अजय बोकिल
यह मजाक का विषय नहीं है, लेकिन दिलचस्पी का जरूर है। पश्चिम बंगाल में ममता दी के एक वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी ने अपनी पत्नी की याद में कोलकाता में कुत्तों का अस्पताल बनवाने का ऐलान किया है। पार्थ का कहना है कि उनकी पत्नी ‘डॉग लवर’ थीं। ऐसे में पत्नी की याद को स्थायी बनाने के लिए कुत्तों के इलाज का अस्पताल बनवाने से बेहतर बात क्या हो सकती है। पार्थ की पत्नी का निधन कार्डियक अरेस्ट से पिछले साल हुआ था। पार्थ ने न केवल ऐलान किया, बल्कि इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है। अमूमन लोग अपने दिवंगत परिजनों की याद को चिरस्थायी बनाने के लिए इंसानों के अस्पताल, धर्मशाला, बाग-बगीचे आदि तो बनवाते रहे हैं, लेकिन मूक प्राणियों के इलाज की इस तरह चिंता किसी राजनेता ने शायद पहली बार की है।
इस प्रस्तावित अस्पताल का नाम होगा बबली चटर्जी मेमोरियल पैट हॉस्पिटल। यह अस्पताल ट्रस्ट के जरिए संचालित होगा। मंत्री पार्थ का कहना है कि मेरी पत्नी सच्ची डॉग लवर थीं, वह उनकी बहुत देखभाल करती थीं। डॉक्टर के पास ले जाकर दवाएं भी दिलाती थीं। इस नाते मैने सोचा कि क्यों न कुत्तों के लिए अस्पताल बनाकर पत्नी की स्मृतियों को जिंदा रखा जाए। पार्थ की एक बेटी भी है, जो विदेश में रहती थी, लेकिन आजकल वह दक्षिण कोलकाता के घर में अपने छह पालतू कुत्तों के साथ रहती है।
वैसे चटर्जी परिवार का यह श्वान प्रेम अनोखा और असाधारण है। मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रीजी रात की पार्टी या सरकारी बैठकों से जब देर रात घर लौटते हैं तो उन्हें अपने बिस्तर में जगह नहीं मिल पाती क्योंकि तब तक घर के पालतू कुत्ते उनके बिस्तर पर कब्जा कर चुके होते हैं। चटर्जी साहब की दरियादिली का आलम यह है कि वे बिस्तर पर सोते कुत्तों को कतई डिस्टर्ब नहीं करते। उल्टे खुद ही ठंडे फर्श पर सो जाते हैं। जिस घर में कुत्तों को इतना वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलता हो, वहां कोई भी कुत्ता बनना चाहेगा।
ऐसा नहीं है कि पार्थ साहब के पास और कोई काम नहीं है। वे काफी व्यस्त राजनेता हैं। 2001 में पहली बार विधायक बने चटर्जी की गिनती राज्य के सर्वाधिक व्यस्त मंत्रियों में होती है। क्योंकि उनके पास शिक्षा के साथ संसदीय कार्य और विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्रालय भी है। वे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता भी हैं। इन सबके बावजूद उनकी पहली प्राथमिकता शायद कुत्ते ही हैं। बताया जाता है कि वे अपने से ज्यादा अपने कुत्तों की निजता की रक्षा की चिंता करते हैं। अमूमन खुद के साथ अपने डॉगी के पोज फेसबुक पर पोस्ट करने के जुनूनी यूजरों के लिए पार्थ एक प्रेरक उदाहरण हैं। वे न तो अपनी कोई फोटो सोशल मीडिया पर डालते हैं और न ही अपने कुत्तों और उनकी एक्टिविटीज को सार्वजनिक करते हैं। यहां तक कि वे अपने जान से प्यारे कुत्तों की तस्वीर किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं खींचने देते।
यहां सवाल पूछा जा सकता है कि वे पत्नी की याद में कुत्तों का अस्पताल ही क्यों बनाना चाहते हैं, महिलाओं का अस्पताल क्यों नहीं? तो इसका जवाब पार्थ के शब्दों में यह है कि कोलकाता में प्राणी अस्पतालों का टोटा है। उनकी पत्नी इस बारे में उनसे चर्चा किया करती थी। ऐसे में कुत्तों का अस्पताल उनकी पत्नी की इच्छा हो सकती है। कुत्तों का अस्पताल चटर्जी बाघा जतिन रेलवे स्टेशन के पास 17 एकड़ में बनाएंगे। यह सर्वसुविधा सम्पन्न अस्पताल होगा।
वैसे कुत्तों का बंगाल की राजनीति में बड़ा महत्व रहा है। तीन साल पहले सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के एक विधायक ने अपने एक परिचित के कुत्ते को डायलिसिस के लिए सरकारी पशु अस्पताल भेजा था। लेकिन अस्पताल के डायरेक्टर ने उस कुत्ते का इलाज करने से इंकार कर दिया था। इसके बाद ममता सरकार ने डायरेक्टर को पद से हटा दिया था। इसके बाद राज्य की राजनीति गर्मा गई थी। साफ हुआ कि राज्य में इंसानों और कुत्तों के इलाज को लेकर सरकारी तंत्र की संवेदनशीलता में कोई फर्क नहीं है। दोनों के साथ एक सा ट्रीटमेंट है। बाद में उस कुत्ते का क्या हुआ पता नहीं, लेकिन वह घटना कोलकाता में एक नए पैट हास्पिटल की गुंजाइश बना गई।
यूं भी कुत्ते पालना इंसान के अमीर होते जाने की पहली निशानी है। कई लोगों के लिए तो रोटी, कपड़ा और मकान के बाद चौथी गरज कुत्ते ही हैं। फिर बंगाल खुश किस्मत इस मायने में है कि सरकारी तंत्र का मानस जो भी हो, मंत्री के स्तर पर प्राणियों के प्रति गहरी संवेदना बाकी है। वे कुत्तों को कम से कम अपने घर में तो इंसानों से ज्यादा तवज्जो देते हैं। पार्थ के पैट हास्पिटल में उन तमाम कुत्तों का ठीक से इलाज हो सकेगा, जो अपने मालिकों की जिंदगी को ज्यादा सुरक्षित और ग्लैमरस बना रहे हैं। दिक्कत उन आवारा गली के कुत्तों की है, जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाना वाला भी कोई नहीं है। उनकी किस्मत में ‘कुत्ते की मौत’ मरना ही लिखा है।
मोटे अनुमान के अनुसार कोलकाता शहर में 65 हजार से ज्यादा आवारा कुत्ते हैं, जिनके लिए शहर में कोई अस्पताल नहीं है, ठीक उसी तरह कि जैसे गरीबों के लिए अस्पताल कम ही खोले जाते हैं। फिर भी पार्थ चटर्जी की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने कुत्तों की स्वास्थ्य रक्षा को लेकर इतनी संवेदना दिखाई। बावजूद इसके कि कुत्ते किसी को वोट नहीं देते और न ही उनको पालने भर से राज सिंहासन मिलता है। मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी मरहूम बेगम मुमताज की याद में लाजवाब ताजमहल बनाकर उसकी स्मृति को चिरस्थायी कर डाला था। पार्थ यही काम अपनी पत्नी के लिए कर रहे हैं। कोठियों में पलने वाले कुत्तों के लिए तो यह शुभ संदेश है ही।
(सुबह सवेरे से साभार)