देश में डीएनए डाटाबेस लेकर फिर उठे सवाल…

अजय बोकिल

देश में डीएनए डाटाबेस बनाने का मामला फिर लटक गया है। सरकार के स्तर पर इसकी कोशिशें तेरह साल से चल रही हैं, लेकिन इस बिल को लेकर सवाल पहले भी थे, अब भी हैं। संसदीय समिति ने नए डीएनए बिल के तहत प्रस्तावित क्राइम सीन डीएनए प्रोफाइल का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने पर चिंता जताई है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर संसद की स्थायी समिति ने आशंका जाहिर की है कि डीएनए डेटा बैंक का धर्म, जाति या राजनीतिक विचार के आधार पर लोगों को निशाना बनाने के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है।

बिल में डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग एवं अनुप्रयोग) विधेयक 2019 के तहत अपराध स्थल डीएनए प्रोफाइल का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने का प्रस्ताव दिया गया है, यह विधेयक राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक और क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंक स्थापित करने का प्रावधान करता है, जिसमें डीएनए प्रोफाइल रखी जाएंगी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट राज्यसभा के पटल पर रखी गई। समिति के दो सदस्यों, तेलंगाना से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी तथा केरल से राज्यसभा सदस्य बिनॉय विश्वम ने असहमति दर्ज कराई है।

समिति ने कहा कि अपराध स्थल डीएनए प्रोफाइल के राष्ट्रीय डेटा बैंक में सभी का डीएनए शामिल हो सकता है, क्योंकि अपराध से पहले और बाद में वारदात स्थल पर कई लोगों का डीएनए मिल सकता है, जिनका मामले से कुछ लेना देना न हो। ऐसे लोगों को भी अपराध की जांच के दायरे में फंसना पड़ सकता है। हालांकि पुलिस और जांच एजेंसियां इसे खारिज करती हैं, लेकिन जब एक बार आपका निजी डाटा किसी के पास चला जाए तो उसकी सुरक्षा की सौ फीसदी  गारंटी कोई नहीं दे सकता।

जानकारों के मुताबिक समिति ने कहा, ‘ये डर पूरी तरह से निराधार नहीं हैं और सरकार एवं संसद द्वारा इसका समाधान निकाला जाना चाहिए। समिति का मानना है कि डीएनए प्रोफाइलिंग सुनिश्चित करने के लिए एक ऐसा सक्षम तंत्र जल्द ही बनाया जाए, जो पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों और संविधान की भावना के अनुरूप हो।’ समिति के एक सदस्य विश्वाम ने कहा कि बिना पर्याप्त कानूनी सुरक्षा के यह कानून हाशिए पर पड़े लोगों विशेषकर दलितों, आदिवासी एवं अल्पसंख्यकों के लिए समस्यात्मक होगा।

ओवैसी ने जातिगत डेटा के साथ-साथ ‘विशिष्ट समूहों के साथ भेदभाव के लिए’ जानकारी इकट्ठा करने की संभावना पर चिंता जताई। गौरतलब है कि डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक का उद्देश्य ‘विशेष श्रेणी के व्यक्तियों’ जैसे कि अपराध के शिकार लोगों, लापता व्यक्तियों और बच्चों, अज्ञात शवों के साथ अपराधियों, संदिग्धों और मामलों में विचाराधीन लोगों का एक डेटाबेस स्थापित करना है। ऐसा डेटाबेस डीएनए प्रोफाइलिंग के माध्यम से बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों को दोहराने वाले व्यक्तियों का पता लगाता है।

पहले यह जान लें कि डीएनए डाटा बेस है क्या? डीएनए यानी ‍डीऑक्सीरिबो न्यूक्लिक एसिड। डीएनए दरअसल गुणसूत्र होते हैं, जो मानव शरीर के विकास, वृद्धि और प्रजनन के बारे में अनुवांशिक सूचनाएं देते हैं। इसी से मनुष्य का मनुष्यत्व और देवत्व भी तय होता है। डीएनए डाटाबेस (इसे जीन बैंक या जीनोम लायब्रेरी भी कहा जाता है) वास्तव में एक जैविक कोष है,  जिसमें जेनेटिक जानकारी सुरक्षित रखी जाती है। इसका उपयोग अनुवांशिक रोगों, अपराध विज्ञान के लिए अनुवांशिक फिंगर प्रिंटिंग या जेनेटिक जीनोलॉजी के लिए किया जाता है।

