाली है इसलिए इसमें भावी या अजन्‍मी पीढ़ी के भी 25 लाख लोग मजदूर के रूप में शामिल कर लिए गए। क्‍योंकि अपनी भावी पीढ़ी का भविष्‍य सुरक्षित करना भी तो वर्तमान पीढ़ी का ही काम है।

इस हिसाब से यह आलोचना का नहीं बल्कि सराहना का विषय है कि हमारी मशीनरी भविष्‍य की जरूरतों का अनुमान लगाकर उसके हिसाब से अभी से तैयारी कर रही है। क्‍योंकि जब तक हितग्राहियों का सही अनुमान नहीं होगा तो उनके लिए कल्‍याणकारी योजनाओं का संचालन और आवश्‍यक फंड कैसे जुटाया जाएगा।

प्रदेश में सरकार ने जिन 12 योजनाओं के तहत मजदूरों का पंजीयन किया है उनमें साइकल रिक्‍शा व हाथठेला, घरेलू कामकाजी, हॉकर फेरीवाले, निर्माण मजदूर,मनरेगा मजदूर, हम्‍माल-तुलावटी, बीड़ी श्रमिक, बुनकर-शिल्‍पी, केश-शिल्‍पी, कुली,मिल-मजदूर और मछुआ श्रमिक शामिल हैं। जाहिर है इन सभी योजनाओं के लिए मजदूरों के नाम पर करोड़ों का फंड मिलता है। जितने ज्‍यादा मजदूर होंगे ‘खेलने खाने’ को उतना ही ज्‍यादा मिलेगा।

अब दूसरा ‘खेल’ लीजिए। पहला खेल मजदूरों का था तो दूसरा खेल उनकी दाल रोटी से जुड़ा है। मजदूरों के आंकड़ों की तरह ही एक और खबर आई है कि सरकार ने इस बार पांच साल की पैदावार के बराबर मूंग की समर्थन मूल्‍य पर खरीदी कर ली। आरटीआई के तहत सामने आई एक जानकारी के मुताबिक मध्‍यप्रदेश में सरकार ने 1200 करोड़ रुपए की 2.42 लाख टन मूंग खरीदी, जबकि प्रदेश में वर्ष 2015-16 में मूंग का कुल उत्‍पादन ही 92 हजार टन हुआ था।

समर्थन मूल्‍य पर जो खरीदी हुई है वह पिछले पांच सालों, 2011-12 से लेकर 2015-16 के कुल उत्‍पादन 2.41 लाख टन से भी ज्‍यादा है। प्रदेश में पिछले पांच सालों में किसी एक वर्ष में मूंग का सर्वाधिक उत्‍पादन 1.05 लाख टन रहा है जो वर्ष 2014-15 में हुआ था। इस साल सरकार ने जितनी मूंग समर्थन मूल्‍य पर खरीदी है, उसके मुताबिक तो मूंग का कुल उत्‍पादन साढ़े तीन से चार लाख टन होना चाहिए था। क्‍योंकि सभी किसान अपनी पूरी की पूरी फसल सरकार को समर्थन मूल्‍य पर कभी नहीं बेचते।

इसमें भी पेच यह है कि तीन क्विंटल या उससे अधिक मूंग बेचने वालों की संख्‍या 16 हजार 839 बताई गई है। सरकारी अमला इनमें से सिर्फ 40 फीसदी किसानों का ही, मूंग उत्‍पादक किसान के रूप में सत्‍यापन कर पाया है। हरदा में तो एक ही एग्रीमेंट पेपर पर कई किसानों ने अपनी फसल बेच डाली।

सरकार ने इस साल गरमी में आई मूंग की खरीदी जुलाई माह में शुरू की थी। निश्चित रूप से इतने लंबे समय त‍क ज्‍यादातर किसानों ने फसल अपने घर में रोककर नहीं रखी होगी। पूरी संभावना है कि बिचौलियों अथवा व्‍यापारियों ने औने पौने दामों पर जरूरतमंद किसानों से फसल खरीदकर बाद में उसे ही 5000 रुपए क्विंटल की दर से सरकार को बेच डाला हो।

तो चाहे मजदूरों की संख्‍या का मामला हो या मूंग की फसल का, हर जगह जमकर‘खेल’ चल रहा है। और इस ‘खेल’ में उलटा लटकाने की बात तो छोडि़ए, कोई सीधा भी नहीं लटकाया गया। इसलिए मेरा सुझाव है कि आप भी इसे भ्रष्‍टाचार कहकर इसका अपमान न करें, यह बहुत ‘ऊंचा खेल’ है, सो आप भी इसे ‘खेल भावना’ से ही ग्रहण करिए…

 

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