गिरीश उपाध्याय
गणतंत्र दिवस भले ही बीत गया हो लेकिन उस दिन देश की राजधानी में जो कुछ हुआ उसकी गूंज अभी तक सुनाई दे रही है और कोई नहीं कह सकता कि यह कितने और दिन सुनाई देती रहेगी। वैसे तो देश में आजादी से पहले और आजादी के बाद कई आंदोलन, धरना, प्रदर्शन आदि हुए हैं लेकिन 26 जनवरी 2021 को जो हुआ वह देश के माथे पर कलंक की तरह हमेशा चस्पा रहेगा।
26 जनवरी को गणंतत्र दिवस परेड के समानांतर अपनी ट्रैक्टर परेड निकालने पर अड़े किसान संगठनों की बात मानकर, सरकार ने उन्हें न चाहते हुए भी ऐसा करने की इजाजत इसलिए दी थी ताकि यह न लगे कि सरकार किसानों की हर बात को कुचल देना चाहती है। ट्रैक्टर परेड को लेकर यह भी कहा गया था कि क्या देश के किसानों का हक नहीं है कि वे गणतंत्र दिवस के दिन देश की राजधानी में अपना कोई आयोजन कर लें।
बिलकुल ठीक है, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस ऐसे राष्ट्रीय पर्व हैं जो सिर्फ सरकार के नहीं बल्कि पूरे देश के, देश की जनता के हर वर्ग के हैं। इसलिए इन दोनों अवसरों पर देश के हर नागरिक को पूरा हक है कि वह अपनी भावनाओं का इजहार कर सके। लेकिन इस हक के साथ ही यह सवाल भी उतनी ही शिद्दत से जुड़ा है कि आखिर ये भावनाएं कैसी हैं और इन्हें व्यक्त करने का तरीका कौनसा है?
इस बार गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जिस तरह का तांडव किया गया, वह न तो राष्ट्रप्रेम की भावना थी और न ही उसे व्यक्त करने का तरीका देश या देश के कानून/संविधान का सम्मान करने वाला था। आजादी के इतिहास के प्रतीक लालकिले की प्राचीर पर देश के मान सम्मान का जो चीरहरण किया गया वह कम से कम किसी भारतीय का काम तो नहीं हो सकता। निश्चित रूप से उसमें जो भी लोग शमिल थे, आप उन्हें अपनी सुविधानुसार किसान या प्रदर्शनकारी जो भी नाम दे दें लेकिन वे सारे लोग देश को कलंकित करने वाले लोग थे जिन्हें भारतवासी कहलाने का कोई हक नहीं है।
किसान आंदोलन जब से शुरू हुआ है उसके कुछ ही दिनों बाद से यह बात उठने लगी थी कि इसमें कुछ देश विरोधी ताकतें भी शामिल हैं। कहा गया कि इसके जरिये बरसों पुरानी, देश को तोड़ने वाली, खालिस्तान की मांग को हवा देने की साजिश रची जा रही है। लेकिन उस बात को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि यह आंदोलन को बदनाम करने की सरकार और उसके समर्थक लोगों की चाल है।
अब सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर पुलिस ने उपद्रवियों को लाल किले पर चढ़ने से क्यों नहीं रोका? मांग हो रही है कि इस नाकामी के लिए गृह मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए। लेकिन इन लोगों को कोई ये बताए कि जो हालात बने थे उनमें उपद्रवियों (माफ कीजिये, किसानों) को या तो लहूलुहान करके रोका जा सकता था या फिर उनकी लाशें बिछाकर। इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस ने जो धैर्य दिखाया है उसकी सराहना होनी चाहिए। और यदि सरकार ने पुलिस को किसी भी सूरत में गोली न चलाने के निर्देश दिए हों तो सरकार की भी।
क्योंकि जो हालात बने थे वे अगर किसी अन्य परिस्थिति में बने होते तो तय मानिये कि पुलिस फायरिंग जरूर होती। और अगर पुलिस फायरिंग होती, किसान मारे जाते तो देश का इतिहास इस बात के लिए और ज्यादा कलंकित होता कि गणतंत्र दिवस के दिन, संविधान की शपथ लेने वाली सरकार ने ही अपने लोगों पर गोलियां चलवाकर उन्हें भून डाला। लालकिले पर जो हुआ, आज तो उसे ही भूलना नामुमकिन है, पर कल्पना करिये यदि प्रदर्शनकारियों पर, जिन्हें किसान कहा या बताया जा रहा है, गोलियां चलतीं तो देश और दुनिया में भारत की छवि का क्या होता?
और जो लोग पुलिस या सरकार पर नाकाम होने का आरोप लगा रहे हैं, यदि वे अंधे ही न हो गए हों तो उस दिन के मीडिया के तमाम चैनलों पर लाइव दिखाए जा रहे दृश्यों को एक बार फिर देख लें। पुलिस ने दिल्ली में घुसकर तांडव मचाने पर उतारू उस उन्मादी भीड़ को रोकने के लिए कदम कदम पर इंतजाम किए थे, बैरीकेड लगाए गए थे, अंदर न जाने के लिए समझाइश देने और न मानने पर लाठीचार्ज और आंसूगैस का भरपूर उपयोग किया था, लेकिन भीड़ मरने मारने पर उतारू थी।
ऐसी भीड़ को रोकने का अंतिम उपाय सिर्फ गोली चलाना ही था और वैसा न करके पुलिस ने ठीक ही किया। लेकिन लगता है पुलिस और सरकार को नाकाम बताने वाले चाहते थे कि पुलिस गोली चलाती, किसान मरते और उन्हें किसानों की लाशों पर राजनीति करने, सरकार को बदनाम करने का सुनहरा मौका मिल जाता। अब जो कपड़े फाड़े जा रहे हैं वह इसी खीज का नतीजा है।
रही बात किसानों की मांगों पर सरकार के रुख और आंदोलन के भविष्य की, तो एक बार फिर वही बात दोहरानी होगी कि हल तो बातचीत से ही निकलेगा और बात भी पत्थर बनकर नहीं इंसान बनकर करनी होगी। मेरी ही सुनी जाए, मेरी ही मानी जाए का भाव लेकर कोई संवाद सफल नहीं हो सकता। गणतंत्र दिवस के दिन जो हुआ है उसे सरकार भी समझे और आंदोलनकारी भी। चूंकि अब यह साफ हो गया है कि आंदोलन के बहाने या उसके जरिये देशविरोधी ताकतों ने सिर उठाने का मौका तलाश लिया है, ऐसे में सावधानी और सख्ती हर स्तर पर बरतनी जरूरी है। और हां, यह बात सभी को अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि कोई भी देश की अखंडता और उसके स्वाभिमान से बड़ा नहीं है… कोई भी नहीं…(मध्यमत)