कोरोना हुआ तो डरना क्‍या? (पहली कड़ी)

गिरीश उपाध्‍याय
कोरोना संक्रमित हो जाने के बाद अब हमारा परिवार ठीक है। संक्रमण के दौरान बीते 20 दिनों में हम अलग अलग तरह के अनुभवों से गुजरे हैं। कई मित्रों और शुभचिंतकों ने चाहा है कि मैं अपने इन अनुभवों को साझा करूं ताकि लोगों को एक भुक्‍तभोगी के जरिये इस बीमारी और उससे जुड़े पहलुओं को जानने, समझने का मौका मिले और साथ ही कुछ संभलने का भी।
कुछ भी कहने से पहले मैं यह बताना जरूरी समझता हूं कि इस बीमारी को लेकर हरेक व्‍यक्ति का अपना अलग अनुभव हो सकता है। स्थितियों से निपटने का उसका अपना तरीका हो सकता है। दवा से लेकर उपचार के अन्‍य तरीकों को अपनाने के बारे में उसकी अपनी समझ हो सकती है। इसलिए जरूरी नहीं कि मेरे अनुभवों को आप शाश्‍वत या सार्वकालिक अनुभवों के रूप में लें। मैं बस अपनी बात आपसे साझा करूंगा। यदि आपको उसमें से अपने लिए कोई सूत्र या मदद का तत्‍व दिखता है तो भी उसे अपनाने से पहले अपनी समझ और डॉक्‍टरी सलाह का इस्‍तेमाल जरूर करें।
अब अपनी बात…
सोशल मीडिया पर जो लोग मुझसे जुड़े हैं उन्‍हें 16 अप्रैल की मेरी वो पोस्‍ट याद होगी जिसमें मैंने लिखा था- ‘’हमारे परिवार ने ‘पॉजिटिव’ होकर कोरोना का मान रख लिया है सो सूचित हो…’’ इस पोस्‍ट के पीछे असली सूचना यह थी कि मैं, पत्‍नी और बेटी एक साथ कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। जिस दिन डॉक्‍टर ने हमें यह जानकारी दी थी उसी समय मैंने सोच लिया था कि इस ‘पॉजिटिव’ को पूरी ‘पॉजिटिविटी’ के साथ ही ग्रहण करना है। इसीलिये मैंने लिखा कि ‘हमने पॉजिटिव होकर कोरोना का मान रख लिया है।‘
यह पोस्‍ट कोरोना पीडि़त हो जाने के बाद हमारी पहली रियेक्‍शन थी। और इसके पीछे संदेश यही था कि यदि आप कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं तो डर कर मर जाने की जरूरत नहीं है। हालांकि मेरे कई मित्रों ने कोरोना का ‘मान रखने’ वाली बात पर आपत्ति करते हुए कहा था कि आप इतने सारे लोगों की जान लेने वाली बीमारी का ‘मान’ रखने की बात कर रहे हैं। लेकिन ऐसा कहकर जो बात मैं बताना चाहता था और आज भी बताना चाहता हूं, वो ये है कि ‘मान रखने’ से मेरा आशय यह था, और आज भी है, कि आप कोरोना का नोटिस लीजिये, उसकी परवाह की कीजिये। उसके लक्षणों को ‘रिकग्‍नाइज’ कीजिये उन्‍हें ‘इग्‍नोर’ मत करिये।
कोरोना काल में एक शब्‍द बहुत चर्चित हुआ है और वो है- टेस्‍ट। लेकिन मैं यहां कोरोना बीमारी के ‘पॉजिटिव’ और ‘निगेटिव’ टेस्‍ट की बात नहीं कर रहा हूं। दरअसल कोरोना ने हमें एक और टेस्‍ट से गुजरने के लिए बाध्‍य किया है और वो टेस्‍ट है आपका अपने शरीर से रिश्‍ते को जानने का। यह बीमारी (और यही नहीं, कोई भी बीमारी) हमसे पूछती है कि हम अपने शरीर को, उसकी हरकतों को, उसकी तासीर को कितना जानते हैं। बीमारी यह भी पता करती है कि हम अपने शरीर और उसके द्वारा दी जाने वाली प्रतिक्रियाओं और संकेतों को कितना समझ पाते हैं।
कुल मिलाकर यह बीमारी इस बात की परीक्षा लेती है कि हमें अपने शरीर की कितनी परवाह है। हम उसकी बात को कितना सुनते हैं, उसके साथ कितना संवाद करते हैं। तय मानिये, यदि हमारा अपने शरीर से, उसकी तासीर से गहरा संवाद है और उसकी बात को हम समझते हैं या समझने की कोशिश करते हैं और उसे तवज्‍जो देते हैं, तो कोरोना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। क्‍योंकि ऐसा करके हम कोरोना को शरीर की दहलीज पर ही रोक पाने में सक्षम हो जाते हैं।
मेरा अनुभव कहता है कि कोरोना चाहे सिम्‍टोमैटिक (लाक्षणिक) हो या एसिम्‍टोमैटिक (अलाक्षणिक) आप मानकर चलिये कि ये बीमारी की डॉक्‍टरी परिभाषा और व्‍याख्‍या है। शरीर में किसी भी बीमारी या बाहरी तत्‍व का प्रवेश बिना अलार्म के नहीं होता। शरीर ऐसी हर घटना पर निश्चित रूप से संकेत देता है, अलार्म बजाता है। जरूरत इस बात की है कि हम उस संकेत को समझ पाते हैं या नहीं, उस अलार्म को सुन पाते हैं या नहीं। अकसर हम बाहरी दुनिया में इतना खोए हुए रहते हैं कि अपने शरीर के भीतर से आने वाली आवाज को, उसकी कराह को या उसके चेतावनी भरे संकेत को भी सुन नहीं पाते।
इसमें भी सबसे ज्‍यादा मुश्किल उन मामलों में होती है जहां इन सारे संकेतों और चेतावनियों को सुनकर भी हम अनसुना कर देते हैं। हमारा दंभ हमें इस बात को मानने ही नहीं देता कि हम बीमार भी पड़ सकते हैं या बीमार पड़ने जा रहे हैं। हम शरीर की बात सुनने के बजाय अपनी राय, अपनी बात और अपनी कथित समझ उस पर थोपने लगते हैं। शरीर किसी और बात की ओर इशारा कर रहा होता है, चेतावनी दे रहा होता है, लेकिन हम उस दिशा में सोचने के बजाय अपना अधकचरा ज्ञान/समझ उस पर थोप कर या तो उसकी अवहेलना करते हैं या फिर मनमाना समाधान/उपचार करने लग जाते हैं।
और संकट काल उसी क्षण से शुरू हो जाता है जब हम शरीर की तरफ से दिए जान वाले ऐसे संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं। आज जो कोरोना का इतना बड़ा संकट हम देख रहे हैं, अपने आसपास के प्रियजनों की असमय मृत्‍यु से हतप्रभ हैं, उसका सबसे बड़ा कारण है, बीमारी के संकेतों को सही समय पर न पहचानते हुए, तत्‍काल उसके उपचार की ओर न बढ़ना। कोरोना का पहला और सबसे बड़ा सबक या एहतियात यही है कि अव्‍वल तो आप पूरी सावधानी रखकर इसे अपने तक पहुंचने ही न दें, और यदि यह पहुंच ही गया है तो बिना देरी किए तत्‍काल उसका उपचार करवाएं… तत्‍काल यानी तत्‍काल… याद रखिये आप देरी करके बीमारी को टाल नहीं रहे बल्कि मौत को अपने नजदीक बुला रहे हैं… (जारी)
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नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

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