अपराध विज्ञान में अपराधी का डीएनए मैच कर जाता है तो अपराधों में कमी आने की संभावना रहती है। अंतरराष्ट्रीय पुलिस इंटरपोल के पास सून 2002 से स्वचलित डीएनए गेट वे है। इसकी शुरुआत सबसे पहले ब्रिटेन ने की। उसने 1995 में ही नेशनल डीएनए डाटाबेस तैयार कर लिया था। इसमें साठ लाख से ज्यादा डीएनए प्रोफाइल हैं। न्यूजीलैंड दूसरा देश है, जिसने 40 हजार से ज्यादा का डीएनए डाटा बेस तैयार किया है। कई निजी संस्थानों के पास भी बड़े डीएनए डाटा बेस हैं।

बहरहाल, डीएनए डाटाबेस के साथ सबसे बड़ा मुद्दा जेनेटिक निजता की रक्षा का है। इस विधेयक के आलोचकों का कहना है कि यह नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। क्योंकि इस डाटा बेस में संग्रहित व्यक्ति की कई ‍निजी जानकारियों का दुरुपयोग हो सकता है, जिसमें व्यक्ति का डीएनए प्रोफाइल भी शामिल है। कुछ लोगो का मानना है कि व्यक्तियों का डीएनए डाटाबेस तैयार करना अनैतिक है। लेकिन ज्यादातर का मानना है कि अपराधी की पहचान करने में डीएनए डाटाबेस बहुत उपयोगी है। यह अपराधी की ‍पै‍तृकता के बारे में जानकारी दे देता है।

यूके ने 2001 में कानून बना दिया था कि किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी के तत्काल बाद उसका डीएनए डाटाबेस तैयार किया जाए, भले ही बाद में वह अदालत से छूट जाए। हालांकि इससे जुड़ा खतरा यह है कि डीएनए डाटा बेस यदि गलत हाथों में चला गया तो क्या होगा? डीएनए के क्लोन बनाए जाने का भी खतरा है। भारत में अभी डीएनए डाटाबेस नहीं है, क्योंकि हमारे यहां इसके लिए जरूरी कानून अभी नहीं बना है। भारत में इस तरह कानून बनाने की पहल 2007 में तत्कालीन केन्द्र सरकार ने की थी। उस वक्त भी कुछ आपत्तियां उठी थीं।

2015 में कुछ संशोधन के साथ यह बिल फिर लाया गया। इसका मकसद न्यायिक उद्देश्य के लिए डीएनए सैम्पल के विश्लेषण को कानूनी मान्यता देना था। तब भी इस बिल को लेकर सवाल उठे थे और उसे विचार के लिए विशेषज्ञों की समिति के पास भेजा गया था। मोदी सरकार ने 2018 में संसद में फिर यह बिल पेश किया, लेकिन मंजूर नहीं हो सका।

दरअसल गंभीर अपराधियों को उजागर करने की दृष्टि से भारत जैसे देश में डीएनए टैक्‍नॉलाजी की बहुत उपयोगिता है। इनसे अपराध की गुत्थी सुलझाने की दृष्टि से अहम सुराग मिल सकते हैं। जांच एजेसियों का भी सरकार पर दबाव है कि अपराधों की तह तक पहुंचने के लिए डीएनए डाटा बेस का बड़ा महत्व है। यकीनन गंभीर अपराधों की गुत्थी सुलझाने तथा अपराधियों का पता लगाने में विज्ञान की यह नई विधा काफी उपयोगी है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। हां, व्यक्ति की निजता और निजी जानकारियों की सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। लेकिन जब विश्व के कई देश इस तकनीक के इस्तेमाल पर भरोसा कर रहे हैं तो हमें भी तेजी से आगे बढ़ना चाहिए। संसदीय समिति के सवाल जायज हैं, लेकिन सख्त कानूनों के जरिए उन पर अंकुश लगाया जा सकता है।

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