मैथिलीशरण गुप्त
अपराध मुक्त भारत मिशन के माध्यम से भारतीय पुलिस का पूर्ण, सामयिक एवं आधुनिक रूपान्तर आवश्यक है, आओ मिलकर इसे संभव बनायें। आज की पुलिस समय की तकनीकी जटिलताओं के लिये तैयार नहीं है। तकनीकियों में लगातार उन्नत विकास जारी होने से सामाजिक एवं आर्थिक तानेबाने में आ रहे परिवर्तनों के कारण जमीनी हकीकत ज्यादा पेचीदा एवं चुनौतीपूर्ण हो गयी है। पुलिस का कार्य और भी कठिन व चातुर्यपूर्ण हो गया है। पुलिस प्रशिक्षण इसके लिये उसे तैयार करने के समुचित प्रयास भी नहीं कर पा रहा है।
कोरोना के समय डिजिटाइज इन्टरेक्शन में भारी बढ़ोतरी हुई है। साइबर अपराध अप्रत्याशित रूप से बढ़े हैं। भारत सरकार ने 30 अगस्त 2019 को साइबर अपराधों की रिपोर्टिंग के लिये एक पोर्टल लांच किया था। गृह मंत्रालय के अनुसार इस पोर्टल पर 2 लाख से अधिक रिपोर्ट्स प्राप्त होने बावजूद मात्र 2.5 प्रतिशत प्रकरणों में ही प्राथमिकी दर्ज हुई है। इसका अर्थ है कि 97.5 प्रतिशत प्रकरणों में अपराधों का पंजीयन ही नहीं हुआ।
यह तब हो रहा है जब उच्चतम न्यायालय की ओर से संज्ञेय अपराधों की सूचनाओं पर प्राथमिकी दर्ज करने की अपरिहार्यता पर लगातार जोर दिया जा रहा है। मूल प्रश्न यह है कि क्या यह राजनैतिक सांठगांठ के तहत हो रहा है, क्या इसे कानून का राज कहा जा सकता है। आम आदमी कहां जाये उसकी सुनवायी होगी अथवा नहीं। और यह सुनवायी कौन करेगा या इसका हश्र नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसा होना सुनिश्चत है।
जो राज्य सरकारें इस मिलीभगत में शामिल हैं, क्या उन्हें संवैधानिक तंत्र फेल करने के लिये संविधान की कंडिका 356 के तहत जिम्मेदार ठहराया जाकर बरखास्त किया जाना सामयिक आवश्यकता या मजबूरी नहीं है। जो भी हो, क्या इस जिम्मेदारी का निर्वहन बेशर्म राजतंत्र करेगा या क्या उसे इसके लिये मजबूर किया जा सकता है, इसके लिये उपाय करने होंगे। मुझे लगता है कि अब आमूलचूल परिवर्तन का समय आ गया है व इसका बीड़ा उठाना ही होगा। हे पार्थ उठो, अब गांडीव उठाओ वर्ना आने वाला समय हमें कायर निरूपित करेगा। हमारी स्थिति शिखंडी से बेहतर नहीं होगी। अतः हमें यह धर्मयुद्ध करना ही होगा, अन्यथा आने वाली पीढि़यां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।
आओ हम मिलकर अपराध मुक्त भारत का निर्माण करें। यह संभव है, यदि हमारा राजतंत्र स्वार्थी, खुदगर्ज एवं आपराधिक मानसिकता से ग्रसित है तो हमें चुनौती देना ही होगी, इसके अतिरिक्त और कोई विकल्प वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दिखायी नहीं दे रहा है।